शंकरार्चाय ने बताया, उन्होंने दुखी होकर बरगद के पेड़ के नीचे बैठे राघवेंद्र सिंह को भी बुलाया और उन्हें सुझाव दिया कि यदि उनकी जमीन है और उन्हें लेना है तो वे सरकारी तरीके से आए और इस पर अपना कब्जा ले लें तो हम यहां से चले जाएंगे। यहां पहुंची तहसीलदार पन्ना बबीता राठौर ने भी उन्हें यही सुझाव दिया। इसके बाद राघवेंद्र सिंह वापस चाले गए, जबकि जीतेश् वरी देवी तब तक बैठी रहीं, जब तक कि बारिश शुरू नहीं हो गई।
तहसीलदार के जाने के बाद अपने ताले डाले
शंकराचार्य का आरोप है कि तहसीलदार के जाने के बाद जीतेश् वरी देवी फिर उठी और उनके साथ मौजूद कुछ लोगों के साथ उन्होंने कई स्थानों पर ताले डाल दिए। उनके साथ मौजूद लोग जूते पहने हुए ही मंदिर के अंदर तक गए। साधु-संतों के साथ अभद्रता की। गाली-गलौज की और यहां से नहीं जाने पर जान से मारने की धमकी दी। जिसकेा लेकर उन्होंने यहां के मुख्त्यार शिवार्चन प्रसाद उपाध्याय से पन्ना कोतवाली में शिकायत दर्ज कराई थी। जिसपर पुलिस ने अभी तक किसी प्रकार का अवराध दर्ज नहीं किया। उन्होंने मामले की शिकायत कलेक्टर से भी की थी। जिसपर जिला प्रशासन ने भी उनकी शिाकयत को गंभीरता के साथ नहीं लिया। यहां रहे रहे साधु भगवान दास पांडये ने जीतेश् वरी देवी पर गाली-गलौज कर उन्हें आश्रम से बाहर करने के आरोप लगाए हैं।