scriptये हैं सियासत के ‘मिल्खासिंह’, हारे या जीते लेकिन नहीं छोड़ा मैदान | These are 'Milkha Singh' of politics, lost or won but not left ground | Patrika News

ये हैं सियासत के ‘मिल्खासिंह’, हारे या जीते लेकिन नहीं छोड़ा मैदान

locationपालीPublished: Oct 14, 2018 03:12:47 am

Submitted by:

Satydev Upadhyay

www.patrika.com/rajasthan-news

ये हैं सियासत के ‘मिल्खासिंह’, हारे या जीते लेकिन नहीं छोड़ा मैदान

ये हैं सियासत के ‘मिल्खासिंह’, हारे या जीते लेकिन नहीं छोड़ा मैदान

राजेन्द्रसिंह देणोक
पाली . राजनीति में कई एेसे भी बिरले होते हैं जो हर चुनाव में सेहरा बांध कर तैयार रहते हैं, चाहे हारे या जीते। उन्हें ये भी चिंता नहीं कि पार्टी टिकट देगी या नहीं। जब-जब भी पार्टी ने टिकट नहीं दिया, उन्होंने निर्दलीय या अन्य राजनीतिक दल से चुनाव लडऩे से गुरेज नहीं रखा। मारवाड़ गोडवाड़ में एेसे ही दो बिरले राजनेता हैं। मजे की बात यह है कि दोनों में काफी समानताएं है। दोनों एक ही पार्टी से जुड़े हुए हैं तथा हार और जीत का स्वाद भी बराबर लिया। जानिए…दोनों की राजनीतिक दौड़ का किस्सा।
टिकट नहीं मिला तो कई चुन सकते हैं जुदा राह
इस बार के विधानसभा चुनावों में भी टिकटों की पूरी मारामारी रहेगी। यानि पाली, जालोर व सिरोही सभी सीटों पर टिकट मांगने वालों की लम्बी कतार है। एेसे में प्रमुख राजनीतिक दलों से टिकट मांगने वाले कई चेहरे फिर निर्दलीय अथवा अन्य पार्टियों का दामने थाम सकते हैं।

भीमराज भाटी – विधानसभा क्षेत्र पाली
वर्तमान में कांग्रेस के वरिष्ठ नेता भीमराज भाटी राजनीति के एेसे ‘मिल्खासिंह’ है जिन्होंने चुनाव लडऩे के लिए कभी हार नहीं मानी। भले ही मतदाताओं ने भरोसा नहीं किया हो। वे महज एक बार निर्दलीय प्रत्याशी के तौर पर चुनाव जीते हैं, लेकिन पांच बार उन्हें हार का सामना करना पड़ा। मजे की बात यह भी है कि अब भी ‘टिकट की दौड़’ से अपने आपको अलग नहीं किया है। इस बार भी वे संभावित दावेदारों में शामिल है। भाटी ने सर्वप्रथम १९९० में कांग्रेस से चुनाव लड़ा था। अगले चुनाव यानी १९९३ में टिकट नहीं मिला तो निर्दलीय मैदान में उतर गए और चुनावी नैया पार लगा ली। १९९८ और २००८ में वे निर्दलीय के रूप में मैदान में उतरे। जबकि २००३ व २०१३ में वे कांग्रेस प्रत्याशी के तौर पर चुनाव लड़ चुके हैं। अब तक कुल छह चुनाव लड़े, जिसमें तीन बार कांग्रेस और तीन बार ही निर्दलीय के रूप में चुनावी रण में डटे रहे।

रामलाल मेघवाल – विधानसभा जालोर
जालोर जिले के वरिष्ठ कांग्रेस नेता रामलाल मेघवाल भले ही उम्रदराज है, लेकिन बात जब चुनाव लडऩे की आती हो तो वे अब भी अपने आपको जवान ही मानते हैं। इसका प्रमाण यह है कि उन्होंने चुनावी दौड़ से खुद को कभी बाहर नहीं रखा। मेघवाल ने १९९० में जालोर विधानसभा क्षेत्र से कांग्रेस के बैनर तले पहला विधानसभा चुनाव लड़ा था। हालांकि, इसमें वे मतदाताओं का विश्वास नहीं जीत पाए और हार गए। १९९३ में उन्हें टिकट नहीं मिला तो निर्दलीय के रूप में उतर गए। १९९८ में उन्होंने आरजेवीपी का दामन थामा, लेकिन जीत नहीं पाए। २००३ व २०१३ में मेघवाल को कांग्रेस ने अपना प्रत्याशी बनाया था। वे कांग्रेस के बैनर तले मात्र २००८ में पहला चुनाव जीत पाए। अगले महीनों होने वाले चुनावों में मेघवाल फिर से कांग्रेस के संभावित दावेदारों में शामिल
इनका भी किस्सा एेसा
कांग्रेस नेता ख्ुाशवीरसिंह जोजावर की सियासत का किस्सा भी कुछ एेसा ही है। वे १९९८ में उन्होंने निर्दलीय के रूप में पहला चुनाव लड़ा। २००३ में वे कांग्रेस के बैनर तले जीत गए। २००८ और २०१३ में वे कांग्रेस प्रत्याशी के तौर पर चुनावी रण में उतरे, लेकिन नैया पार नहीं हुई। इस बार भी अपनी दावेदारी जता रहे हैं। इसी प्रकार, जैतारण विधानसभा से कांग्रेस नेता दिलीप चौधरी भी टिकट कटने पर दो बार निर्दलीय मैदान में उतर गए। २०१३ में टिकट नहीं मिला तो निर्दलीय मैदान में उतरे और बाजी मार ले गए। उन्होंने १९९८ और २०१३ से कांग्रेस प्रत्याशी के तौर पर तथा २००३ में निर्दलीय चुनाव लड़ा।
loksabha entry point

ट्रेंडिंग वीडियो