फील्ड डायरेक्टर पन्ना टाइगर रिजर्व केएस भदौरिया ने बताया, पन्ना की जनता लंबे समय से अकोला गेट से पर्यटन शुरू करने की मांग कर रही थी। बीते माह भोपाल से अधिकारियों के आने पर भी यह मामला सामने आया था। इसी को देखते हुए यहां से पर्यटन को शुरू करने का निर्णय लिया गया है।
उन्होंने बताया, पहले दिन यहां से घूमना पूरी तरह से नि:शुल्क रहेगा। सुबह 6 बजे से 11 बजे तक और शाम को 3 से 6 बजे तक पर्यटन रहेगा। अकोला गेट से टूरिज्म शुरू होने के बाद यहां मवेशियों और ग्रामीणों के प्रवेश पर रोक लगेगी, इससे यहां जैविक दबाव कम होगा। इससे जैव विविधता बढ़ेगी और वनों का घनत्व भी बढ़ेगा।
यहां से टूरिज्म बढऩे पर स्थानीय जनता को भी लाभ होगा। उनके लिए रोजगार के अवसर बढ़ेंगे। इससे क्षेत्र में वन्य प्राणियों की सुरक्षा और वन्य प्राणी प्रबंधन का कार्य बेहतरीन तरीके से किया जाएगा। इससे क्षेत्र में वन्य प्राणियों का रहवास भी विकसित होगा।
उन्होंने बताया कि अकोला बफर जोन में टूरिज्म से जो भी राशि प्राप्त होगी उसका उपयोग वन्य प्राणी प्रबंधन में किया जाएगा। पूर्व में इसको लेकर कुछ आब्जेक्शन थे, जिसको हल कर लिया गया है। इससे अब यहां टूरिज्म शुरू करने को लेकर कोई परेशानी नहीं होगी।
बाघों के मूवमेंट वाले क्षेत्र से था ऑब्जेक्शन मामले को लेकर टाइगर रिजर्व की डिप्टी डायरेक्टर वासु कन्नौजिया ने एनटीसीए से शिकायत की थी। जिसमें उन्होंने बताया था कि वर्तमान में पन्ना टाइगर रिजर्व में बाघ और शावकों की संख्या 42 है। ये कोर और बफर जोन में स्वच्छंदता पूर्वक विचरण कर रहे हैं।
बाघ अनुश्रवण दलों द्वारा पाया गया कि उक्त बाघों में से अधिकांश बाघ का मूवमेंट क्षेत्र पन्ना कोर के साथ ही बफर क्षेत्र के अकोला, अमझिरिया, बांधी उत्तर, बांधी दक्षिण, बराछ और झलाई बीटों में रहता है। जो पन्ना टाइगर रिजर्व के कुल क्षेत्रफल 1695 वर्ग किमी में से उक्त बीटों का कुल क्षेत्र करीब 65.63 किमी है।
यह क्षेत्र बाघों के रहवास के लिए उपयुक्त है और यहां पर्याप्त मात्रा में पानी और भोजन उपलब्ध है। यह क्षेत्र बाघों के नजरिए का काफी सेंसटिव क्षेत्र है। इससे पन्ना वन परिक्षेत्र के इस बफर क्षेत्र को पर्यटन जोन बनाया जाना उचित नहीं होगा। पन्ना-कटनी अमानगंज स्टेट हाइवे पन्ना बफर जोन से ही निकला है। इसके कारण यहां वाहनों के दबाव के कारण पहले से ही बाघों के आवास का डिस्टर्वेंस बना है।
इसके अलावा यदि यहां से पर्यटन जोन बना दिया जाता है तो दबाव के कारण बाघों के रहवास पर दोहरा विपरीत असर पड़ेगा। इसके परिणामस्वरूप उक्त क्षेत्र में बहुतायत में पाए जाने वाले बाघ यहां से पलायन करके अन्यत्र या ग्रामीण क्षेत्रों में जा सकते हैं। इससे बाघ और मानव के बीच द्वंद के हालात बन सकते हैं। यदि ऐसा होता है तो पार्क प्रबंधन के लिए पार्क का प्रबंध करना जटिल समस्याओं से भरा हो सकता है।