प्रणामी समाज के धर्मगुरुओं ने बताया, तेरस की सवारी का आयोजन पहली बार महाराजा छत्रसाल ने किया था। सद्गुरु के सम्मान का प्रतीक कही जाने वाली इस तेरस की सवारी को लेकर मान्यता है कि जब बुंदेलखंड को चारों तरफ से औरंगजेब के सरदारों ने घेर लिया था तब महामति प्राणनाथ ने महाराजा छत्रासाल को अपनी चमत्कारी तलवार देकर विजयी होने का आशीर्वाद दिया था। और कहा था कि जब तक तुम अपने दुश्मनों को धूल चटाकर नहीं आ जाते तब तक में इसी खेजड़ा मंदिर में ही रुकूंगा। तलवार मिलने के तीसरे दिन तेरस को जब महाराजा छत्रासाल अपने दुश्मनों पर फतह हासिल कर लौटे तो अपने सद्गुरु महामति प्राणनाथ को पालकी में बिठाकर अपने कंधों का सहारा देकर प्राणनाथजी मंदिर में स्थित गुम्मट बंगला में लाए थे। जिसके प्रतीक स्वरूप तभी से यह आयोजन हर वर्ष किया जाता है। खेजड़ा मंदिर से निकली श्रीजी की सवारी को प्राणनाथ मंदिर की कुल तीन किलोमीटर तक की यात्रा में सात से आठ घंटे का समय लग जाता है।
शोभायात्राा में रथ पर सवार श्राीजी की एक झलक पाने के लिए लोग घंटों सड़क के किनारे खड़े रहे। सवारी के दौरान श्राद्धालुओं ने जगह-जगह श्रीजी की आरती उतारी गई एवं शोभा यााा में सम्मिलित सुंदरसाथ को मिठाइयां बांटी गईं। वहीं नगर वासियों द्वारा जगह-जगह पेयजल आदि की भी व्यवस्था थी। तेरस की इस विशेष शोभा यात्राा में प्राणानाथ ट्रस्ट के पदाधिकारी एवं ट्रस्ट के बाहर के पदाधिकारियों ट्रस्ट के प्रबंधक एवं समस्त यासियों सहित स्थानीय एवं देश के कोने-कोने से आए धर्माचार्य व धर्मोंप्रदेशकों की बड़ी संख्या में सहभागिता रही। आयोजन को लेकर लोगों का उत्साह देखते ही बन रहा था।