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रूठे देव को मनाने पालकी में सवार होकर जनकपुर पहुंचीं देवी लक्ष्मी

locationपन्नाPublished: Jul 10, 2019 11:27:27 pm

Submitted by:

Anil kumar

बिटिया के स्वागत में उमड़े जनकपुर और लक्ष्मीपुर के लोग

Grand reception with music

Grand reception with music

पन्ना. पन्ना का ऐतिहासिक जगन्नाथ स्वामी रथ यात्रा महोत्सव चरम पर पहुंचने के बाद अब धीरे-धीरे समापन की ओर बढ़ रहा है। रथ यात्रा महोत्सव के अगले चरण के तहत मंगलवार की शाम देवी लक्ष्मी की झांकी गाजे-बाजे के साथ नगर भ्रमण को निकली। यहां से रूठकर जनकपुर में डेरा डाले भगवान को मनाकर वापस लाने के लिये वे जनकपुर के लिये प्रस्थान हुईं। उनके डोले के पीछे करीब एक दर्जन कहारों की टोली चल रही थी। उसके बाद गाजे-बाजे के बीच श्रद्धालुओं की भीड़ चल रही थी। श्रद्धालुओं ने देवी के पालकी की जगह-जगह आरती उतारी और देवी लक्ष्मी से सुख-समृद्धि साहित अच्छे मानसून की कामना की।
गौरतलब है कि रथ यात्रा के मुख्य महोत्सव के तहत भगवान देवी लक्ष्मी से रूठकर भाई बलभद्र और बहन सुभद्रा के साथ रथों में सवार होकर जनकपुर के लिये निकलते हैं। भगवान जनकपुर में तीन दिनों से ठहरे हुए हैं। भगवान का इस तरह से बिन बुलाए मेहमान की तरह ससुराल जाना और फिर वहा कई दिनों तक रुकना देवी लक्ष्मी को अच्छा नहीं लगा । इससे वे रूठे देव को मनाने और उन्हें वापस लाने के लिये खुद मायके जाने का निर्णय लेती हैं। उनके एक आदेश पर कहारों की टोली भी उपलब्ध हो जाती हैऔर पालकी थी। पालकी में बैठकर देवी गाजे-बाजे के साथ नगर भ्रमण को निकलीं तो नगर के लोग उनके दर्शनों के लिये उमड़ पड़े। बड़ी संख्या में श्रद्धालुओं ने जगह-जगह मार्ग में देवी लक्ष्मी की आरती उतारी। उनसे सुख-समृद्धि और अच्छे मानसून की कामना की।
जनकपुर में देवी की भव्य अगवानी: जनकपुर और लक्ष्मीपुर के लोगों को जब पता चला कि उनकी बिटिया डोली में सवार होकर मायके आ रही है तो सभी उनकी अगवानी में लग गए। देव के जनकपुर की सीमा में प्रवेश करते ही मंगल कलश जलाकर गाजे-बाजे के साथ उनकी अगवानी की गई। समस्त औपचारिकताओं और स्वागत के बाद देवी लक्ष्मी मंदिर के गर्भगृह में पहुंची और यहां पहुंचने के बाद उन्होंने रूठे देव को मनाकर घर वापस चलने के लिए कहा। लेकिन वे भगवान को वापस चलने के लिए नहीं मना पाईं। इससे वे भगवान के दोनों हाथ बांधकर शाम हो ही वापस लौट आईं। उधर देवी लक्ष्मी के रूठकर जोन से भगवान विचलित हो जाते हैं और उन्हें मनाने के लिये ससुराल से वापस चल पड़ते हैं। भगवान के रथ यात्रा की वापसी बुधवार से शुरू होगी।
पांच किमी. का सफर कहारों ने पैदल तय किया
आवागमन के अत्याधुनिक संसाधनों की उपलब्धता के बाद भी प्राचीन परंपरा के अनुसार ही कहारों की टोली जगन्नाथ मंदिर से देवी की पालकी को कंधे पर रखकर पांच किमी. पैदल चलकर जनकपुर तक पहुंचे। करीब आधा घंटे तक पालकी के रुकने के बाद देवी फिर जगन्नाथ मंदिर के लिए रवाना हुईं तो कहारों की टोली फिर से पालकी को लादकर पैदल ही पांच किमी. तक चली और मंदिर पहुंची। कहानों को पालकी लादकर इस प्रकार से कुल १० किमी. का सफर तय करना पड़ा।
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