यानी जो बच्चे पैदा ही नहीं हुए उन्हें भी यह टीके लगा दिए हैं। दरअसल, यह रिपोर्ट प्रदेश सरकार की हेल्थ बुलेटिन में दर्ज है, जो सीधे केंद्र तक पहुंचती है। पूर्व में भी इसी तरह तैयार की गई रिपोर्ट की पत्रिका ने पड़ताल की थी, जिसमें इसी तरह के आंकड़े दर्ज मिले थे। इसके बाद भी स्वास्थ्य विभाग के आला अधिकारी रिपोर्टिंग टीम पर किसी भी तरह की नकेल नहीं कस पा रहा है।
बुलेटिन की रिपोर्ट पर गौर करें तो संभाग में सबसे ज्यादा गड़बड़ी सागर जिले की रिपोर्ट में दिखाई जा रही है। यहां अप्रैल से सितम्बर में 18483 बच्चों ने जन्म लिया था। इतने ही टीके बच्चों को लगने चाहिए थे, लेकिन रिपोर्ट में 20981 शिशुओं को टीके लगे हैं। यानी 2498 अजन्मे शिशु को भी यह टीके लगाए गए हैं। साफ है या तो इसमें भ्रष्टाचार हो रहा है या फिर रिपोर्ट तैयार करने में घोर लापरवाही बरती जा रही है।
टीबी से बचाने को बीसीजी टीका 24 घंटे के भीतर जन्म लेने वाले शिशु को बीसीजी का टीका लगाया जाता है। इस टीके से बच्चे को टीबी की बीमारी होने की आशंका समाप्त हो जाती है। यह सुविधा जिला अस्पताल, स्वास्थ्य केंद्र और आंगनबाड़ी केंद्रों में होती है।
विटामिन के-1 पर नहीं ध्यान शिशुओं में प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने के लिए विटामिन के-1 का डोज भी पिलाया जाता है, लेकिन संभाग के किसी भी जिले में इस डोज को सौ फीसदी नहीं दिया जा रहा है। सागर में जन्म लेने वाले 6325 शिशुओं को यह डोज नहीं पिलाया गया।
गलत रिपोर्टिंग रिपोर्ट में संभाग के पांच जिलों से गलत जानकारियां भेजी जा रही हैं। सागर में सबसे ज्यादा लापरवाही बतरी जा रही है। वहीं, 5 जिलों की कुल रिपोर्ट को देखें तो 4773 अजन्में बच्चों को टीके लगाए गए हैं।
हालांकि इस मामले में यह कहा जा रहा है कि आंगनबाड़ी केंद्रों और अस्पताल में एक बच्चे के दो-दो जगह नाम चढऩे से स्थिति बन रही है। सवाल यहां पर है, आंगनबाड़ी केंद्रों पर बगैर टीके लगाए बच्चों के नाम चढ़ाए जा रहे हैं, जो अपराध की श्रेणी में आता है।