शांतिदेवी : दस महिलाओं के साथ शुरू किया काम, आज लाखों का टर्नओवर
मंडिया रोड क्षेत्र में रहने वाली शांतिदेवी की पति की बीमारी के चलते घर खर्च चलाने में दिक्कत हुई तो हिम्मत कर काम करना शुरू किया। 2001 में स्वयं सहायता समूह बनाया और दस महिलाओं को जोड़ा। इनके साथ चूडिय़ों में नग लगाने, बैंगल्स, इमीटेशन ज्वेलरी का काम शुरू किया। प्लास्टिक की चूडिय़ां भी तैयार करती है। साथ ही खिचिया-पापड़, इमीटेशन ज्वेलरी भी तैयार करवा कर देश भर में बेचते हैं। आज इनके पास 300 महिलाएं हैं, जो घर से ही ये काम संभाल रही है। आज शांतिदेवी का सालाना टर्नओवर लाखों रुपए में हैं। राज्य सरकार भी उन्हें कई बार सम्मानित कर चुकी है।
मंडिया रोड क्षेत्र में रहने वाली शांतिदेवी की पति की बीमारी के चलते घर खर्च चलाने में दिक्कत हुई तो हिम्मत कर काम करना शुरू किया। 2001 में स्वयं सहायता समूह बनाया और दस महिलाओं को जोड़ा। इनके साथ चूडिय़ों में नग लगाने, बैंगल्स, इमीटेशन ज्वेलरी का काम शुरू किया। प्लास्टिक की चूडिय़ां भी तैयार करती है। साथ ही खिचिया-पापड़, इमीटेशन ज्वेलरी भी तैयार करवा कर देश भर में बेचते हैं। आज इनके पास 300 महिलाएं हैं, जो घर से ही ये काम संभाल रही है। आज शांतिदेवी का सालाना टर्नओवर लाखों रुपए में हैं। राज्य सरकार भी उन्हें कई बार सम्मानित कर चुकी है।
सविता : इनके हाथ से बने खिचिया-पापड़ की मुम्बई-कोयम्बटूर तक डिमांड
शहर के महावीर नगर भाटों का बास निवासी सविता पाण्डे ने घर खर्च चलाने में पति की मदद करने के उद्देश्य से छह वर्ष पूर्व खिचिया-पापड़ बनाकर बेचना शुरू किया। फिर कुछ महिलाओं के साथ पितृ कृपा नाम से स्वयं सहायता समूह बनाया। घर पर ही खिचिया, पापड़, राबोड़ी, राखी-सेव, गाल सेव, गुच्छा सेव, चिप्स, सलेवड़ा फली आदि तैयार करना शुरू किया। स्वाद लोगों को पसंद आ गया। आज इनका सालाना टर्न-ओवर आठ से दस लाख के बीच हैं। पाली से लेकर मुम्बई, कोयम्बटूर तक इनका माल सप्लाई होता हैं। इन्होंने अपने इस कार्य से 20 महिलाओं को और आत्मनिर्भर बनाया।
शहर के महावीर नगर भाटों का बास निवासी सविता पाण्डे ने घर खर्च चलाने में पति की मदद करने के उद्देश्य से छह वर्ष पूर्व खिचिया-पापड़ बनाकर बेचना शुरू किया। फिर कुछ महिलाओं के साथ पितृ कृपा नाम से स्वयं सहायता समूह बनाया। घर पर ही खिचिया, पापड़, राबोड़ी, राखी-सेव, गाल सेव, गुच्छा सेव, चिप्स, सलेवड़ा फली आदि तैयार करना शुरू किया। स्वाद लोगों को पसंद आ गया। आज इनका सालाना टर्न-ओवर आठ से दस लाख के बीच हैं। पाली से लेकर मुम्बई, कोयम्बटूर तक इनका माल सप्लाई होता हैं। इन्होंने अपने इस कार्य से 20 महिलाओं को और आत्मनिर्भर बनाया।
विमला तलेसरा : खाखरे बनाने के हुनर ने दिलाई विमला को पहचान
शहर के रामबास निवासी विमलादेवी तलेसरा ने शादी के बाद खाली समय का उपयोग करने के उद्देश्य से घर पर खाखरे बनाना शुरू किया। इनके खाखरे का स्वाद लोगों को पसंद आ गया। डिमांड बढऩे लगी तो इन्होंने खुद का स्वयं सहायता समूह बना लिया अन्य महिलाओं को जोड़ दिया। आज इनके पास 20-25 महिलाएं विभिन्न फ्लेवर के खाखरे, खिचिया-राबोड़ी, अचार आदि बनाने का काम करती हैं। इनका तैयार माल देश भर में विशेषकर चैन्नई, केरल, हैदराबाद, बेंगलूरु तक जाता हैं। वर्तमान में इनका सालाना टर्नओवर लाखों में हैं।
शहर के रामबास निवासी विमलादेवी तलेसरा ने शादी के बाद खाली समय का उपयोग करने के उद्देश्य से घर पर खाखरे बनाना शुरू किया। इनके खाखरे का स्वाद लोगों को पसंद आ गया। डिमांड बढऩे लगी तो इन्होंने खुद का स्वयं सहायता समूह बना लिया अन्य महिलाओं को जोड़ दिया। आज इनके पास 20-25 महिलाएं विभिन्न फ्लेवर के खाखरे, खिचिया-राबोड़ी, अचार आदि बनाने का काम करती हैं। इनका तैयार माल देश भर में विशेषकर चैन्नई, केरल, हैदराबाद, बेंगलूरु तक जाता हैं। वर्तमान में इनका सालाना टर्नओवर लाखों में हैं।