ट्रेंकुलाइज कर उसे रेडियो कॉलर पहनाया
पन्ना टाइगर रिजर्व के वन्य प्राणी चिकित्सक डॉ. संजीव गुप्ता ने बताया कि बाघिन का कॉलर पुराना हो होने से उसके सिग्नल वीक हो गए थे। रेडियो कॉलर बदलने के लिए जरूरी मंजूरी लेने के बाद बाघिन को ट्रेंकुलाइज कर उसे रेडियो कॉलर पहनाने का निर्णय लिया गया। बाघिन को घेरकर ट्रेंकुलाइज करने के लिए पन्ना टाइगर रिजर्व से वन्य प्राणी चिकित्सक डॉ. संजीव गुप्ता के नेतृत्व में चार हाथी, 8 महावत और सात अन्य लोगों की टीम सुबह ही सरभंगा के जंगलों में पहुंच गई थी। डीएफओ सतना राजीव कुमार मिश्रा और मुकुंदपुर जू के विशेषज्ञों सहित 40 से 50 लोगों की टीम तैयार थी।
पन्ना टाइगर रिजर्व के वन्य प्राणी चिकित्सक डॉ. संजीव गुप्ता ने बताया कि बाघिन का कॉलर पुराना हो होने से उसके सिग्नल वीक हो गए थे। रेडियो कॉलर बदलने के लिए जरूरी मंजूरी लेने के बाद बाघिन को ट्रेंकुलाइज कर उसे रेडियो कॉलर पहनाने का निर्णय लिया गया। बाघिन को घेरकर ट्रेंकुलाइज करने के लिए पन्ना टाइगर रिजर्व से वन्य प्राणी चिकित्सक डॉ. संजीव गुप्ता के नेतृत्व में चार हाथी, 8 महावत और सात अन्य लोगों की टीम सुबह ही सरभंगा के जंगलों में पहुंच गई थी। डीएफओ सतना राजीव कुमार मिश्रा और मुकुंदपुर जू के विशेषज्ञों सहित 40 से 50 लोगों की टीम तैयार थी।
दोपहर दो बजे लगाई गई डॉट
रेस्क्यू दल द्वारा हाथियों की सहायता से बाघिन को घेरने का काम सुबह से शुरू कर दिया था। दोपहर करीब दो बजे एयर गन से डाट लगाई गई। दवा के प्रभाव से उसके बेहोश होते ही डॉक्टर मौके पर पहुंचे और बाघिन के सेहत की जांच की। इसके बाद बाघिन का पुराना रेडिया कॉलर निकालकर नया कॉलर पहनाया गया। कॉलर पहनाने के बाद फिर बाघिन के पूरे शरीर की सूक्ष्मता के साथ जांच की गई और उसे होश में लाने के लिए प्रक्रिया शुरू की गई। करीब ढ़ाई बजे बाघिन होश में आई और वापस घनी झाडिय़ों में छिप गई।
रेस्क्यू दल द्वारा हाथियों की सहायता से बाघिन को घेरने का काम सुबह से शुरू कर दिया था। दोपहर करीब दो बजे एयर गन से डाट लगाई गई। दवा के प्रभाव से उसके बेहोश होते ही डॉक्टर मौके पर पहुंचे और बाघिन के सेहत की जांच की। इसके बाद बाघिन का पुराना रेडिया कॉलर निकालकर नया कॉलर पहनाया गया। कॉलर पहनाने के बाद फिर बाघिन के पूरे शरीर की सूक्ष्मता के साथ जांच की गई और उसे होश में लाने के लिए प्रक्रिया शुरू की गई। करीब ढ़ाई बजे बाघिन होश में आई और वापस घनी झाडिय़ों में छिप गई।
तीन लिटर में बाघिन ने जन्में 9 शावक
डॉ. गुप्ता ने बताया कि बाघिन जबसे सरभंगा के आश्रम में है तब से अब तक उनके तीन लिटर हुए हैं। इसमें उसने करीब नौ शावक जन्में हंै। इनमें से कुछ शावक बड़े भी हो चुके हैं। जो सरभंगा और चित्रकूट सहित आसपास के जंगलों में रहे हैं। जिनके सुरक्षा की जिम्मेदारी सतना वन मंडल की है। उक्त बाघिन के सरभंगा के जंगल को स्थायी आश्रय बनाने से पहले सतना के जंगल में बाघों के स्थायी आवास के कम ही प्रमाण मिलते हैं। इससे पन्ना टाइगर रिजर्व की यह बाघिन सतना के जंगलों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है।
डॉ. गुप्ता ने बताया कि बाघिन जबसे सरभंगा के आश्रम में है तब से अब तक उनके तीन लिटर हुए हैं। इसमें उसने करीब नौ शावक जन्में हंै। इनमें से कुछ शावक बड़े भी हो चुके हैं। जो सरभंगा और चित्रकूट सहित आसपास के जंगलों में रहे हैं। जिनके सुरक्षा की जिम्मेदारी सतना वन मंडल की है। उक्त बाघिन के सरभंगा के जंगल को स्थायी आश्रय बनाने से पहले सतना के जंगल में बाघों के स्थायी आवास के कम ही प्रमाण मिलते हैं। इससे पन्ना टाइगर रिजर्व की यह बाघिन सतना के जंगलों के लिए किसी वरदान से कम नहीं है।
इनकी रही अहम भूमिका
पूरे रेस्क्यू ऑपरेशन में पन्ना टाइगर रिजर्व के डॉ. संजीव गुप्ता के अतिरिक्त नवीन कुमार शर्मा, तफसील खान, उदयमणि सिंह परिहार, भूपेंद्र शुक्ला, अरविंद, रामचरण गौड़, स्वर्ण सिंह, चार हाथी (गणेश, केनकली, वन्या और अनंती), संजय रायखेड़, राजेश तोमर, विवेक पगारे के अतिरिक्त 40 से 50 अधिकरियों और कर्मचारियों का दस्ता मौजूद रहा।
पूरे रेस्क्यू ऑपरेशन में पन्ना टाइगर रिजर्व के डॉ. संजीव गुप्ता के अतिरिक्त नवीन कुमार शर्मा, तफसील खान, उदयमणि सिंह परिहार, भूपेंद्र शुक्ला, अरविंद, रामचरण गौड़, स्वर्ण सिंह, चार हाथी (गणेश, केनकली, वन्या और अनंती), संजय रायखेड़, राजेश तोमर, विवेक पगारे के अतिरिक्त 40 से 50 अधिकरियों और कर्मचारियों का दस्ता मौजूद रहा।