यहां भवन निर्माण की शालीन और अंग्रेजी शैली के प्रतीक बंगला जो आज रेलवे स्टेशन होता तो बागोल रेलवे स्टेशन के नाम से जाना जाता। सरकारी नीतियों में बदलाव के साथ इस क्षेत्र के नेताओं की इच्छाशक्ति की कमी के चलते रेलवे स्टेशन तो नहीं बना अलबत्ता गोडवाड़ की जनता को ये रेल पुल व बंगले रुला जरूर देते हैं। सूत्रों के अनुसार 20वीं शताब्दी के दूसरे दशक में 1910 के आस-पास मारवाड़ जंक्शन से राणावास, फुलाद, करमाल चौराहा, जोजावर, कोट बागोल होते हुए उदयपुर के लिए रेल लाइन प्रस्तावित थी। इसके लिए बकायदा मारवाड़ जंक्शन से लेकर बागोल तक स्थित मार्ग पर नदी-नालों पर पुल बनने के साथ रेलवे स्टेशन के लिए बंगले व स्टेशनों का भी निर्माण करवाया गया था। पटरियां बिछाने का कार्य की भी सभी तैयारियां पूर्ण कर ली गई थीं, लेकिन सरकारी योजना एवं क्षेत्रिय जनप्रतिनिधियों में इच्छा शक्ति की कमी के चलते उक्त रेल लाइन को फुलाद से ही कामली घाट की ओर मोड दिया गया।
ऐसे में फुलाद से बागोल तक बनने वाला कार्य बीच में ही रोक दिया गया। आज भी इस इलाके के नदी-नालों पर बने पुल व बंगले इसकी कहानियां कह रहे हैं। लम्बे अरसे के बाद भी आज भी पुल व बंगले जस के तस हैं। रेलवे स्टेशनों के लिए बने बंगले व पुल आज गोडवाड़ के बाशिन्दों को रुला रहे हैं। आज ये बंगले या तो जंगलात कर्मचारियों के लिए शोभा बढ़ा रहे हैं या फिर समाजकंटकों की शरण स्थली बने हुए हैं। बागोल गांव के उच्च माध्यमिक विद्यालय के ठीक समक्ष स्थित प्रस्तावित रेलवे स्टेशन जिस तरह का बना है, वैसा गांव में कोई भी मकान नहीं है।
ये रास्ता प्रस्तावित था
-मारवाड़ जंक्शन से राणावास, फुलाद, करमाल चौराहा, जोजावर, कोट, बागोल होते हुए गोमती, राजनगर होते हुए उदयपुर के लिए प्रस्तावित था। युवाओं को मालूम भी नहीं
गोडवाड़ के इस इलाके के युवाओं को तो मालूम भी नहीं है कि इस क्षेत्र से कभी रेल निकलने वाली थी। इन अवशेषों को जब देखते हैं तो जिज्ञासा जरूर जागृत होती है। रेल मंत्री से की मांग
रेल मंत्री से की मांग
बागोल सहित आस-पास के गांवों के ग्रामीणों ने रेल मंत्री पीयुष गोयल को इस मार्ग पर बने पुल व स्टेशनों से अवगत कराने के साथ इस मार्ग पर रेल लाइन बिछाकर रेल मार्ग शुरू कराने की मांग की है।
इनका कहना है
भारतीय रेलवे की विशेष धरोहर सौ साल से भी अधिक पुराने पुल व स्टेशन हैं। क्षेत्र के विकास के लिए इस रेल मार्ग को पुन: शुरू करने की जरूरत है। -भरत जैन, मुम्बई प्रवासी, बागोल
पूर्व में प्रस्तावित मार्ग से होकर रेल गुजरती तो इस क्षेत्र का सर्वागीण विकास तो होता था, वहीं पूरे इलाके का नक्शा ही बदल जाता। –भंवरसिंह, पूर्व सरपंच, बागोल, लालसिंह राठौड़, रानी तहसील प्रमुख, तेजाराम चौधरी, अध्यक्ष खिंवाड़ा व्यापार संघ, नरपतसिंह उदावन, जितेन्द्रसिंह मगरतलाब, जगदीश प्रसाद कोलर
पर्यटन में बनती अलग पहचान
देसूरी। गोडवाड-मारवाड़ क्षेत्र के महत्व को ध्यान में रखते हुए रियासतकाल में इस क्षेत्र को रेल लाइन से जोडऩे का प्रयास शुरू हुआ था। इसके तहत जोजावर से आबूरोड तक वाया देसूरी होते हुए रेल लाइन निकालने के लिए सर्वे कर निर्माण भी शुरू कर दिया था, लेकिन किन्हीं कारणों से बंद कर दिया गया। क्षेत्र के जनप्रनिधियों ने इस महत्वपूर्ण कार्य को दुबारा शुरू करने के लिए कोई प्रयास नहीं किए। यहां से रेल लाइन निकलती तो गोडवाड़ में पर्यटन उद्योग का विकास होता।
उल्लेखनीय है कि रियासतकाल में भी इस क्षेत्र में रेल लाइन की आवश्यकता महसूस की गई थी। जोजावर के तत्कालीन ठाकुर केसरसिंह की मांग पर उस समय हुए सर्वे के बाद यहांं रेल लाइन बिछाने का कार्य प्रारंभ भी हो गया था। जोजावर में प्लेटफॉर्म बना हुआ है। फुलाद-देसूरी मार्ग पर खड़े रेल पुल इस बात की गवाही दे रहे हैं। बाद में यह कार्य रुक जाने से यह मार्ग रेल यातायात से जुड़ नहीं पाया। जबकी इस रेल मार्ग को फु लाद से जोजावर, बागोल, देसूरी, सादड़ी होते हुए बीजापुर मार्ग को नाणा-बेड़ा-आबूरोड को रेल लाइन से जोडऩे की योजना थी। आज यहां के लोगों को रेल में सफर करने के लिए आज भी फालना, रानी, मारवाड़ जंक्शन, सोमेसर जाना पड़ता है।