इस कारण मजदूरों का मनरेगा से मोह भंग हो रहा है। हर परिवार को 100 दिन के काम की गारंटी देने वाली इस योजना में फरवरी तक मात्र 556 परिवार को ही 100 दिन का काम मिल सका है ,जबकि जिले में कुल 1 लाख 27 हजार परिवार मनरेगा में पंजीकृत हंै।
पोर्टल और जमीन में फर्क मनरेगा पोर्टल और फील्ड में मिलान नहीं हो पा रहा है। पोर्टल पर जहां काम चल रहे हैं वहां एक भी मजदूर नहीं हैं और जहां काम नहीं चल रहे वहां मजदूर काम करते हुए पाए जा रहे हैं। इसका नतीजा यह है कि मजदूरों को समय पर मजदूरी नहीं मिल रही है। कई ऐसे उदारण हैं जहां मजदूरों की मजदूरी सालों से नहीं मिली है और मजदूर भी आस छोड़ चुके हैं।
पोर्टल पर ग्राम पंचायतें 95 से 100 प्रतिशत तक 15 दिन में ही मजदूरी का भुगतान कर रही हैं, लेकिन फील्ड की जमीनी सच्चाई कुछ और ही बयां कर रही हैं। कार्य की गुणवत्ता ठीक नहीं है। कुआं जो बने वे धसक रहे हैं। सड़कें छलनी हो चुकी हैं। सड़कें छलनी हो चुकी हैं।
3.45 करोड़ भुगतान बकाया जिले में 3 करोड़ 45 लाख रुपए का भगतान बाकी है। जिसमें से 57 लाख रुपए मजदूरों का है। छोटी-छोटी राशि के रूप में हजारों मजदूरों की राशि महीनों बाद भी उन्हें नहीं मिल पाई है। मनरेगा के अनुसार मजदूरी एवं समाग्री की राशि का समय पर भगुतान नहीं होने से मजदूर पलायन को मजबूर हैं।
आज गांव में मजदूरों की संख्या बहुत कम रह गई है। इसी कारण बड़ी संख्या में लोग पलायन कर रहे हैं। लोगों के पलायन करने के सबसे बड़े कारणों में से एक है मनरेगा की बदहाली। यदि मनरेगा को मजबूत कर दिया जाए तो पलायन की समस्या को काफी हद तक कम किया जा सकता है।