दरअसल, जैतारण क्षेत्र के घोडावड़ गांव में शराब का चलन बढ़ गया था। जब मंजू रावल सरपंच पद पर चुनी गई तो उन्होंने सबसे पहले फोकस शराबबंदी पर ही किया। 2016 में शराब की दुकान के विरोध में ग्राम पंचायत में बैठक लेकर विरोध किया तो महिलाओं के साथ कई बार रैलियां भी निकाली। इतना ही नहीं, शराब की दुकान बंद करवाने के लिए प्रशासनिक स्तर पर मांग उठाई। उन्होंने राजसमंद जिले के गांव काछबली की तर्ज पर शराब बंदी पर चुनाव करवाने की मांग भी की। लेकिन, सफलता नहीं मिली।
फिर आमसभा कर ग्रामीणों को साथ लेकर जैतारण न्यायालय में प्री लिटिगेशन वाद दायर करवाया। इस पर न्यायालय ने 11 अप्रेल 2016 को सुनवाई के दौरान ग्राम घोड़ावड़ के लोगों की मांग को ध्यान में रख घोडावड़ में शराब की दुकान नहीं खोलने के लिए पाबंद किया गया। उनके संघर्ष का ही परिणाम है कि पिछले चार सालों से घोडावड़ में शराब की दुकान नहीं खुल पाई है।
शराब से बर्बाद हो रहे परिवार
बकौल मंजू, ‘शराब की लत बड़ों से बच्चों तक में पहुंच चुकी है। हंसते-खेलते परिवार तबाह हो गए। यदि मैं भी ये सोच लूं कि महिला होने के नाते कुछ नहीं कर पाऊंगी तो ये शराब ठेके बंद नहीं होते और परिवार बर्बाद होते रहते। भले ही हम महिलाएं हैं, लेकिन कई बार मुखिया की भूमिका निभाकर बुराई के खिलाफ जंग लडऩी पड़ती है।’