दरअसल, सोजत रोड कस्बे का महेन्द्र सोनी पुत्र तीर्थराज सोनी विगत चार वर्षों से यूक्रेन में एमबीबीएस कर रहा है। महेन्द्र नें बताया कि गत 28 फरवरी को इंडियन एडवाइजरी जारी हुई थी, जिसमें यह कहा गया था की जिनका रुकना जरुरी नहीं, वे लोग भारत जा सकते है। लेकिन पढ़ाई व एक्जाम के चलते ये 15 लोग होस्टल में ही रुक गए। लेकिन एक मार्च को परिजनों नें फोन कर महेन्द्र को सूचना दी कि रूस ने यूक्रेन पर हमला कर दिया है। तब महेन्द्र ने यूक्रेन में इंडियन एम्बेसी में कॉल कर सहायता मांगी तो उन्हें तुरन्त कीव सेंट्रल स्टेशन पहुंचने का कहा गया। लेकिन मात्र 22 किलोमीटर लम्बा यह रास्ता तय करने में उन्हें गाड़ी से करीब चार से पांच घंटे लग गए।
महेन्द्र ने बताया कि जब वे अपने 15 साथियों के साथ कीव स्टेशन पहुंचे तो वहां उनकी सहायता करने के लिए कोई मौजूद नहीं था। इसके अलावा स्थानीय लोग भी युद्ध के चलते कीव छोड़ रहे थे, तो वहां बहुत ज्यादा भीड़ थी। जिसके चलते उन्हें ट्रेन में जगह नही मिली। दूसरे दिन शाम को उन्होंने ट्रेन पकड़ी तथा लवीव पहुंचे, जहां से वे अपने स्तर पर बस कर स्लोवाकिया बॉर्डर पहुंचे। जहां उन्हे भारतीय वायुसेना के प्लेन से भारत लाया गया और गाजियाबाद एअरपोर्ट से उन सभी लोगों को फ्लाइट द्वारा अपने अपने राज्य भेजा गया। महेन्द्र ने बताया कि चार दिनों का यह सफर उन्हें जिंदगी भर याद रहेगा।
हर तरफ धमाकों की आवाज
महेन्द्र ने बताया कि यूक्रेन पर रूस के हमले की सूचना के तुरन्त बाद सभी यूक्रेन से निकलने की कोशिश में लग ग्ए। यूक्रेन से निकलने के दौरान करीब दो दिन उन्होंने धमाकों के बीच यात्रा में बिताए। उन्होंने बताया कि धमाकों की आवाज इतनी तेज होती थी कि वे सभी सहम जाते थे। चारों ओर मिसाइलों के हमलों से कुछ भी समझ नहीं आ रहा था, लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी, अपने जूनियर को भी साथ लेने की जिद्द करते 15 छात्रों को अपने साथ लेकर रवाना हुआ और आखिरकार बॉर्डर पार की।
महेन्द्र ने बताया कि यूक्रेन पर रूस के हमले की सूचना के तुरन्त बाद सभी यूक्रेन से निकलने की कोशिश में लग ग्ए। यूक्रेन से निकलने के दौरान करीब दो दिन उन्होंने धमाकों के बीच यात्रा में बिताए। उन्होंने बताया कि धमाकों की आवाज इतनी तेज होती थी कि वे सभी सहम जाते थे। चारों ओर मिसाइलों के हमलों से कुछ भी समझ नहीं आ रहा था, लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी, अपने जूनियर को भी साथ लेने की जिद्द करते 15 छात्रों को अपने साथ लेकर रवाना हुआ और आखिरकार बॉर्डर पार की।
जूनियर को साथ लेने की जिद के चलते छूटी ट्रेन
महेन्द्र ने बताया कि उनके साथ कई नए छात्र भी थे। जिन्हे यूक्रेन आए ज्यादा समय नहीं हुआ था। उन्हें भी साथ लेना जरूरी था, ऐसे हालात में महेन्द्र नें सभी छात्रों के गार्जियन की जिम्मेदारी निभाई। सभी को सुरक्षित साथ लाने की जिद के चलते वे ट्रेन भी चूक गए। जिसके चलते इनको एक रात कीव रेलवे स्टेशन पर गुजारनी पड़ी।
महेन्द्र ने बताया कि उनके साथ कई नए छात्र भी थे। जिन्हे यूक्रेन आए ज्यादा समय नहीं हुआ था। उन्हें भी साथ लेना जरूरी था, ऐसे हालात में महेन्द्र नें सभी छात्रों के गार्जियन की जिम्मेदारी निभाई। सभी को सुरक्षित साथ लाने की जिद के चलते वे ट्रेन भी चूक गए। जिसके चलते इनको एक रात कीव रेलवे स्टेशन पर गुजारनी पड़ी।