पहले रैंक की उम्मीद तो किसी को नहीं होती
श्रीयांश बताते हैं कि पहले रैंक की उम्मीद तो किसी को नहीं होती है। हां पेपर जरूर सभी अच्छे गए थे। इंटरव्यू भी अच्छा गया गया। इससे उम्मीद थी कि रैंक अच्छी आएगी और कोई अच्छी नौकरी मिलेगी। इससे पहले वे बीते कई सालों से प्रशासनिक सेवाओं के लिए लगतार तैयारी कर रहे थे। उन्होंने इनफोसिस के अलावा आईसीआईसीआई, सिंडीकट सहित कई बैंकों में विभिन्न पदों पर काम करते हुए भी तैयारी कर रहे थे।
श्रीयांश बताते हैं कि पहले रैंक की उम्मीद तो किसी को नहीं होती है। हां पेपर जरूर सभी अच्छे गए थे। इंटरव्यू भी अच्छा गया गया। इससे उम्मीद थी कि रैंक अच्छी आएगी और कोई अच्छी नौकरी मिलेगी। इससे पहले वे बीते कई सालों से प्रशासनिक सेवाओं के लिए लगतार तैयारी कर रहे थे। उन्होंने इनफोसिस के अलावा आईसीआईसीआई, सिंडीकट सहित कई बैंकों में विभिन्न पदों पर काम करते हुए भी तैयारी कर रहे थे।
नौकरी छोड़कर की तैयारी
श्रीयांश के बताया दो बार यूपीएससी में नहीं होने के बाद लगा कि मेरे साथ के लोगों का चयन हो रहा है और मेरा नहीं हो पा रहा है। ऐसा लग रहा था कि नौकरी के कारण तैयारी में कुछ कमी रह जा रही थी। इससे नौकरी छोड़ दी और बीते 4-5 साल से सिर्फ प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में जुट गए थे। पिता के सपने को साकार करने के लिए उन्होंने दिनरात एक कर दिया। इसके बाद यह सफलता मिली है। उनकी स्कूल स्तर की शिक्षा कटनी में हुई है। इसके बाद एनएलसीटी से आईटी से इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की।
श्रीयांश के बताया दो बार यूपीएससी में नहीं होने के बाद लगा कि मेरे साथ के लोगों का चयन हो रहा है और मेरा नहीं हो पा रहा है। ऐसा लग रहा था कि नौकरी के कारण तैयारी में कुछ कमी रह जा रही थी। इससे नौकरी छोड़ दी और बीते 4-5 साल से सिर्फ प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी में जुट गए थे। पिता के सपने को साकार करने के लिए उन्होंने दिनरात एक कर दिया। इसके बाद यह सफलता मिली है। उनकी स्कूल स्तर की शिक्षा कटनी में हुई है। इसके बाद एनएलसीटी से आईटी से इंजीनियरिंग की पढ़ाई पूरी की।
एमपी में कम हैं अवसर
उन्होंने बताया, एमपी में अवसर कम होने के कारण ही उन्होंने पहली बार बिहार पीएससी की परीक्षा में हिस्सा लिया। प्रदेश में सरकार जहां हर साल 250 से 300 सीटें निकलती है, वहीं प्रदेश के बराबर राजस्थान में 1100 से 1200 सीटें निकलती हैं। इस बार बिहार में 1400 सीटें आई हैं। प्रदेश में कम सीटें होने से जहां प्रशासनिक सेवा की तैयारी कर रहे युवा पलायन कर रहे हैं वहीं प्रदेश की प्रशासनिक व्यवस्था भी कमजोर हो रही हैं।
उन्होंने बताया, एमपी में अवसर कम होने के कारण ही उन्होंने पहली बार बिहार पीएससी की परीक्षा में हिस्सा लिया। प्रदेश में सरकार जहां हर साल 250 से 300 सीटें निकलती है, वहीं प्रदेश के बराबर राजस्थान में 1100 से 1200 सीटें निकलती हैं। इस बार बिहार में 1400 सीटें आई हैं। प्रदेश में कम सीटें होने से जहां प्रशासनिक सेवा की तैयारी कर रहे युवा पलायन कर रहे हैं वहीं प्रदेश की प्रशासनिक व्यवस्था भी कमजोर हो रही हैं।
श्रीयांश अपनी माता-पिता के इकलौते बेटे हैं। वे मध्यम वर्गीय परिवार से संबंध रखते हैं। उनके पिता स्व. अवधेश तिवारी जिला खाद्य एवं आपूर्तिअधिकारी रहे हैं, और मां सरिता तिवारी कन्या मिडिल स्कूल में टीचर हैं। श्रीयाशं ने अपनी तैयारी भोपाल और दिल्ली में रहकर की है। उन्होंने अपनी सफलता का श्रेय माता-पिता को दिया है। उन्होंने कहा, सफलता का कोई विकल्प नहीं। मेहनत के बलबूते ही सफलता पाई जा सकती है।
श्रीयांश शाहनगर के बेहद सम्मानित परिसर से हैं। उनके परीक्षा परिणाम के बारे में शाहनगर और जिले के लोगों को जानकारी लगी तो लोग फूले नहीं समा रहे हैं। श्रीयांश और उनके परिवार के लोगों को बाधाई देने वालों का तांता लगा हुआ है। बड़ी संख्या में लोग शाम से उनके घर में पहुंचकर बधाईयां दे रहे हैं।