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फूलती सांसों पर कई किलोमीटर का सफर पड़ रहा भारी सिलिकोसिस मरीजों का दर्द

locationपालीPublished: Jan 18, 2020 09:58:25 pm

Submitted by:

Om Prakash Tailor

नाणा-बेड़ा के बाद अब जैतारण क्षेत्र में फैल रहा सिलिकोसिस रोग

फूलती सांसों पर कई किलोमीटर का सफर पड़ रहा भारी सिलिकोसिस मरीजों का दर्द

फूलती सांसों पर कई किलोमीटर का सफर पड़ रहा भारी सिलिकोसिस मरीजों का दर्द

पाली। सिलिकोसिस जैसी जानलेवा बीमारी की चपेट में आए सैकड़ों लोगों को सरकारी सहायता के लिए जारी होने वाले चिकित्सक प्रमाण पत्र के लिए फूलती सांसों के सैकड़ों किलोमीटर का सफर कर पाली आने का दर्द झेलना पड़ रहा है। आलम यह है कि कई जने तो सांस फूलने के कारण चल तक नहीं सकते ऐसे में परिजन उन्हें कंधों पर उठाकर अस्पताल लाते है लेकिन लगता है जिम्मेदार इस जानलेवा बीमारी से पीडि़त लोगों के दर्द से कोई सरोकार नहीं रखते है। जिले के नाना-बेड़ा व जैतारण, बर क्षेत्र में सिलिकोसिस पीडि़तों की संख्या ज्यादा है। क्योंकि इस क्षेत्र में अधिकतर लोगा खदानों, पत्थर तरासने, तोडऩे, क्रेसर, ईट भट्टों पर काम करते है। सांस के साथ उनके फेफड़ों में सिलिकोसिस के कण चले जाते ओर वे इस जानलेवा बीमार की चपेट में आ जाते है। ओर उन्हें सांस लेने में कठिनाई, खांसी आना, बुखार, भूख में कमी, सीने में दर्द, थकान आदि का शिकार हो जाते है। इनका दर्द न जाने कोई शिविर को बांगड़ अस्पताल में आयोजित शिविर में पहुंची खारचिया की ढाणी आऊवा निवासी रेखादेवी ने बताया कि उनके पति की मौत हुए दो माह से अधिक समय हो गया। उनकी मौत सिलिकोसिस से हुई यह प्रमाण पत्र लेने शिविर में आई हूं। उन्होंने बताया कि पति की मौत के बाद उन्हें घर चलाने में भी आर्थिक कठिनाई का सामना करना पड़ रहा है। प्रमाण पत्र मिलने के बाद सरकार से जो सहायता राशि मिलेगी उससे बच्चों की परवरिश ढग से कर पाएगी। शिविर
में आए प्रभूसिंह ने बताया कि वह पत्थर तरासने का काम करता है। सांस लेने में परेशानी होती है। सिलिकोसिस जैसी जानलेवा बीमार की चपेट में तो नहीं आ गया। इसकी जांच करवाने शिविर में आए है। जैतारण, बाली क्षेत्र में
लगने चाहिए शिविरशिविर में आए रामलाल ने बताया कि इस बीमारी के मरीज अधिकतर जैतारण क्षेत्र में हो तो चिकित्सा विभाग को चाहिए कि वे जैतारण क्षेत्र में ही ििशवर आयोजित करें। जिससे इस बीमारी से पीडि़तों लोगों को
सैकड़ों किलोमीटर के सफर के दर्द से राहत मिले ओर उनका इलाज वही अपने क्षेत्र में हो सके। शिविर में पहुंचे 125 मरीजनववर्ष में पहला सिलिकोसिस शिविर शनिवार को बांगड़ अस्पताल में आयोजित हुआ। जिसमे 125 मरीज पहुंचे। जांच में 25 लोगों को सिलिकोसिस होने की पुष्टि होने पर पीएमओ डॉ. ए.डी. राव, शिविर प्रभारी डॉ. ललित शर्मा, डॉ. आर.पी. अरोड़ा, पारसमल कुमावत, मांगीलाल आदि ने उन्हें सिलिकोसिस मरीज होने का प्रमाण पत्र दिया। इस दौरान चार प्रमाण पत्र मृतक के परिजनों को दिए गए। जिनके परिजन की सिलिकोसिस बीमारी से मौत हो चुकी है। जिसमें से अधिकतर जैतारण क्षेत्र के लोग थे।छोटी मजदूरी दे रही बड़ा दर्दचिकित्सकों की माने तो लम्बे समय तक
पत्थर कटाई, खदानों में काम करने वाले लोगा सिलिकोसिस रोग की चपेट में आ जाते है। काम करने के दौरान सिलिकायुक्त धूल में लगातार सांस लेते है। जिससे उनके फेफड़ों में धूंल के कण जम जाते है। धीरे-धीरे मरीज के फेफड़े खराब होने लगते है। उसकी सांस फूलने लगती है। खासी आना, बुखारा होना, तेजी से श्वास लेना, भूख में कमी, वजन कम होना, सीने में दर्द, थकान रहना आदि इस बीमारी के लक्षण है।
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