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ग्रामीणों ने ऊंट पालन के व्यवसाय में प्रदेश में बनाई पहचान

locationपालीPublished: Dec 01, 2020 10:02:17 am

Submitted by:

Suresh Hemnani

आओ गांव चलें : अनदेखी के चलते प्रमुख व्यवसाय से विमुख हो रहे ग्रामीण

ग्रामीणों ने ऊंट पालन के व्यवसाय में प्रदेश में बनाई पहचान

ग्रामीणों ने ऊंट पालन के व्यवसाय में प्रदेश में बनाई पहचान

-महेश चन्देल
पाली/धनला। जिले के बासनी ग्राम पंचायत का 200 घरों की आबादी वाला छोटा सा गांव अन्नजी की ढाणी ऊंट पालन के व्यवसाय को लेकर प्रदेशभर में अपनी पहचान बनाए हुए हैं। देवासी समाज बाहुल्य इस ढाणी के लोगों का मुख्य व्यवसाय ऊंट पालन है। यहां से राजस्थान के पुष्कर मेले में प्रतिवर्ष कई ऊंट पालक भाग लेते हैं।
ग्रामीणों की मानें तो वर्षों पूर्व यहां मारू देवासी जाति के परिवार ने ऊंटों के कारवे के साथ डेरा डाला और उसी परिवार से एक पिता की संतान पीढी दर पीढ़ी अब यहां 200 के करीब घर एक ही समाज के हैं। ढाणीवासियों का मुख्य व्यवसाय ऊंटपालन और खेती है। वर्तमान में प्रत्येक घर से औसत एक सदस्य रोजगार के लिए प्रदेश से बाहर है। गांव के मध्य 20 वर्ष पूर्व सांसद कोष से सामुदायिक सभा भवन का निर्माण हुआ था। जो बहुत ही उपयोगी साबित हो रहा है। पानी के लिए गांव के मध्य टांका बना हुआ है। टांके में पेयजल की सप्लाई नलकूप और जवाई जल परियोजना द्वारा होती है। पशुओं के लिए कांकरिया नाड़ी और ढंड नाड़ी तथा खेळियां बनी हुई हैं। प्रधानमंत्री ग्राम सडक़ योजना के तहत 20 वर्ष पूर्व बनी एकमात्र सडक़ से अन्नजी की ढाणी मुख्य सडक़ मार्ग और पंचायत मुख्यालय से जुड़ा हुआ है।
ऊंटपालन में आ रही समस्या से ग्रामीण हो रहे विमुख
रेगिस्तान के जहाज को लेकर आजीविका तलाशने वाले ढाणीवासियों का ऊंट पालन के प्रति धीरे-गांव में वर्तमान में 400 की संख्या में ऊंट हैं। ग्रामीण बताते हैं कि 50 वर्ष पूर्व इसी गांव में 40 घरों की बस्ती में 5000 से अधिक ऊंट थे। निरंतर बढ़ रही समस्याओं के कारण ऊंटों की संख्या घट रही है। अब मात्र 30 से 35 परिवार इस व्यवसाय से जुड़े हुए हैं। ऊंटपालक ऊंकारराम देवासी और घेवरराम ने बताया कि पूर्व छह माह का टोडिय़ा (ऊंट का बच्चा) 15 से 20 हजार रुपए में बिकता था। अब इसके स्थान्तारण पर रोक के बाद पुष्कर के मेले में 3 से4 वर्ष के ऊंट की कीमत मात्र 4 हजार रुपए आंकी जाती है। ऊंटों की चराई की समस्या, चारा भूमि में अतिक्रमण, विलुप्त होती घास, अरावली की तलहटी में वन विभाग का प्रतिबंध, ऊंटों की गोचर में चराई पर मनाही सहित कई समस्याओं के कारण चरवाहों को दिक्कत आ रही है। ढाणी निवासी जवानाराम देवासी व पूर्व उपसरपंच ऊंकारराम शेखावत ने बताया कि सरकार द्वारा पूर्व में मादा ऊंट व बच्चे को टैग लगवाकर 10 हजार की राशि तीन किश्तों में ऊंटपालक को मिलती थी, जो अब आवश्यक कागजी खानापूर्ति किए जाने के बाद भी आदेशों के फेर में अटकी पड़ी है।
विद्यालय में भौतिक संसाधनों का अभाव
अन्नजी की ढाणी मात्र एक व्यक्ति सरकारी सेवा में रहा है। पूर्व वायु सैनिक जवानाराम देवासी अब सेवानिवृत्त हो चुके है। अब गांव में सीनियर स्कूल है लेकिन क्रमोन्नत होने के बाद स्थानीय प्रतिनिधियों और जिम्मेदारों की उदासीनता के कारण विद्यालय में भौतिक संसाधनों में किसी प्रकार का विस्तार नहीं हुआ है। यहां पांच कमरों में 12 कक्षाएं चलती हैं।
बस सुविधा नहीं
प्रधानमंत्री ग्राम सडक़ योजना के तहत दो दशक पहले सडक़ मार्ग बना। गांव में सरकारी या निजी किसी भी प्रकार की बसों का संचालन नहीं होने से गांव से बाहर जाने के लिए जोजावर तक पैदल जाना पड़ता है। वहा से बस मिलती है। –पपलीदेवी, वार्डपंच

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