यह है घाटे के प्रमुख कारण -अनुबंधित बसों का बढ़ता संचालन। -कार्मिकों की तनख्वाह व रिटायर्ड कर्मियों की पेंशन का बढ़ता बोझ। -परिवहन लागत में बढ़ोतरी और राजस्व अर्जन में कमी।
-रूट पर निजी वाहनों से मिल रही प्रतिस्पर्धा के कारण यात्रियों में कमी। -सरकारी योजनाओं व रियायती यात्रा राशि के पुनर्भरण में देरी। मुख्यालय ही दे रहा सबसे ज्यादा दर्द रोडवेज के बेड़े में सबसे ज्यादा बसों का संचालन जयपुर के सिन्धी कैम्प बस स्टैण्ड से होता हैं। यहीं रोडवेज का मुख्यालय भी है। इस आगार में प्रोगेसिव घाटा चार अंकों यानी 1121.31 लाख तक पहुंच चुका हैं। प्रदेश के सिर्फ तीन डिपो ऐसे हैं, जहां राजस्व हानि दो अंकों में चल रही है, जबकि शेष सभी डिपो तीन अंकों के घाटे में रोडवेज की बसें दौड़ा रहे हैं। भीलवाड़ा में 74.93, करौली में 78.51 और मत्स्यनगर आगार में प्रोगेसिव घाटा 37.39 लाख आंका गया है।
अब पड़ेगी सातवें वेतन आयोग की मार रोडवेज के सभी डिपो में अनुबंधित बसों का जाल बढ़ रहा हैं। इसके अलावा लगभग 18 हजार कर्मचारियों की तनख्वाह और रिटायर्ड कर्मचारियों की पेंशन पर भी हर महीने बड़ी राशि खर्च की जा रही हैं। अवैध वाहनों से मिल रही राजस्व चुनौती के साथ अब सातवें वेतन आयोग की सिफारिशें मंजूर होने के बाद इस वित्तीय बोझ में अधिक इजाफा हो सकता है।
घाटा कम करने का कर रहे उपाय इस साल मार्च से नवम्बर तक प्रोगेसिव घाटा 193 करोड़ रुपए का हैं। इसे कम करने के उपायों पर चर्चा चल रही है। वैसे, कार्मिकों की तनख्वाह पर सर्वाधिक राशि हर महीने खर्च होती हैं।
-गोपाल विजय, फाइनेंशियल एडवाइजर, रोडवेज