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World Tourism Day 2020 : पाली पर प्रकृति मेहरबान, रणकपुर-जवाई अभयारण्य में पर्यटन की अपार संभावनाएं

locationपालीPublished: Sep 27, 2020 10:39:58 am

Submitted by:

Suresh Hemnani

-बाघ पुनर्वास को मिले प्राथमिकता तो परवान चढ़ सकता हैं पर्यटन-रणकपुर सूर्य मन्दिर, परशुराम महादेव, सोनाणा खेतलाजी एवं वन्यजीवों से आकर्षित होते हैं सैलानी-सालों से अटके प्रोजेक्ट, नहीं होते प्रयास सार्थक

World Tourism Day 2020 : पाली पर प्रकृति मेहरबान, रणकपुर-जवाई अभयारण्य में पर्यटन की अपार संभावनाएं

World Tourism Day 2020 : पाली पर प्रकृति मेहरबान, रणकपुर-जवाई अभयारण्य में पर्यटन की अपार संभावनाएं

पाली/सादड़ी। प्रकृति पाली पर पूरी तरह से मेहरबान है। प्रकृति ने कई नेमतें दी है। अरावली की वादियों व तलहटी में स्थित कुम्भलगढ़ वन्यजीव अभयारण्य, रावली टाडगढ़ व जवाई लेपर्ड कंजर्वेशन में रणकपुर, परशुराम महादेव मंदिर, सूर्यमन्दिर जैसे धार्मिक व पर्यटक स्थल है, जहां पर्यटन व्यवसाय की अपार सम्भावनाएं हैं, लेकिन विरासत को चार चांद लगाने के प्रयासों की अब भी जरूरत है।
ऐतिहासिक कु म्भलगढ़ दुर्ग-रणकपुर-देसूरी व जवाई बांध को जोड़ते हुए कॉरिडोर प्लान निर्माण कर उसके अनुरूप विकास किया जाए। प्रस्तावित कुम्भलगढ़ राष्ट्रीय उद्यान में बाघ पुनर्वास योजना में देसूरी से लेकर मालगढ़ वन क्षेत्र में बाघ परिवार को छोड़ दें तो रणकपुर सहित इन सभी धार्मिक तीर्थो की महत्ता बढ़ जाएगी। पर्यटन व्यवसाय परवान चढ़ जाएगा। हालांकि दर्शनीय व आस्था स्थल परशुराम महादेव, सूर्यमन्दिर, सोनाणा खेतलाजी, मुछाला महावीर जैसे तीर्थ सैलानियों की पहली पसन्द हैं तो वन सफारी, जहां भालू, पैन्थर सहित विभिन्न प्रजाति के वन्यजीव सहज दिखाई दे जाते हैं। जिनसे पर्यटन व्यवसाय में इजाफा हुआ है। बारिश के दिनों में पर्वतमालाओं पर बादल का नजारा कश्मीर की वादियों सा प्रतीत होता है। बारिश में पर्वतमालाओं में छाई हरीतिमा, वादियो से निकल कलकल बहते झरने, नदी-नाले सहसा सैलानी को अपनी ओर खीच लाते हैं।
सीमावर्ती क्षेत्र होने से विकास उलझा
अरावली की वादियों में 3955 फीट शिखर पर स्थित भगवान परशुराम के मंदिर पर पवित्र गुफा में प्राकृतिक प्रस्तर भू शिवलिंग, गणेश, कार्तिकेय, पार्वती, नन्दी एवं गौमुख वथन हैं। प्राकृतिक शिवलिंग पर नौ कोटर बने हैं। जिनमें नौ नदियों का पवित्र जलसंगम दिखाई देता है। इनमें वर्ष पर्यन्त जल भरा रहता है। यहां सालभर में देशभर से 8-10 लाख श्रद्धालु पहुंचते हैं। राजसमंद व पाली जिलों की संयुक्त सीमा, कुम्भलगढ अभयारण्य वन क्षेत्र में आने से इसका विकास अवरुद्ध हो गया है। यहां आज भी कई जगह लटकती चट्टानें खौफनाक दिखाई देती हैं।
खस्ताहाल सडक़ें धूमिल करती रणकपुर की रौनक
ऐतिहासिक तथ्यों के मुताबिक करीब 600 वर्ष पूर्व धरणाशाह ने नलिनीगुल्म विमान सदृश्य स्वप्न शिल्पकलाकृति का निर्माण करवाया। जिसमें भगवान आदिनाथ की विशाल चतुर्मुखी प्रतिमा, 4 रंग मण्ड़प, 84 देवी देवता गम्भारामन्दिर, 350 देवी-देवताओं की प्रतिमाएं, 1444 खम्भों की कलाकृति सहसा सैलानी को आकर्षित करती हैं।
कागजों में दफन योजनाएं
महाराणा मोकल ने सूर्य मंदिर निर्माण करवाया, जो सूर्योदय की प्रथम किरण का स्वागत करता है। यहां प्रतिवर्ष मन्दिर प्रबंधन व एकलिंगनाथ ट्रस्ट की ओर से सूर्यसप्तमी, मकर संक्रान्ति पर्व पर अनुष्ठान व जिला प्रशासन व पर्यटन विभाग, नगरपालिका की ओर से रणकपुर-जवाई महोत्सव का आयोजन होता है। यहां सरकार ने मुक्ताकाक्षी रंगमंच निर्माण करवाया जबकि यहां ऑडिटोरियम, हाट बाजार सहित कुम्भलगढ़-रणकपुर-जवाईबांध कॉरिडोर योजना सहित कई योजनाएं प्रस्तावित की गई। जो सरकारों के कार्यकाल खत्म होने के साथ कागजों में दफन होकर रह गई। गोडवाड़ महोत्सव का मंच नलवाणिया बान्ध में बदहाली की कहानी बयां कर रहा है। चार दिन का महोत्सव औपचारिकताओं भरा है। पर्यटन विकास की दृष्टि से यहां वाटर पार्क, संग्रहालय, तीर्थंकर नेचर ट्रेल को धार्मिक आस्था से जोडकऱ मनोरंजन पार्क, चिडिय़ाघर के साथ विकसित किया जा सकता है। वन विभाग की उपेक्षा से एडवेंचर एक्टीविटी दम तोड़ रही हैं। रणकपुर तीर्थ पर सालभर में करीब 7-8 लाख देशी पर्यटक एवं 1 लाख 65 हजार से अधिक विदेशी सैलानी पहुंचते हैं।
बाघ पुनर्वास केन्द्र को मिले गति
मालगढ़ मोडिया तक बनाया गया बाघ पुनर्वास योग्य स्थल कुम्भलगढ़ अभयारण्य व रावली टॉडगढ़ का 481 वर्ग किमी दायरा मिलाकर कुम्भलगढ़ नेशनल पार्क निर्माण करना प्रस्तावित है। राजसमंद, उदयपुर सहित पाली जिले में मोडिया बाघ संरक्षित वन क्षेत्र में बाघ पुर्नवास योजना के तहत बाघ छोडऩे पर विचार हो रहा है। सरकार की ओर से मंागे प्रस्ताव पर कुम्भलगढ़ सहायक वनसंरक्षक ने देसूरी-जोबा-माण्डीगढ़, रणकपुर मालगढ़-मोडिया का एरिया बाघ पुनर्वास योग्य स्थल बताया है। जिनमें से मोडिया में बाघ संरक्षित क्षेत्र निर्माण पूर्णता पर है। सरकार व जनप्रतिनिधियों के प्रयासों से जल्द बाघ छोड़ा जाए तो कुम्भलगढ़ दुर्ग से रणकपुर-जवाईबान्ध तक पर्यटन को पंख लगेंगे।
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