इनके अलावा हर तिमाही में सुपोषण अभियान भी चलाया जाता है। इसके बाद भी कुपोषित बच्चों की स्थिति में उल्लेखनीय सुधार नहीं हो रहा है। हालात यह है कि सुपोषण अभियानों के बाद भी कई बार बच्चों का वजन कम पाया गया है। इसके पीछे योजनाओं के क्रियान्वयन में विभाग के मैदानी अमले की लापरवाही और समुदाय की सहभागिता की अनदेखी को बड़ा कारण माना जा रहा है।
गौरतलब है कि आंगनबाड़ी केंद्रों के बच्चों को नियमित रूप से नाश्ता और भेाजन दिया जा रहा है। साथ ही गर्भवती व धात्री महिलाओं एवं किशोरियों को पोषण आहार दिया जाता है। कुपोषित बच्चों को सेहतमंद बनाने महिला एवं बाल विकास विभाग की ओर से सुपोषण अभियान हर तीसरे माह चलाया जाता है। इसके तहत कुपोषित बच्चों को शिविर में रखकर उन्हें पूरक पोषण आहार दिया जाता है।
दिन में तीन टाइम आहार देने के साथ ही उनकी माताओं को समझाइश दी जाती है कि वह घर में ही मौजूद सामग्री से बच्चे के लिए किस प्रकार से पोषण आहार तैयार कर सकती हैं। इसके तहत सरकार की ओर से हर आंगनबाड़ी केंद्र में एक मुनगे का पेड़ भी लगवाने की पहल की गई थी। हालांकि अब वे कम जगहों पर ही बचे हैं। इस कार्य में मैदानी अमले की लापरवाही के कारण कई बार बच्चों का वजन अपेक्षानुरूप नहीं बढ़ पाता है।
अमले की लापरवाही सुपोषण अभियान के बाद भी कुपोषण हटाने की दिशा में अपेक्षित सफलता नहीं मिल पा रही है। अकसर देखा जाता है कि आंगनबाड़ी केंद्रों में बच्चे ही नहीं जाते हैं। इससे उन्हें वहां पोषण आहार नहीं मिल पाता है। आंगनबाड़ी केंद्रों द्वारा पोषण आहार के वितरण में बरती जाने वाली लापरवाही कई बार समाने आ चुकी है।
ऐसे हालात में लाख प्रयास के बाद भी अपेक्षित परिणाम नहीं मिल पा रहे हैं। मैदानी अमले द्वारा सुपोषण शिविरों को भी औपचारिकता में ही सिमटा दिया जाता है। कुपोषण दूर होने में लग रहा समय इसी का बड़ा कारण है। अधिकारियों को भी इसकी जानकारी है। मामले को गंभीरतापूर्वक नहीं लिया जा रहा है।
समुदाय की सहभागिता जरूरी कुपोषण पर काम करने वाली संस्था के समाजसेवी यूसुफ बेग ने बताया, सरकार की योजनाएं अच्छी चल रही हैं, लेकिन इनमें समुदाय की सहभागिता कम होने के कारण अपेक्षित परिणाम नहीं मिल पा रहे हैं। परिवार के लोगों द्वारा बच्चों की देखरेख पर ध्यान नहीं देने के कारण भी कुपोषण दूर करने में समस्या आ रही है।
इन अभियानों में समुदाय की सहभागिता बहुत जरूरी है। यदि समुदाय को भी शासकीय कार्यक्रमों में अधिक से अधिक सहभागी बनाने का प्रयास किया जाए तो अपेक्षित परिणाम पाए जा सकते हैं। उन्होंने बताया, जिले में रेजगार के अवसरों की कमी के कारण लोग किसी तरह से परिवार का पेट भर पाते हैं। ऐसे हालात में उनको पौष्टिक भेाजन मिलपाना मुश्किल हेाता है। यही कुपोषण का बड़ा कारण है।
जब तक आजीविका के संसाधन नहीं तलाशे जाते हैं तब तक यह समस्या खत्म होना मुश्किल है। जिला कार्यक्रम अधिकारी, महिला एवं बाल विकास भरत सिंह राजपूत के अनुसार कई बार बच्चों को दस्त लग जाते हैं या फिर उनका स्वास्थ्य खराब हो जाता है, इस कारण से सुपोषण शिविरों के बाद भी बुछ बच्चों का वजन कम हो जाता है। सुपोषण शिविरों में बच्चों के परिजनों को सामान्यतया घर में ही उपलब्ध खाद्य सामग्री से पौष्टिक भेाजन तैयार करने की विधि बताई जाती है।