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कांग्रेस प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने GDP का नया अर्थ बताया, की ये बड़ी टिप्पणी

locationपानीपतPublished: Sep 03, 2020 07:14:13 pm

Submitted by:

Bhanu Pratap

73 साल में पहली बार ‘अर्थव्यवस्था और आम आदमी’, दोनों की कमर तोड़ी
‘आर्थिक तबाही व वित्तीय आपातकाल’ में धकेल रहे हैं देश को
‘नोटबंदी-जीएसटी-देशबंदी’ मास्टर स्ट्रोक नहीं, असल में हैं ‘डिज़ास्टर स्ट्रोक’

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चंडीगढ़। भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस के मुख्य प्रवक्ता रणदीप सिंह सुरजेवाला ने भारती बिगड़ती अर्थव्यवस्था को लेकर गंभीर टिप्पणी की है। उन्होँने कहा है- आज देश में चारों ओर आर्थिक तबाही का घनघोर अंधेरा है। रोजी, रोटी, रोजगार खत्म हो गए हैं तथा धंधे, व्यवसाय व उद्योग ठप्प पड़े हैं। अर्थव्यवस्था बर्बाद हो गई है तथा जीडीपी पाताल में है। देश को आर्थिक आपातकाल की ओर धकेला जा रहा है। 6 साल से ‘एक्ट ऑफ फ्रॉड’ से अर्थव्यवस्था को डुबोने वाली मोदी सरकार अब इसका जिम्मा ‘एक्ट ऑफ गॉड’ यानि भगवान पर मढ़कर अपना पीछा छुड़वाना चाहती है। सच ही है, जो भगवान को भी धोखा दे रहे हैं, वो इंसान और अर्थव्यवस्था को कहां बख्शेंगे!
GDP – ‘G-गिरती, D-डूबती, P- पिछड़ती’ अर्थव्यवस्था

73 साल में पहली बार जीडीपी का पहली तिमाही में घटकर माईनस 24 प्रतिशत होने का मतलब है कि देशवासियों की औसत आय धड़ाम से गिरेगी। जीडीपी के ध्वस्त होने के असर का साधारण व्यक्ति पर आंकलन करते हुए विशेषज्ञ बताते हैं कि 2019-20 में प्रति व्यक्ति सालाना आय ₹1,35,050 आंकी गई। साल 2020-21 की पहली तिमाही (अप्रैल से जून) में जीडीपी माईनस 24 प्रतिशत गिरी। दूसरी तिमाही (जुलाई से सितंबर) में हाल इससे भी बुरा है। यानि पूरे साल में अगर जीडीपी माईनस 11 प्रतिशत तक भी गिरी, तो आम देशवासी की आय में बढ़ोत्तरी होने की जगह सालाना ₹14,900 कम हो जाएगी। एक तरफ महंगाई की मार, दूसरी ओर सरकारी टैक्सों की भरमार और तीसरी ओर मंदी की मार – तीनों मिलकर आम आदमी की कमर तोड़ डालेंगे।
टूटा सबका विश्वास, छोड़ा सबका साथ

उन्होंने कहा- लोगों का विश्वास सरकार से पूरी तरह उठ चुका है। लघु, छोटे और मध्यम उद्योगों से पूछिए, तो वो बताएंगे कि बैंक न तो कर्ज देते हैं और न ही वित्तमंत्री की बात में कोई वज़न। उधर बैंकों को सरकार की बात पर विश्वास नहीं और सरकार को रिज़र्व बैंक ऑफ इंडिया पर विश्वास नहीं। प्रांतों को केंद्रीय सरकार की बात पर विश्वास नहीं और जनता को सरकार पर विश्वास नहीं। चारों तरफ केवल अविश्वास का माहौल है। मोदी सरकार का 20 लाख करोड़ का ‘जुमला आर्थिक पैकेज’ भी डूबती अर्थव्यवस्था, आर्थिक तबाही व गिरती जीडीपी को रोकने में फेल साबित हुआ। टूटे विश्वास व छूटते साथ का इससे बड़ा सबूत क्या होगा?
भयानक आर्थिक मंदी का सच – आँकड़े कभी झूठ नहीं बोलते

श्री सुरजेवाला न कहा- ‘झूठ का व्यापार’ और ‘भ्रम का प्रचार’ कर रही मोदी सरकार सच का आईना देखने से इनकार कर रही है। पर सच्चाई क्या है:-
I) आर्थिक बर्बादी के चलते 40 करोड़ हिंदुस्तानी गरीबी रेखा से नीचे धकेले जा रहे हैं। (ILO रिपोर्ट)

II) भयानक आर्थिक मंदी के बीच 80 लाख लोगों ने EPFO से 30,000 करोड़ मजबूरन निकाले।
III) अप्रैल से जुलाई, 2020 के बीच 2 करोड़ नौकरीपेशा लोगों की नौकरियां चली गईं। असंगठित क्षेत्र में लॉकडाऊन यानि देशबंदी के दौरान 10 करोड़ से अधिक नौकरियां गईं। (CMIE)

IV) देश की 6.3 करोड़ डैडम् इकाईयों में से केवल एक चौथाई ही 50 प्रतिशत उत्पादन कर पा रहे हैं। अधिकतर धंधे ठप्प हैं या बंद होने की कगार पर हैं।
V) साल 2020-21 की पहली तिमाही की जीडीपी में कंस्ट्रक्शन सेक्टर में माईनस 50.3 प्रतिशत की गिरावट, ट्रेड-होटल-ट्रांसपोर्ट में माईनस 47 प्रतिशत की गिरावट, मैनुफैक्चरिंग में माईनस 39.3 प्रतिशत की गिरावट व सर्विस सेक्टर में माईनस 26 प्रतिशत की गिरावट का मतलब है कि करोड़ों रोजगार चले गए और भविष्य में भी रिकवरी की उम्मीद नहीं।
VI) एसबीआई की 1 सितंबर, 2020 की रिपोर्ट के मुताबिक 2020-21 के पूरे साल की जीडीपी माईनस 10.9 प्रतिशत होगी।

केंद्र सरकार हुई ‘डिफॉल्टर’

उन्होंने कहा- 73 साल में पहली बार केंद्र सरकार घोषित रूप से डिफॉल्टर हो गई है। वित्त सचिव ने 11 अगस्त, 2020 को संसद की ‘वित्तीय मामलों की स्थायी समिति’ को साफ तौर से कहा कि भारत सरकार GST में प्रांतों का हिस्सा नहीं दे सकती व प्रांत कर्ज लेकर काम चलाएं। यही नहीं, 2020-21 में प्रांतों को GST कलेक्शन में 3 लाख करोड़ का नुकसान होने वाला है (SBI Report)। फिर प्रांत अपना खर्च कैसे चलाएंगे, जब केंद्र सरकार GST में उनका हिस्सा देने से इंकार कर रही है। यह आर्थिक अराजकता है।
किसान-मजदूर-मध्यम वर्ग पर सुनियोजित हमला

कांग्रेस प्रवक्ता ने कहा- आर्थिक मंदी की मार सह रहे मध्यमवर्गीय व नौकरीपेशा लोगों को ईएमआई भुगतान का समय 31 अगस्त, 2020 से आगे न बढ़ा तथा लॉकडाऊन के दौरान ईएमआई पर ब्याज वसूलने के निर्णय का शपथपत्र मोदी सरकार ने 31 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट में दाखिल किया। सारी उम्मीदें टूट गईं। यह जले पर घाव नहीं तो क्या है?
II) किसान-मजदूर का नाम ले अपनी झूठी पीठ ठोंकने वाली सरकार ने उन्हें आत्महत्या की ड्योढ़ी पर पहुंचा दिया है। एनसीआरबी के मुताबिक साल 2019 में 42,480 किसान-मजदूर आत्महत्या को मजबूर हुए, यानि आर्थिक संकट के चलते रोज 116 किसान-मजदूरों की जिंदगी को आत्महत्या ने निगल लिया।
III) यही हाल बेरोजगारों का है। एनसीआरबी के मुताबिक साल 2019 में 14,019 बेरोजगार आत्महत्या को मजबूर हुए, यानि नौकरी के अभाव में रोज 38 बेरोजगारों को अपनी जान से हाथ धोना पड़ा।

विकराल आर्थिक संकट की घड़ी
कांग्रेस ने नेता सुरजेवाला ने आरोप लगाया कि मोदी सरकार देश की अर्थव्यवस्था, उद्योगों की तरक्की, किसानों की मेहनत, युवाओं के रोजगार – सबको हराकर अपने दल की जीत की स्वार्थसिद्धि में लगी है। विकराल आर्थिक संकट की घड़ी में देश की तरक्की मोरों को दाना चुगा, फोटो अपॉर्च्युनिटी बनाने वाले आत्ममुग्ध ‘परिधानमंत्री’ व चापलूस दरबारी कदापि नहीं कर सकते। इसके लिए ‘टेलीविज़न से विज़न’, ‘झूठ से सच’, ‘झांसों से वास्तविकता’ व ‘कथनी से करनी’ तक का सफर तय करना आवश्यक है। समय आ गया है, कि देश को इस अंधेरी गुफा से निकाल नए रास्ते पर ले जाया जाए। आर्थिक तबाही, बर्बादी व वित्तीय आपातकाल से उबरने का यही एक सूत्र है
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