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कुप्रथाओं की बेडि़यों को तोड़ कबड्डी की नेशनल प्लेयर बनी पाधरी समुदाय की बेटी

locationपन्नाPublished: May 20, 2022 01:30:22 am

Submitted by:

Balmukund Dwivedi

जंगल में शिकार व जड़ी-बूटियां बेचकर आजीविका चलाता है परिवार, बेटी बनी रोल मॉडल

The daughter of Padri community became the national player of Kabaddi

The daughter of Padri community became the national player of Kabaddi

पन्ना. पाधरी समुदाय सामान्यत: वन्यप्राणियों के शिकार व जड़ी-बूटियों के उत्पादक के तौर पर जाना जाता रहा है। शिक्षा व रोजगार से वंचित इस वर्ग के ज्यादातर लोेगों की आजीविका या तो जंगलों पर आश्रित होती है। या फिर वह घुमंतू जीवन जीने को मजबूर होते हैं। पन्ना जिले के खमतरा निवासी नीलम का परिवार भी कुछ इसी िस्थति में था। उसके पिता राकेटलाल पारधी (57) अपने समय के जाने माने शिकारी थे। मां अजमेर बाई (52) गांव-गांव घूूमकर चूड़ी-बिंदी बेचती हैं, लेकिन नीलम ने एक राह चुनी। मुश्किलें कई थीं, लेकिन साहस और दृढ संकल्प के बल पर मात देते आगे बढ़ती रही। कभी जंगल में दो-जून की रोटी तलाशने वाली नीलम आज कबड्डी की नेशनल प्लयेर है। वह खो-खो और बालीवॉल में भी स्टेट लेबिल पर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवा चुकी है। इसके अलवा वह एक कुशल धावक भी है।
नीलम अपने 6 भाई व पांच बहनों के बीच सबसे छोटी
नीलम अपने 6 भाई व पांच बहनों के बीच सबसे छोटी है। उसके खेल और पढ़ाई बिल्कुल भी आसान नहीं था। पारधी समुदाय में बाल विवाह की परंपरा है। लिहाजा, उसके परिजन भी बचपन में शादी करना चाहते थे, लेकिन नीलम ने खुलकर विरोध किया और पढ़-लिखकर न सिर्फ बेस्ट प्लेयर, बल्कि समाज व देश की तामाम बेटियों की रोलमॉडल बनी। वर्तमान में वह छत्रसाल कॉलेज में बीए फाइनल इयर की छात्रा है। माहाराजा छत्रसाल विवि छतरपुर की ओर से ही उसने कबड्डी खेला था। जनवरी-फरवरी में हुए इंटर स्टेट टीम में उसका शानदार प्रदर्शन रहा। नीलम के अन्य भाई बहन आज भी जड़ी-बूटियां बेचने का काम करते हैं।
नीलम पारधी समुदाय की पहली लडक़ी है, जिसने बाल-विवाह जैसी तमाम कुप्रथाओं का मुकाबला करते हुए यह मुकाम बना पाने सफल हुई। उसकी इस सफलता में न सिर्फ परिवार, बल्कि पन्ना टाइगर रिजर्व प्रबंधन का भी अहम योगदान रहा। तकरीबन 15 साल पहले पन्ना टाइगर रिजर्व से बाघों का सफाया हो चुका था। यहां पर बाघ पुनस्र्थापना योजना शुरू की गई। ताकि, बाघों के उजड़ चुके संसार को आबाद किया जा सके। इसके लिए वहां के शातिर शिकारियों की पहचान कर उन्हें समाज की मुख्यधारा से जोडऩे व उनके बच्चों को शिक्षित करने पर जोर दिया गया। इसी अभियान के तहत नीलम का एडमिशन सरकार की आवासीय विद्यालय में हुआ। यहीं उसके जीवन में बदलाव की कहानी शुरू हुई।
शुरू कराया गया था ब्रिज कोर्स
लास्ट वाइल्डर्नेस फाउंडेशन के फील्ड कोऑर्डिनेटर इंद्रभान सिंह बुंदेला ने बताया, 2007 में टाइगर रिजर्व प्रबंधन की मदद से पारधी समुदाय के बच्चों में कौशल उन्नयन का प्रयास शुरू हुआ। इस दौरान कई लोगों को प्रशिक्षण देकर नेचर गाइड बनाया गया। लेकिन नीलम की खेलों के प्रति रुचि देखते हुए उसे नियमित कोचिंग दी गई। नीलम के कोच राहुल गुर्जर बताते हैं कि नीलम में गजब का जुनून व जज्बा है। कबड्डी के अलावा यह एक अच्छी धावक भी है। सौ व दो सौ मीटर की दौड़ में कई मेडल जीत चुकी है। फुटबाल, थ्रो व जम्प में भी बहुत अच्छा प्रदर्शन है। कबड्डी में नेशनल खेल और ऐथलेटिक्स में स्टेट स्तर तक खेली है। उसका सपना ओलंपिक में देश के लिए पदक जीतना है। इसके लिए कठिन परिश्रम भी करती है।
महाराष्ट्र में कबड्डी में दिखाया हुनर
नीलम अमरावती महाराष्ट्र में नेशनल कबड्डी टीम का हिस्सा रही। खो-खो व वॉलीबॉल में भी संभाग स्तर तक खेला, लेकिन उनकी रुचि कबड्डी व एथलेटिक्स में ज्यादा है। वह इन्हीं खेलों में क्षेत्र में बेहतर करना चाहती है। नीलम पारधी का घर पन्ना से 80 किमी दूर खमतरा गांव में है। यहां ज्यादातर पारधी समुदाय के लोग ही रहते हैं।
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