scriptरेडियो पर सुना देश आजाद हो गया, छलके खुशी के आंसू | Tears were spilled when India became independent | Patrika News

रेडियो पर सुना देश आजाद हो गया, छलके खुशी के आंसू

locationपालीPublished: Aug 10, 2022 04:13:11 pm

Submitted by:

Suresh Hemnani

-आजादी के बाद गांव की चौपालों पर था जमावड़ा, आंसू बयां कर रहे थे आजादी का जश्न-विद्यालय में ध्वजारोहण के दौरान अध्यापक बोले- वंदे मातरम् देश आजाद हो गया -क्रांतिकारी सैनिकों का सपना हुआ था पूरा, उनकी याद में 1958 में आऊवा में बनाया कीर्ति स्तम्भ

रेडियो पर सुना देश आजाद हो गया, छलके खुशी के आंसू

रेडियो पर सुना देश आजाद हो गया, छलके खुशी के आंसू

75th Nectar Festival of Independence : पाली/आऊवा। भले हमने गुलाम देश में जन्म लिया, लेकिन आजादी का जोश शरीर में उबाल ला रहा था। 1857 की क्रांति में जो चिंगारी हमारे गांव से उठी उसने पूरे भारत में ज्वाला का काम किया। आजादी के समय सब जगह से एक आवाज हिंदुस्तान जिंदाबाद। आजादी के उद्घोष के साथ सभी एक दूसरे को गले मिलकर बधाई दे रहे थे। हमारे पूर्वजों का सपना हम अपनी आंखों से देख रहे थे। हमें जो आजादी मिली ये आजादी उन मातृभूमि के सच्चे वीर सपूतों के बलिदान की देन है। गुलामी की जंजीर से अब हम आजाद थे। आंखों में आंसू लिए पुरानी बातों को ताजा किए ये शब्द हं आऊवा के इंद्रसिंह सिसोदिया व सोहनलाल त्रिवेदी के। आजादी की कुछ दास्तां अपने माता पिता से सुनी व कुछ दास्तां अपनी आंखों से देखी। वे आजादी के साक्षी बने।
1962 में लगी नौकरी
ब्राह्मण परिवार में जन्म लेने वाले सोहनलाल त्रिवेदी के पिता कोर्ट में मुंशी थे। गांवों में पढ़ाई के लिए व्यवस्था नहीं थी। जैतारण से पढ़ाई करवाई। 1962 में पहली बार सुरायता प्राइमरी स्कूल में पोस्टिंग मिली। नौकरी के साथ पढ़ाई को जारी रखा। एमए तक अपनी पढ़ाई पूरी की। नवम्बर 1999 में धनला गांव से नौकरी से रिटायर हुआ।
माडसाहब ने कहा – देश आजाद हो गया, खुशी मनाओ
सोहनलाल त्रिवेदी बताते हैं कि सोजत में जब अपने स्कूल गया तो ध्वजारोहरण के समय माडसाहब ने कहा देश आजाद हो गया, खुशी मनाओ। तब मेरी उम्र 6 साल की थी। पिताजी बताते थे कि भारत पाकिस्तान बंटवारे के दौरान देश में दंगे हुए। लोगों ने पलायन शुरू किया। मानो देश में खून की होली चल रही हो। आज भी पिताजी द्वारा बताए मंजर को याद करता हूं तो आंखों में आंसू आ जाते हैं।
हमारा अधिकार नहीं था देश पर
त्रिवेदी ने बताया कि मेरे पिताजी अंग्रेजों के समय कोर्ट में मुंशी का कार्य करते थे। उन्होंने बताया कि गुलामी के दौरान परिस्थिति सहमी हुई थी। अपने देश पर हमारा अधिकार नहीं था। अपनी मर्जी से कुछ नहीं कर सकते थे। बीमार भी हो जाएं तो इलाज के साधन नहीं थे। आज भी उनकी बताई हर बात याद है। कुछ आंखों देखी बातें भी लेकिन आजादी के बाद सभी सुख सुविधाएं उपलब्ध हैं। आवागमन के पूर्ण साधन हैं, ज्ञान और विज्ञान बेहतर है।
आऊवा। गांव के लेखक व साहित्यकार इंद्रसिंह सिसोदिया ने बताया कि पिताजी आजादी से पूर्व जोधपुर महकमा खास में अहलकार थे। जो आजादी के बाद राजकीय सेवा में आ गए। देश की आजादी के वक्त तीन वर्ष की आयु थी। इंद्रसिंह ने बताया कि पिताजी जब घर में आजादी को लेकर बात किया करते थे उनकी आंखों में हमेशा आंसू होते थे। एक बार मैंने पूछा आजादी का समाचार कैसे प्राप्त हुआ तो बोले गांव में पहले गिने चुने लोगों के पास रेडियो था। उस समय जयपुर आकाशवाणी में हिंदी समाचार आते थे। रेडियो पर समाचार मिला कि देश आजाद हो गया। इसके बाद गांव की चौपाल पर ग्रामीणों का मेला लग गया। उस दिन गांव के प्रत्येक महिला पुरुष व बच्चों के आंखों में आंसू थे।
आजादी में रही अहम भूमिका
इंद्रसिंह सिसोदिया बताते हैं कि आजादी की लड़ाई प्रथम स्वाधीनता संग्राम की चिंगारी सन 1857 में आऊवा ठाकुर कुशालसिंह ने जलाई थी। इन क्रांतिकारीयो की बदौलत देश में एक नया अध्याय जुड़ा वो था 1947 में आजादी। जिन्होंने आजादी का सपना देखा, जिन्होंने मातृभूमि के लिए सब कुछ त्याग दिया, वो सपूत हमारे बीच नहीं रहे थे। अब थी तो उनकी यादें।
कुछ सपने पूरे हुए कुछ अब भी अधूरे
आजादी को लेकर देश के नागरिकों में जो सपने देखे थे वो साकार हुए। आज भारत ज्ञान विज्ञान, प्रौद्योगिकी, व्यवसाय, शक्ति में विश्व के अग्रणी देशों में है। आज दुनिया भारत को जानती मानती और समझती है। अब भी भारत के अनेकों सपने साकार होने शेष हैं।
अंग्रेजो ने इतिहास को छुपाया, वीरों का प्रतिदिन स्मरण करें
आज इतिहास के पुन: लेखन की आवश्यकता है। अंग्रेजों के लिखे इतिहास ने स्वतंत्रता संग्राम के प्रति सैनानियों के प्रति न्याय नहीं किया। हमारे बलिदानियों को महत्व नहीं दिया। हम अपने गौरवमय अतीत को भूल से गए हैं। उन राष्ट्र नायकों को वर्ष में एक बार वंदन करना पर्याप्त नहीं है। उन्हें हमें अपने हदय में सदैव बसाए रखना होगा, तभी यह राष्ट्र अपने सपनों को साकार कर सकेगा।
शिक्षक के रूप में बच्चों को आजादी का महत्व बताया
इंद्रसिंह सिसोदिया बताते हैं कि शुरूआती दिनों में दरबार स्कूल में पढ़ाई की। बाद में बागड़ कॉलेज डीडवाना नागौर से बीए पास करते ही शिक्षक बन गया। 1 जनवरी 1960 से 31 दिसंबर 2000 प्राचार्य पद से राजकीय सेवा के बाद सेवानिवृत हुआ।हमेशा विद्यार्थियों को देश की आजादी के किस्से सुनाए व हकीकत को बताया।
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