हरेक भाषा री आपरी न्यारी प्रकृति हुवै, जिणसूं उणरै बोलणवाळा री प्रकृति री ठा पड़ै। हरेक भाषा रो आपरौ लोक होवै, जिणमें उणरी कहावतां, ओखाणां-आडियां, गीत-गाळ, छंद-अलंकार, कलावां, रीति-रिवाज, लोकथावां, भजन, हरजस, अर परम्परागत अेतिहासिक बातां में हियै रै भावां रा दरसण हुवै। आ बात सोळै आनां सांची है’के आपरी भाषा सूं जुडिय़ौड़ा लोग आपरी माटी अर मरजाद सूं गहरौ जुड़ाव राखै। क्यूंकै भाषा में उण प्रदेस री माटी री सौरम स्वभाविक रूप सूं मौजूद रैवै।
जलम दैवणवाळी मां, मायड़भौम अर मायड़ भाषा री होड़ कुण करै? मां रा दूध सूं काया अर मायड़ भाषा सूं आत्मा पुष्ट हुवै। मिनखाजूण अर मिनखपणां रै मरजाद री ओळखाण मां, मायड़भौम अर मायड़ भाषा सूं ‘इज हुवै। इमरत रै उनमान मां रौ दूध अर उणी’ज भांत मायड़भाषा चेतन-अचतेन मन नै दिसा ग्यांन करावै। जिण समैं पालणां में हालरियौ गावै, वां चीज बाळक रै रगत में रम जावै। इणी’ज कारण मायड़भाषा बोलतां थकां मन में अंजस हुवै, गुमैज हुवै। इण ठौड़ ख्यातनाम राजस्थानी कवि कन्हैयालाल सेठिया रौ अेक दोहो देखणजोग-
मायड़ भाषा बोलतां, आवै जिणनै लाज
इस्यां कपूतां सूं दु:खी आखौ देस समाज ।।
निजभाषा सूं अणमणां, परभाषा सूं प्रीत
इसड़ा नुगरां री करैै, कुण जग में प्रतीत ।। आपाणौ राजस्थान प्रदेस- सगती, भगती अर साहित्य री पावन त्रिवैणी कहीजै। जिणरी गौरवशाली संस्कृति आखी दुनियां में आपरी अणुठी ओळखाण राखै। आपाणी मायड़भाषा-राजस्थानी, जिणरौ जुगां-जूनौ इतियास, विसाळ साहित्य भण्डार, दुनियां री सगळी भाषावां सूं सीरै सबद-कोष, छंद-अलंकार अर व्याकरण री कौरणी, बोलियां अर उपबोलियां री सबळीसाख, राजस्थान सहित सकल संसार में रैवण वाळा 10 करोड़ राजस्थानी लोगां रै अंतस री वाणी, आपरी खुदरी लिखावट अर खुद रौ गौरवशाली लोक साहित्य। कैवण रौ मतलब औ कै भाषा वैग्यानिका री दीठ सूं मायड़ भाषा राजस्थानी अेक सुतंत्र अर सिमरथ भाषा है। इण वास्तै औ भरोसो कर सका कै मायड़भाषा राजस्थानी नै संवैधानिक मान्यता मिलण रौ सपनौ बेगौ-ई साकार हुवैला।