रमणीया गांव से धर्मधारी आए ठाकुर करपाल देव राजपुरोहित ने गांव की छड़ी रोपी। इसके काफी समय बाद मंडोर के राजा नाहरराव परिहार की बारात मंडोर से सिरोही की ओर रवाना हुई। उस समय राजा नाहर राव ने चामुण्डा माता को अपने साथ चलने को कहा तो माता ने मना कर दिया। इस पर राजा ने मंडोर से बारात ले जाने से मना कर दिया। इसके बाद माता ने कहा कि मैं साथ चलने के लिए तैयार हूं लेकिन रास्ते में मुझे मेरे किसी भक्त ने रोक दिया तो मैं वही रूक जाऊंगी। राजा ने शर्त मंजूर कर ली। हाथी, घोडों और नगाड़ों के साथ बारात रवाना होकर धर्मधारी कांकड़ में आ गई। यहां पर कृपालदेव राजपुरोहित एक हजार गायों को चरा रहे थे।
हाथी-घोड़ों व नगाड़ों की आवाज सुनकर गाये भडक़ गई और भागने लगी। कृपालदेव जी ने उन गायों को बोला कि हे मां रूक जा, हे मां रूक जा…..। यह ध्वनि बारात में आई माता चामुण्डा ने सुन ली तो उन्होंने अपने सिंह को वही रोक दिया। राजा नाहर राव ने माता से रुकने का कारण पूछा तो उन्होंने वचन के बारे में बताया। उन्होंने राजा को बारात लेकर जाने को कहा। कृपालदेव राजपुरोहित ने राजा नाहर राव से कहा कि आप तोरण वंदन के समय सावधानी रखें। वहां पोल का झरोखा गिर जाएगा। राजा के विवाह के लिए तोरण वंदन के समय ऐसा ही हुआ। इस पर वापस लौटते समय राजा ने कृपालदेव को देवी की पूजा करने का जिम्मा सौंपा, लेकिन कृपालदेव को देवी की पूजा करने का जिम्मा सौंपा लेकिन कृपालदेव ने मना कर दिया।
उन्होंने कहा कि इस पत्थर की पूजा मैं नही करूंगा । इस पर चामुण्डा माता तेज गर्जना के साथ पहाड़ फाडकऱ विराजमान हो गई। इसी कारण गाजण माता कहलाई। कृपालदेव देवी के चरणों में गिरे और कहा कि मैं हमेशा आपकी सेवा करूंगा। राजा नाहर राव ने दस हजार बीघा भूमि व धर्मधारी गांव ताम्र पत्र पर लिख कर दिया। जो ताम्र पात्र आज भी पृथ्वी परिवार के पुख सिंह के पास है। गाजण माता परिहार गौत्र की कुलदेवी है। यहां गाजन माता नाम से गौशाला है। गौशाला व मंदिर की देखरेख पासलोर परिवार, राजपुरोहित परिवार के लोग करते है। पहाड़ी पर पैंथर होने की मान्यता है लेकिन वह आज तक पकड़ा नहीं जा सका है। हालांकि कुछ ग्रामीणों का दावा है कि उन्होंने कई बार पैंथर को भी देखा है।