ब्राह्मण परिवार में जन्म लेने वाले सोहनलाल त्रिवेदी के पिता कोर्ट में मुंशी थे। गांवों में पढ़ाई के लिए व्यवस्था नहीं थी। जैतारण से पढ़ाई करवाई। 1962 में पहली बार सुरायता प्राइमरी स्कूल में पोस्टिंग मिली। नौकरी के साथ पढ़ाई को जारी रखा। एमए तक अपनी पढ़ाई पूरी की। नवम्बर 1999 में धनला गांव से नौकरी से रिटायर हुआ।
सोहनलाल त्रिवेदी बताते हैं कि सोजत में जब अपने स्कूल गया तो ध्वजारोहरण के समय माडसाहब ने कहा देश आजाद हो गया, खुशी मनाओ। तब मेरी उम्र 6 साल की थी। पिताजी बताते थे कि भारत पाकिस्तान बंटवारे के दौरान देश में दंगे हुए। लोगों ने पलायन शुरू किया। मानो देश में खून की होली चल रही हो। आज भी पिताजी द्वारा बताए मंजर को याद करता हूं तो आंखों में आंसू आ जाते हैं।
त्रिवेदी ने बताया कि मेरे पिताजी अंग्रेजों के समय कोर्ट में मुंशी का कार्य करते थे। उन्होंने बताया कि गुलामी के दौरान परिस्थिति सहमी हुई थी। अपने देश पर हमारा अधिकार नहीं था। अपनी मर्जी से कुछ नहीं कर सकते थे। बीमार भी हो जाएं तो इलाज के साधन नहीं थे। आज भी उनकी बताई हर बात याद है। कुछ आंखों देखी बातें भी लेकिन आजादी के बाद सभी सुख सुविधाएं उपलब्ध हैं। आवागमन के पूर्ण साधन हैं, ज्ञान और विज्ञान बेहतर है।
इंद्रसिंह सिसोदिया बताते हैं कि आजादी की लड़ाई प्रथम स्वाधीनता संग्राम की चिंगारी सन 1857 में आऊवा ठाकुर कुशालसिंह ने जलाई थी। इन क्रांतिकारीयो की बदौलत देश में एक नया अध्याय जुड़ा वो था 1947 में आजादी। जिन्होंने आजादी का सपना देखा, जिन्होंने मातृभूमि के लिए सब कुछ त्याग दिया, वो सपूत हमारे बीच नहीं रहे थे। अब थी तो उनकी यादें।
आजादी को लेकर देश के नागरिकों में जो सपने देखे थे वो साकार हुए। आज भारत ज्ञान विज्ञान, प्रौद्योगिकी, व्यवसाय, शक्ति में विश्व के अग्रणी देशों में है। आज दुनिया भारत को जानती मानती और समझती है। अब भी भारत के अनेकों सपने साकार होने शेष हैं।
आज इतिहास के पुन: लेखन की आवश्यकता है। अंग्रेजों के लिखे इतिहास ने स्वतंत्रता संग्राम के प्रति सैनानियों के प्रति न्याय नहीं किया। हमारे बलिदानियों को महत्व नहीं दिया। हम अपने गौरवमय अतीत को भूल से गए हैं। उन राष्ट्र नायकों को वर्ष में एक बार वंदन करना पर्याप्त नहीं है। उन्हें हमें अपने हदय में सदैव बसाए रखना होगा, तभी यह राष्ट्र अपने सपनों को साकार कर सकेगा।
इंद्रसिंह सिसोदिया बताते हैं कि शुरूआती दिनों में दरबार स्कूल में पढ़ाई की। बाद में बागड़ कॉलेज डीडवाना नागौर से बीए पास करते ही शिक्षक बन गया। 1 जनवरी 1960 से 31 दिसंबर 2000 प्राचार्य पद से राजकीय सेवा के बाद सेवानिवृत हुआ।हमेशा विद्यार्थियों को देश की आजादी के किस्से सुनाए व हकीकत को बताया।