पन्ना

पलायन रुके, कुपोषण मिटे तो बने बात, बेरोजगारी को लेकर आहत पन्नावासी

पलायन रुके, कुपोषण मिटे तो बने बात, बेरोजगारी को लेकर आहत पन्नावासी

पन्नाApr 30, 2019 / 01:37 am

Bajrangi rathore

loksabha election in panna district

पन्ना। लोकसभा चुनाव को लेकर मप्र ेके पन्ना जिले में चुनाव प्रचार अभियान चरम पर है। प्रमुख दलों के प्रदेश व राष्ट्रीय स्तर के नेताओं की सभाओं का दौर चल रहा है। चुनाव में देश-दुनिया की बातें तो हो रही हैं, लेकिन बुंदेलखंड के इस पिछड़े जिले की समस्याओं को लेकर कोई बात नहीं कर रहा है। जिले के १८ हजार से अधिक बच्चे कुपोषण का शिकार हैं।
हीरा और पत्थर खदानों में काम करने वाले हजारों मजदूरों के सिलिकोसिस से पीडि़त होने की आशंका है पर यहां इलाज की सुविधा नहीं है। मनरेगा की बदहाली के कारण हजारों मजदूर महानगरों की ओर पलायन करने को मजबूर हैं। इसके बाद भी लोकसभा चुनाव में आम जनता से जुड़े ये मुद्दे कहीं दिखाई नहीं दे रहे हैं।
गौरतलब है कि पन्ना बुंदेलखंड ही नहीं प्रदेश के भी सबसे पिछड़े जिलों में शामिल है। यह कुपोषण, शिशु एवं मातृ मृत्युदर में प्रदेश में सबसे अधिकता वाले जिलो में गिना जाता है। बेरोजगारी और पलायन भी बड़ी समस्या है। महिला एवं बाल विकास विभाग के आंकड़े बताते हैं कि जिले में करीब 1 लाख 10 हजार बच्चों में से 18 हजार से भी अधिक बच्चे कुपोषित हैं।
बच्चों के कुपोषित होने का प्रमुख कारण बेरोजगारी है। जिले के आदिवासी बहुल इलाकों में कुपोषण बेहद गंभीर स्तर पर है। महिलाओं की बड़ी आबादी भी एनीमिक है। इन समस्याओं के समाधान की दिशा में कोई भी राजनीतिक दल बात नहीं कर रहा है।
जिले में कुपोषण का स्तर गंभीर

जिले के 1492 आंगनबाड़ी केंद्रों में 1.10 लाख बच्चे दर्ज हैं। इनमें 6 माह से 3 साल तक के 53 हजार 27 और 3 से 6 साल तक के 57 हजार 910 बच्चे दर्ज हैं। आंगनबाड़ी केंद्रों द्वारा जनवरी में 1 लाख 817 बच्चों का वजन लिया गया। इसमें 18,528 बच्चे कुपोषित मिले। जिनमें से 74 बच्चे अति गंभीर रूप से कुपोषित थे।
इसी तरह फरवरी में 1 लाख 1 हजार 685 बच्चों का वजन किया गया, जिसमें 17,609 बच्चे कुपोषित पाए गए। इनमें से 95 बच्चे अतिगंभीर कुपोषण की स्थिति में पाए गए थे। इसी प्रकार मार्च में 1 लाख 1 हजार 901 बच्चों का वजन किया गया। इसमें 18,217 बच्चे कुपोषित पाए गए, जिनमें 47 बच्चे अतिकम वजन के पाए गए। कुपोषण का स्तर गंभीर के बाद पोषण पुनर्वास केंद्रों में बेड खाली रह जाते हैं।
चुनाव पूर्व प्रयास किया था कि राजनीतिक पार्टियां कुपोषण, बेरोजगारी, पलायन, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसे आम जनता से जुड़े मुद्दों को घोषणा-पत्र में शामिल करें। इस संबंध में लगातार मतदाताओं को जागरुक भी किया गया है, लेकिन चुनाव नजदीक आने तक कोई भी आम जनता के हित से जुड़ी समस्या पर बात नहीं कर रहा है।
यूसुफ बेग, जिलाध्यक्ष पत्थर खदान मजदूर संघ
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