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डीएनए रिपोर्ट के आधार पर दुष्कर्म के आरोपी को मिली 10 साल की सजा, पीडि़ता पर भी चलेगा केस, जानिए कैसे

locationपन्नाPublished: Jan 31, 2019 11:17:17 pm

Submitted by:

Bajrangi rathore

डीएनए रिपोर्ट के आधार पर दुष्कर्म के आरोपी को मिली 10 साल की सजा, पीडि़ता पर भी चलेगा केस, जानिए कैसे

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पन्ना। मप्र के पन्ना जिले में ज्यादती की शिकार पीडि़ता और परिजनों द्वारा कोर्ट में बयान बदल लिए जाने के बाद भी डीएनए रिपोर्ट को कोर्ट ने प्रमाणित मानते हुए आरोपी को 10 साल के कठोर कारावास और जुर्माने की सजा सुनाई है। इसके साथ ही कोर्ट को बयान बदलकर गलत जानकारी देने के कारण पीडि़ता पर धारा ३४४ आइपीसी के तहत पृथक से अपराध दर्ज करने की बात कही गई है।
अतिरिक्त जिला लोक अभियोजन अधिकारी आशुतोष कुमार द्विवेदी ने बताया, बृजपुर थाना क्षेत्र निवासी एक व्यक्ति ने पुलिस को बताया कि उसकी पुत्री 12 मई 2018 को सुबह 8 बजे यह बताकर घर से गई कि वह मजदूरी का पैसा लेने जा रही है। इसके बाद वह लौटकर नहीं आई।
गुमशुदगी की सूचना पर थाना बृजपुर में अपराध पंजीबद्ध कर विवेचना में लिया गया। पुलिस ने पीडि़ता को 19 मई को तलाश कर लिया। पुलिस ने दस्तयावी पंचनामा तैयार कर पीडि़ता का मेडिकल परीक्षण कराया। विवेचना के दौरान आरोपी लोचन गौड़ का ब्लड सेंपल एफएसएल सागर भेजकर डीएनए परीक्षण कराया गया। जिसमें आरोपी द्वारा पीडि़ता के साथ बलात्कार की पुष्टि हुई। विवेचना उपरांत अपराध प्रमाणित पाए जाने पर अभियोग पत्र न्यायालय में प्रस्तुत किया गया।
कोर्ट में बयान से मुकरी पीडि़ता

मामले में विपरीत स्थिति तब बन गई जब पीडि़ता और परिजन ज्यादती की बात से मुकर गए। उन्होंने जिला लोक अभियोजन अधिकारी प्रवीण कुमार सिंह द्वारा कोर्ट के समक्ष प्रस्तुत तर्क का समर्थन नहीं किया, किंतु डीएनए रिपोर्ट के आधार पर मामला पूर्णत: प्रमाणित था कि आरोपी ने पीडि़ता के साथ बलात्कार किया है।
अभियोजन द्वारा प्रस्तुत तर्कों और न्यायिक दृष्टांतों के आधार पर कोर्ट ने आरोपी को दोषी पाया। मामले में विशेष न्यायाधीश अमिताभ मिश्रा ने आरोपी को धारा 376 आइपीसी में 10 साल का कठोर कारावास और 1000 रुपए के अर्थदंड, धारा 366 आइपीसी में 10 वर्ष का कठोर कारावास व 1000 रुपए के अर्थदंड, 5/6 पास्को एक्ट में 10 साल के कठोर कारावास व 1000 रुपए के अर्थदंड, धारा 363ए आइपीसी में 7 वर्ष का कठोर कारावास और 1000 रुपए के अर्थदंड से दंडित किया है।
न्यायालय ने अपने फैसले में यह भी कहा कि आरोपी के चारित्रिक अपराध की गंभीरता को देखते हुए दया का हकदार नहीं है। कोर्ट ने लिखा कि पीडि़ता की उम्र घटना के समय 15 वर्ष थी। घटना वर्ष 2018 की है। ऐसी स्थिति में पीडि़ता द्वारा न्यायालय के समक्ष असत्य कथन दिए जाने के कारण उसके विरुद्ध कार्रवाई किया जाना अति आवश्यक है। इस कारण उसके विरुद्ध पृथक से धारा 344 आइपीसी के अंतर्गत कार्रवाई की जाए। प्रकरण में शासन की ओर से जिला लोक अभियोजन अधिकारी प्रवीण कुमार सिंह ने पैरवी की।
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