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एमपी के इस जिले में विशेष ग्रीन इंडिया प्रोजेक्ट में गड़बड़ी, जानिए पूरा मामला

locationपन्नाPublished: Aug 01, 2019 12:55:55 am

Submitted by:

Bajrangi rathore

एमपी के इस जिले में विशेष ग्रीन इंडिया प्रोजेक्ट में गड़बड़ी, जानिए पूरा मामला

 Disturbances in Special Green India Project in this district of MP, know the whole case

Disturbances in Special Green India Project in this district of MP, know the whole case

पन्ना। मप्र के पन्ना जिले के दक्षिण वन मंडल सलेहा के कल्दा पठार के बिगड़े वन को सुधारने के लिए विशेष ग्रीन इंडिया प्रोजेक्ट के तहत काम कराया जा रहा है। अच्छे खासे बजट वाले इस प्रोजेक्ट के क्रियान्वयन में विभागीय अधिकारियों द्वारा जमकर गड़बड़ी की जा रही है।
प्रोजेक्ट के तहत लगे बोर्ड में कार्यावधि और लागत तक का उल्लेख नहीं है। मजदूरों को भी न्यूनतम 294 की जगह 150 रुपए प्रतिदिन मजदूरी का भुगतान किया जा रहा है। परियोजना के तहत निर्धारित मानकों को भी पूरा नहीं किया जा रहा है। कहीं ऐसा ना हो कि जिस प्रकार से बुंदेलखंड पैकेज के तहत हुए निर्माण कार्यों में भ्रष्टाचार सामने आया था उसी प्रकार ग्रीन इंडिया पैकेज भी भ्रष्टाचार की भेंट न चढ़ जाए।
विभाग के रेंजर और एसडीओ मुख्यालय में नियमित रूप से नहीं रहते हैं, जिला मुख्यालय से दूर होने के कारण जिला स्तर के अधिकारी भी कल्दा कम ही आते हैं। इसी कारण से इस बेहद महत्व के इस प्रोजेक्ट की ओर किसी का ध्यान अब तक नहीं गया है। गौरतलब है कि जिले का कल्दा पठार का क्षेत्र बुंदेलख्ंाड के कुल्लू -मनाली की तरह है। राजशाही जमाने में पन्ना रियासत के राजा गर्मी का समय व्यतीत करने के लिए इसी क्षेत्र में भी जाते थे।
जिला मुख्यालय से दूरस्थ होने के कारण यह अभी भी विकास की मुख्यधारा से कटा हुआ है। यहां के लोगों को मूलभूत सुविधाओं के लिए अभी भी संघर्ष करना पड़ता है। यहां सैकड़ों की संख्या में वैध और अवैध पत्थर खदानों के कारण पूरा पहाड़ नष्ट हो रहा है।
यहां नष्ट हो रहे वनों के सुधार के लिए ही बुंदेलखंड विशेष पैकेज के तहत ही ग्रीन इंडिया प्रोजेक्ट शुरू किया गया है। दो साल पहले यह प्रोजेक्ट बना था और इसी साल इसमें काम शुरू हुआ है। इसमें कल्दा रेंज के कक्ष क्रमांक धरमपुरा ८७४ में 100 हेक्टेयर और कक्ष क्रमांक 873 में 150 हेक्टेयर में मिली वाटर शेड के साथ ही पौधरोपण का काम भी किया जाना है। उक्त क्षेत्रफल में वाटर शेडका काम करने के साथ ही करीब ढाई से तीन लाख पौधे लागाया जाना है।
पौधरोपण के पहले की तैयारियों में लापरवाही

जानकारी के अनुसार कहीं भी प्लांटेशन होने के जरूरी होता है कि पूरे क्षेत्र की सफाई करने के बाद उसे तारबाड़ी लगाकर सुरक्षित किया जाए। इसके बाद गड्ढे खोदकर उसमें देशी खाद सहित विभिन्न प्रकार की सामग्री डालने के बाद पौधरोपण किया जाना है। मौके का निरीक्षण करने पर पाया गया कि विभाग द्वारा पूरे क्षेत्र में नई तारबाड़ी लगाकर पौधों को सुरक्षित नहीं किया गया है।
पुरानी खखरी की आड़ में ही पौधरोपण करा दिया गया है, जबकि कई स्थानों से खररी टूट भी गई है। यहां काम कर रहे मजदूरों से चर्चा के दौरान पता चला कि पौधरोपण के पूर्वखाद भी महज औपचारिकता के लिए डाली जा रही है। इसके अलावा बोर्ड में यह भी नहीं लिखा गया है कि उक्त कार्य की लागत कितनी है और काम को कब पूरा करना है।
विभागीय सूत्र बताते हैं कि दोनों बोर्ड में कार्य में वर्ष 2018-19 लिखा हुआ है। इसका मतलब यह हुआ कि उक्त कार्य के लिए मार्च तक का समय तैयारी का था। इसके बाद जुलाई अंत तक पूरा प्लांटेशन का काम हो जाना चाहिए थे, लेकिन यहां अभी तक तो तारबाड़ी ही नहीं लग पाई है। इससे यह काम निर्धारित समय से काफी पीछे चल रहा है।
विभागीय सूत्रों के अनुसार यह काम विशेष पैकेज के तहत हो रहा है। इससे इसमें सभी कामों के लिए सामान्य प्रोजक्ट के तहत होने वाले कामों से अधिक राशि मिलती है। इसके बाद भी जिम्मेदारों की यह लापरवाही समझ से परे हैं।
मजदूरों का भी किया जा रहा शोषण

यहां काम कर रहे मजदूरों ने बताया, 150 रुपए की मजदूरी के हिसाब से रुपए दिए जा रहे हैं। कुछ लोगों को 150 रुपए नकद दिए जाते हैं तो कुछ लोगों को खातों में राशि दी जाती है। जिन लोगों को खातों में राशि दी भी जा रही है उनके दस्तखत कराकर वापस ले ली जाती है। कभी कोई अधिकारी आया भी तो वह सड़क से ही खड़े होकर वापस चला जाता है। इससे मजदूरों के शोषण की जानकारी उन्हें लग ही नहीं पाती है।
मजदूरों को निर्धारित मजदूरी नहीं देनी पड़े इसके लिए दबाव बनाने के लिए पूर्व में बाहर से मजदूर बुलाए गए थे, जिनसे काम तो 150 रुपए के हिसाब से ही कराया गया था, लेकिन उन्हें मजदूरी का भुगतान नहीं हो पाने के कारण उन्होंने कलेक्ट्रेट में डेरा डाल लिया था।
बाहर के मजदूरों के कम रुपए में काम करने के कारण दबाव में आकर यहां के लोगों को भी कम मजदूरी में ही काम करना पड़ता है, क्योंकि लोगों को और कहीं कोई काम ही नहीं मिलता है। एसडीओ कल्दा हेमंत यादव और रेंजर एमडी मानिकपुरी अपने मुख्यालय कल्दा में नियमित रूप से नहीं रहते हैं।
इसके कारण भी मैदानी अमले द्वारा की जा रही गड़बड़ी की उन्हें ज्यादा जानकारी ही नहीं होती है। मुख्यालय से भी अधिकारी यहां नहीं पहुंचते हैं। इससे इस ओर कोई ध्यान ही नहीं दे रहा है। जो अधिकारी यहां आते भी हैं उनका ध्यान काम में कम पिकनिक मनाने में ज्यादा होता है। इसी कारण से यह क्षेत्र आज तक विकास की मुख्य धारा से नहीं जुड़ पाया है।
क्या कहते हैं जिम्मेदार
सभी को ई-पेमेंट हो रहा है। नकदी की बात ही नहीं है। सभी कार्यों की राशि अलग-अलग स्वीकृत है।
मीना मिश्रा, डीएफओ दक्षिण वन मंडल

किसी को नकद रुपए नहीं देते हैं। जो मजदूर काम करते हैं उन्हें मजदूरी एकाउंट में दी जाती है। बोर्ड में लागत लिखी है। समय सीमा नहीं लिखा है। उसे लिखवा दिया जाएगा। फेंसिंग का काम पूरा होने के बाद ही पौधरोपण किया गया है।
हेमंत यादव, एसडीओ कल्दा
मजदूरों को कम मजदूरी देने की बात मेरी जानकारी नहीं है। मंै प्रोजेक्ट देखकर ही डिटेल में बता पाऊंगा। अभी मैं फील्ड में हूं।
एमडी मनिकपुरी रेंजर कल्दा

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