हरियाणा गठन के बाद प्रदेश में पहले मुख्यमंत्री बने भगवत दयाल शर्मा। उसके बाद राव बीरेंद्र सिंह ने 1967 में हरियाणा विशाल पार्टी का गठन करके सत्ता हासिल की। कुछ समय बाद उनके दो विधायकों गया राम व हीरानंद आर्य ने मोर्चा खोल दिया। प्रदेश में सबसे पहले वर्ष 1977 में स्वर्गीय ताऊ देवीलाल के नेतृत्व में महागठबंधन बना। जिसमें कई राजनीतिक दलों और वरिष्ठ नेताओं ने अपनी उपस्थिति दर्ज करवाई। इस गठबंधन ने सत्ता भी हासिल कर ली। कुछ समय बाद स्वर्गीय भजनलाल ने विधायकों को अपने साथ ले लिया और देवीलाल की सरकार गिरा दी। वर्ष 1980 में भजनलाल कांग्रेस में शामिल हो गए और सरकार बना ली। वर्ष 1987 में देवीलाल ने भाजपा के साथ गठबंधन करके सरकार बनाई। इसके बाद राजनीतिक घटनाक्रम के बीच ओम प्रकाश चौटाला मुख्यमंत्री बन गए। भाजपा ने गठबंधन तोड़ लिया और सरकार अल्पमत में चली गई। इसके बाद 1996 में बंसीलाल ने कांग्रेस से अलग होकर हरियाणा विकास पार्टी बनाई और भाजपा के साथ गठबंधन करके सत्ता में आ गए। वर्ष 1999 में भाजपा ने समर्थन वापस लिया तो बंसीलाल की सरकार चली गई। इस बीच कुछ समय के लिए इनेलो व भाजपा का गठबंधन हुआ तो चौटाला भी सत्ता की सीढी चढ़ गए। यह गठबंधन भी लंबा नहीं चला। हरियाणा में इनेलो सरकार अल्पमत में आ गई और इनेलो ने केंद्र में भाजपा से समर्थन वापस ले लिया। इस बीच हुए लोकसभा चुनाव के दौरान इनेलो ने बसपा के साथ गठबंधन किया। यह गठबंधन भी लंबा नहीं चल सका।
इसके बाद कुछ समय के लिए हरियाणा में गठबंधन की राजनीति शांत रही लेकिन वर्ष 2008 में लोकसभा चुनाव के मद्देनजर भाजपा व इनेलो ने गठबंधन तो किया लेकिन यहा भी ज्यादा लंबा नहीं चल सका। वर्ष 2009 में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान हरियाणा जनहित कांग्रेस व भारतीय जनता पार्टी का गठबंधन हुआ। इस गठबंधन में भी वैचारिक मतभेद पैदा हो गए। वर्ष 2014 में हुए चुनाव के दौरान भी हरियाणा में हरियाणा जनहित, कांग्रेस व बहुजन समाज पार्टी के बीच गठबंधन हुआ। जिसके आशातीत परिणाम नहीं आए और यह गठबंधन भी लंबा नहीं चला। अब हाल ही में बहुजन समाज पार्टी व इनेलो ने एक बार फिर आगामी चुनाव को देखते हुए गठबंधन किया।
इस बार यह गठबंधन चुनाव से पहले ही समाप्त हो गया है। हरियाणा में एक गठबंधन समाप्त हो गया है और अब आम आदमी पार्टी व जननायक जनता पार्टी के बीच होने वाले राजनीतिक गठबंधन को लेकर अटकलों का दौर जारी है। निकट भविष्य में इस गठबंधन की भी औपचारिक घोषणा होने जा रही है। प्रदेश में अब तक हुए राजनीतिक दलों के गठबंधनों के टूटने का मुख्य कारण इनका नेतृत्व करने वाले नेताओं की निजी महत्वाकांक्षाएं हैं। जिसके चलते गठबंधन की राजनीति कभी सिरे नहीं चढ़ सकी।