जसविंदर संधू का जन्म चार अगस्त 1955 को पिहोवा में हुआ। स्कूली शिक्षा के बाद संधू की राजनीति में रूचि बढ़ी और उन्होंने सरपंच का चुनाव लडऩे का फैसला लिया। वर्ष 1987 में जब हरियाणा में चौधरी देवीलाल की सरकार थी तो उस वक्त जसविंदर सिंह संधू अपने गांव गुमथला गढू के सरपंच बने।
वर्ष 1991 के दौरान एक तरफ लोकदल में बगावत का दौर चल रहा था तो दूसरी तरफ उसी दौरान जसविंदर सिंह संधू ने सडक़ हादसे में परेशान हुए पार्टी के कद्दावर नेता संपत सिंह के परिवार की मदद की थी। इस मदद का परिणाम यह हुआ कि बागी हुए कैबिनेट मंत्री बलबीर सिंह सैनी का टिकट काटकर जसविंदर सिंह को दे दिया गया। संधू पहला ही चुनाव जीत गए और चौटाला की पार्टी से विधानसभा में पहुंच गए।
वर्ष 1996 में संधू फिर से विधायक चुने गए, वहीं बाद में 2000 में भी वह विधायक चुने गए। ओमप्रकाश चौटाला के राज में संधू हरियाणा के कृष मंत्री बने। 2005 में कांग्रेस के प्रत्याशी हरमोहिंदर सिंह चट्ठा से वह हार गए, लेकिन कांग्रेस की सरकार जाते ही 2014 में फिर से विधायक चुने गए।
वर्ष 2014 में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान उत्तरी हरियाणा से जब चुनाव परिणाम आने शुरू हुए तो इनेलो को कालका से लेकर कुरूक्षेत्र तक हार का सामना करना पड़ा। पार्टी के अध्यक्ष अशोक अरोड़ा भी चुनाव हार गए तब जसविंद्र सिंह संधू पहले ऐसे विधायक थे जिन्होंने विपरीत परिस्थितियों में भी इनेलो की झोली में जीत डाली।
इनेलो का हुआ बड़ा राजनीतिक नुकसान
इनेलो विधायक जसविंद्र सिंह संधू के निधन के पर पार्टी ने एक स्थापित सिख नेता को गंवा दिया है। इनेलो में हुए बिखराव के दौरान भी जसङ्क्षवद्र सिंह संधू की छवि दोनों गुटों में सर्वमान्य नेता की रही है। संधू के निधन के बाद सदन में इनेलो विधायकों की संख्या 17 रह गई है। संधू के निधन के बाद एक बार फिर से प्रदेश में उपचुनाव के समीकरण बन गए हैं।