21वीं सदी में भी अंधकार और असुविधाओं से घिरा गांव
21वीं सदी में भी अंधकार और असुविधाओं से घिरे गांव का नाम है कोटा गुंजापुर और ग्राम पंचायत है जरधोवा। 400 से भी ज्यादा आबादी वाला ये गांव एक आदिवासी गांव है, करीब 75 आदिवासी परिवार 50 से भी ज्यादा सालों से गांव में रह रहे हैं। पन्ना टाइगर रिजर्व के क्षेत्र से घिरा कोटा गुंजापुर आज भी मूलभूत सुविधाओं से अछूता है। गांव में न तो बिजली है और न ही पहुंचने के लिए सड़क। सोचिए डिजिटल इंडिया के इस गांव में बिना बिजली के आखिर कैसे लोगों की जिंदगी निरंतर सालों से चल रही है। गांव के लोग बताते हैं कि सड़क न होने के कारण बीमारी के वक्त काफी दिक्कतों का सामना करना पड़ता है। बरसात के मौसम में तो रास्ता कीचड़ में तब्दील हो जाता है। जिससे निकलना तक मुश्किल होता है ऐसे में अगर कोई बीमार हो जाए तो कंधे पर टांगकर ले जाना पड़ता है। टाइगर रिजर्व से लगा होने के कारण जंगली जानवरों का खतरा भी गांव वालों को बना रहता है।
गांव तक पहुंची शासन की ये योजनाएं
अगर गांव तक पहुंची शासन की योजनाओं की बात करें तो 5वीं तक प्राथमिक स्कूल गांव में हैं। गांव के अंदर आरसीसी निर्माण भी पंचायत के माध्यम से करवा दिया गया है लेकिन मुख्य सड़क और बिजली अभी भी गुल है। देश के हर घर और गांव तक बिजली पहुंचाने के लिए पीएम नरेन्द्र मोदी की सौभाग्य योजना देशभर में चल रही है लेकिन इस गांव का सौभाग्य कब आएगा इसका ग्रामीणों को बरसों से इंतजार है।
चिमनी की रोशनी में भविष्य का अंधकार मिटाते बच्चे
गांव के बच्चे पढ़ाई करना चाहते हैं लेकिन मजबूरी है कि दिन ढलते ही अंधेरा होने के बाद उन्हें चिमनियों के सहारे अपने उज्जवल भविष्य का ककहरा पढ़ना पड़ता है। ऐसा नहीं है कि जिम्मेदारों को गांव की समस्याओं के बारे में जानकारी नहीं है। जिला पंचायत अध्यक्ष का कहना है कि गांव वन विभाग के इलाके में है और पहले भी वहां बिजली और सड़क बनवाने के प्रयास किए जा चुके हैं। वन विभाग से बातचीत की जा रही है।
मोबाइल भी ‘मुसीबत’ है !
डिजिटल इंडिया के जमाने में जहां एक तरफ लगभग हर आदमी के हाथों में एन्ड्राय्ड मोबाइल हैं तो वहीं इस गांव में महज कुछ लोग ही हैं जो मोबाइल रखते हैं। दरअसल इनके लिए मोबाइल भी किसी मुसीबत से कम नहीं है क्योंकि अगर डिस्चार्ज हो गया तो दो किलोमीटर दूर जाकर उसे चार्ज करना पड़ता है। तो सवाल यही है कि आखिर कब तक इस गांव को बिजली और सड़क का इंतजार करना पड़ेगा, आखिर कब विकास की चिड़िया इस गांव तक पहुंचेगी और गांववालों के दिक्कतें फुर्रर होंगी।
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