पन्ना

ड्रोन से बाघों की निगरानी करेगा मध्यप्रदेश का ये टाइगर रिजर्व, इस तकनीक का होगा प्रयोग

गर्मी में फायर प्रोटेक्शन के उपयोग से मिले सकारात्मक परिणाम, पार्क प्रबंधन को वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया ने उपलब्ध कराया ड्रोन

पन्नाAug 24, 2018 / 01:44 pm

suresh mishra

high tech surveillance: Panna Tiger Reserve in monitoring of drones

पन्ना। बाघों की निगरानी के लिए दुनिया की सबसे हाइटेक तकनीक का उपयोग कर पन्ना टाइगर रिजर्व नया कीर्तिमान रचने जा रहा है। यह प्रदेश का पहला टाइगर रिजर्व होगा जहां बाघों की निगरानी ड्रोन कैमरे से की जाएगी। इससे पहले पन्ना टाइगर रिजर्व बाघ विहीन होने के बाद बाघ पुनर्स्थापना योजना में अप्रत्याशित सफलता कर दुनियाभर में चर्चा पा चुका है।
फील्ड डायरेक्टर केएस भदौरिया ने बताया कि टाइगर रिजर्व में बाघों की निगरानी और वन संरक्षण के लिये कंजर्वेशन ड्रोन का उपयोग किया जाएगा। वाइल्ड लाइफ इंस्टीट्यूट ऑफ इंडिया (डब्ल्यूआईआई) देहरादून की ओर से एक ड्रोन उपलब्ध कराया गया है।
जिसका इस्तेमाल बाघों की निगरानी में होगा। डब्ल्यूआईआई से अनुमति ले ली है। साथ ही, वन संरक्षण के काम में भी ड्रोन से फोटोग्राफी व वीडियोग्राफी की जाएगी। भदौरिया ने बताया, गर्मी में ड्रोन का उपयोग फायर प्रोटेक्शन के लिए किया गया था। परिणाम उत्साहजनक रहे।
एक दर्जन बाघों को रेडियो कॉलर
वर्ष 2008 में पन्ना को बाघ विहीन घोषित कर दिया गया था। इसके बाद बाघों को दोबारा बसाने के लिये दो चरणों वाली बाघ पुनर्स्थापना योजना वर्ष 2009 में शुरू की गई थी। जिसके तहत प्रदेश के कान्हा, बांधवगढ़ और पेंच टाइगर रिजर्व से 6 बाघ और बाघिनों लाकर बसाया गया। योजना शुरू होने के बाद वाइल्ड लाइफ विशेषज्ञों को उम्मीद थी बाघों के आबाद होने में 10 से 15 साल लग सकते हैं, लेकिन तत्कालीन फील्ड डायरेक्टर आर श्रीनिवास मूर्ति द्वारा बाघों को दोबारा आबाद करने में स्वदेशी तकनीक का उपयेाग किया गया। और, महज 9 साल में टाइगर रिजर्व में सबसे अधिक 40-45 बाघ मौजूद हैं। कुछ बाघों को बाहर भी भेजा जा चुका है।
विदेशों की तुलना में परेशानी
बताया गया कि, विदेशों में ग्रास लैंड होता है। वहां ड्रोन से निगरानी ज्यादा आसान होती है। जबकि पन्ना में ग्रास लैंड की बजाए पहाड़ और जंगल हैं। इससे ड्रोन से पेड़ों और झाडिय़ों के नीचे की स्थिति नहीं देखी जा सकती है। पन्ना टाइगर रिजर्व में ड्रोन से बाघों की निगरानी के लिये वर्ष 2014 के जनवरी में प्रयोग किया था। प्रयोग डब्ल्यूआईआई, विश्व प्रकृति निधि अन्तर्राष्ट्रीय कंजरवेशन, ड्रोन्स स्विटजरलैंड, राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण नई दिल्ली और मप्र वन विभाग के संयुक्त तत्वावधान में हुआ था।
बटन दबाते ही वापस
टाइगर रिजर्व को दिया गया ड्रोन अत्याधुनिक तकनीक से लैस है। एक बार में आधा घंटे उड़ता है। काफी दूरी तक जाकर अच्छी क्वालिटी के वीडियो और फोटो लेने में सक्षम है। उंचाई से भी लिए गए वीडियो और फोटोज के रिजल्ट उत्साहजनक रहे हैं। समस्या होने पर बटन दबाते ही ड्रोन लौटकर उसी प्वाइंट में आ जाता है जहां से उड़ान शुरू करता है। डब्ल्यूआईआई के विशेषज्ञों की ओर से टाइगर रिजर्व के ही दो अधिकारियों को संचालन का प्रशिक्षण दिया गया है। उम्मीद है, इस तकनीक से टाइगर रिजर्व में बाघों की बेहतर निगरानी की जा सकेगी।

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