मंदिर में वैशाख शुक्ल अष्टमी को शरबत का यह प्रसाद दिया जाता है। इस दिन को यहां अन्तर्धान की तिथि के रूप में मनाया जाता है। सोमवार को वैशाख शुक्ल अष्टमी पर मंदिर में दोपहर 12 बजे से परंपरागत पूजा अर्चना के बाद चरणामृत के रूप में शरबत वितरण प्रारंभ किया गया. पूजा—पाठ के बाद मध्यान्ह करीब 2 बजे से जैसे ही मीठा शरबत बांटना शुरु किया गया, यहां श्रद्धालुओं की लंबी कतार लग गई।
श्रद्धालुओं ने बताया कि आज के दिन निर्जला व्रत रखने की परंपरा भी है जोकि सदियों से चली आ रही है। श्री श्यामाजी महारानीजी को परंपरानुसार शरबत का भोग अर्पित कर सभी निर्जला व्रतधारी इसे ग्रहण करते हैं। श्रद्घालु सुन्दरसाथ प्रसाद के रूप में जो मीठा शरबत चढ़ाते हैं वह शक्कर व काली मिर्च के मिश्रण से तैयार किया जाता है।
इस दिन प्रणामी समाज के सैकड़ों सुन्दरसाथ महिलाएं, पुरुष, बच्चे यहां आते हैं. प्रणामी समुदाय के देशभर में फैले अनुयायी इस उत्सव को मनाने के लिए पन्ना आते हैं। सोमवार को भीषण गर्मी के बावजूद सैकड़ों श्रद्धालुओं ने यहां पहुंचकर परम्परा का निर्वहन करते हुए पूजन—पाठ किया। अधिकांश श्रद्धालु सफेद वस्त्र पहनकर मंदिर आते हैं. इस दिन बाईजू राज महारानी को भी सफेद पोशाक पहनाकर श्रृंगार किया जाता है।
खास बात यह भी है कि प्रसाद के रूप में बंटने वाले शरबत में सभी श्रद्धालुओं का योगदान रहता है। जितने भी श्रद्धालु मंदिर आते हैं वे अपने साथ शक्कर व कालीमिर्च लाते हैं और श्रीश्यामाजी को अर्पित करते हैं। इस दिन मंदिर में लगभग दो क्विंटल शक्कर का शरबत बनता है, जिसमें काली मिर्च पीसकर डाली जाती है। शरबत में स्वाद ऐसा होता है कि श्रद्धालु जी भरके यह शरबत पीते हैं।