महाराजश्री ने कहा, सतयुग, त्रेता के समय संतों ने भगवान से निवेदन किया कि हे भगवान हम सभी आपके साथ आत्मरमण करना चाहते हैं। तब भगवान ने आशीर्वाद दिया कि द्वापर में मैं जब श्रीकृष्ण के रूप में अवतरित होउंगा तब आप सभी गोपी के रूप में जन्म लेंगे, तब महारास होगा। उन्होंने भक्तों को महारास का मतलब बताते हुए कहा, आत्मा से परमात्मा का मिलन ही महारास है।
वहीं उद्धव प्रसंग बताते हुए कहा, उद्धव किसी से भी प्रेम नहीं करते थे। एक बार वे भगवान से मिलने गोकुलधाम पंहुचे। वहां गोपियों के प्रेम को देखकर भाव-विभोर हो गए। इन गोपियों के प्रेम को देखकर उद्धव को आत्म ज्ञान हो जाता है कि प्रभु की लीला अपरंपार है। कथा के दौरान कृष्ण की बांसुरी की धुन और भजन पर भक्तों ने नृत्य प्रस्तुत किया।
झांकी रही आकर्षण का केंद्र इस अवसर पर परिसर में भगवान श्रीकृष्ण और देवी रुक्मिणी के विवाह की जीवंत झांकी सजाई गई। इसके बाद आचार्य देेेवशरण महराज ने पद प्रचालन, जल माला डालकर विधि-विधान से शादी कराई। जयमाला के समय भक्तों ने फूलों की बारिश की।
इसके बाद विवाह की खुशी में भक्तों ने नृत्य प्रस्तुत किया। महराजश्री ने भक्तों को सत्य के सनमार्ग पर चलने को कहा। उन्होंने कहा कि सभी भक्तों को वैष्णवजन बनना चाहिए। भगवान के आचरण को खुद के जीवन में उतारना चाहिए।