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अगर आपके बच्चे में हो रहे शारीरिक परिवर्तन तो अपने व्यवहार में करें ये बदलाव

Published: Dec 01, 2017 11:59:23 am

नके शारीरिक परिवर्तनों को लेकर कैसी भी टीका टिप्पणी न करें, हमेशा सकारात्मक भाव ही दिखाएं।

Puberty and parents

Puberty and parents

बच्चों में शारीरिक विकास के चरणों में वैसे तो सभी चरण महत्वपूर्ण होते हैं पर वयस्क होने का चरण बहुत खास होता है। यही वह समय होता है, जब बच्चा या बच्ची अपने शरीर में होने वाले एकदम नए परिवर्तनों से परिचित होते हैं। हार्मोनों का उत्सर्जन शारीरिक तौर पर बच्ची को वयस्क महिला और बच्चे को वयस्क पुरुष बनाने का काम कर रहा होता है।


शरीर में आ रहे परिवर्तनों के प्रभाव से उनका मानसिक क्षेत्र अछूता नहीं रह पाता, भावनात्मक स्तर पर भी वे उथल-पुथल का सामना कर रहे होते हैं। ऐसे में माता-पिता की जिम्मेदारी भरण-पोषण, लाड़-प्यार, डांट-फटकार से कहीं बहुत आगे बढ़ जाती है। हमारे समाज में अधिकांशत: इन परिवर्तनों को, इनके बच्चे पर असर को हल्के में लिया जाता है, माता-पिता का व्यवहार बच्चों के प्रति उनमें होने वाले परिवर्तनों के अनुपात में नहीं बदलता है, जो कि बदलना चाहिए। बच्चों का वयस्क होना सामान्य जरूर है, लेकिन नजरअंदाज करने या फिर हल्के में लिए जाने लायक नहीं है।

नाजुक है यह समय…
प्यूबर्टी का यह समय बच्चों के लिए बहुत नाजुक समय होता है, उन्हें समझ नहीं आता कि उनके साथ ये सब क्या हो रहा है। कुछ लोग उनमें होने वाले परिवर्तनों को घोषित तौर पर नजर गढ़ा कर देखते हैं और कुछ उनके सामने ही टिप्पणी भी कर देते हैं। बच्चों को यह पता ही नहीं होता कि उन्हें इन सब बातों से कैसे निपटना है, कैसे पेश आना है। एक तो वैसे ही उनका मन अपनी उलझनें सुलझाने में लगा रहता है, उस पर लोगों का व्यवहार! कितनी असहज बातों व स्थितियों का सामना करना पड़ता है उन्हें। उनके शारीरिक परिवर्तनों को लेकर कैसी भी टीका टिप्पणी न करें, हमेशा सकारात्मक भाव ही दिखाएं। इन परिवर्तनों को लेकर मजाक न करें, न किसी को करने दें।

परिवर्तन माता-पिता भी करें…
बच्चों के जीवन में इस परिवर्तन के दौर के आने पर भी कई बल्कि, अधिकतर माता-पिता उनसे वैसा ही व्यवहार करते रहते हैं, जैसा अभी तक करते आ रहे थे। बच्चे जैसे अब तक डर कर कोई बात मान लेते थे, वैसे ही अब भी मान जाएं, माता-पिता की यह अपेक्षा भी बनी रहती है। क्या किसी वयस्क व्यक्ति से किसी भी बात को जस का तस मानने की उम्मीद की जा सकती है? नहीं न, तो फिर वयस्क हो रहे बच्चों से क्यों? माना बच्चे माता-पिता के सामने बच्चे ही होते हैं पर इसका मतलब यह नहीं कि उनके साथ हमेशा शैशवावस्था और पूर्व किशोरावस्था वाला व्यवहार ही किया जाता रहे। ज्यादातर मामलों में माता-पिता अपने व्यवहार के बारे में तब चेतते हैं, जब बच्चे उग्र प्रतिक्रिया देना शुरू का देते हैं या फिर घुन्ने हो जाते हैं।

लडक़ा-लडक़ी बराबर…
हमारे समाज में लड़कियों के वयस्क होने के काल को लेकर संरक्षण की प्रवृत्ति पाई जाती है, किन्तु लडक़ों के इस काल में उनके साथ जो व्यवहार किया जाना चाहिए, वह नहीं किया जाता। यह तो लडक़ा है, इसका क्या बिगड़ेगा…यह वास्तव में लडक़ों को बेसहारा छोडऩे देना जैसा है। पता नहीं क्यों, हम यह भी भूल जाते हैं कि लडक़ा भी तो बच्चा ही होता है, उसके मन में भी दाढ़ी-मूंछ आने, आवाज में बदलाव आने व प्रजनन अंगों में आने वाले बदलावों को लेकर सवाल होते हैं, सवालों को लेकर झिझक होती है, उसे भी माता-पिता, परिवार से संरक्षण की जरूरत होती है। लडक़े के वयस्क होने के दिनों में उसे उसके हाल पर छोड़ देना उचित नहीं है। उसे भी उचित जानकारी व दोस्ताना व्यवहार का अधिकार है।

खुल कर बात करें…

ऐसे बच्चों से, जिनमें हार्मोन परिवर्तन अभी शुरू ही हुआ है, खुल कर बात करना आरंभ कर दें। बेहतर तो यह है कि जब लडक़ा या लडक़ी में प्यूबर्टी के आरंभिक लक्षण दिखाई देने लगें, तब ही उनको एक- एक कर के उस-उस लक्षण के बारे में बताना शुरू कर दें, जो-जो लक्षण आता जा रहा है। बच्चे की समझ धीरे-धीरे विकसित होती है, उसको आरंभ में ही अपनी ओर से एक साथ सारी जानकारी देने की आवश्यकता नहीं है। हां, यदि वह कोई प्रश्न करता है तो उसकी उम्र के हिसाब से जवाब दिया जा सकता है। वयस्क होने के क्रम में लडक़ी या लडक़ा कुछ पूछते हैं तो उन्हें खुल कर बताया जा सकता है। लड़कियों को विशेषकर मासिक धर्म आदि के बारे में पूर्व जानकारी दे देनी चाहिए।

कभी न करें अपमान…
इस समय मानसिक तौर पर भी बच्चे अपने व्यक्तित्व की… अपने वजूद की अलग पहचान को समझने लगते हैं और पहचान बना रहे होते हैं। हालांकि उनमें आत्मसम्मान की भावना हमेशा से होती है पर उतनी मुखर और स्पष्ट नहीं होती, जितनी अब होने लगती है। दूसरे शब्दों में कहें तो उनमें ‘मैं’ का बोध जगने लगता है। इसलिए ध्यान रखें कि उनसे कोई भी अपमानजनक व्यवहार न करें, गलती से भी उन्हें ऐसी बात न बोलें, जो उनके आत्मसम्मान पर चोट पहुंचाए, दूसरों के सामने इसका विशेष ध्यान रखें। अगर कभी ऐसा व्यवहार हो भी जाए तो बात संभाल लें, उनसे माफी मांग लें। बच्चों को बातचीत का माहौल दें।

गुड टच, बैड टच…
वैसे तो आजकल कम उम्र के बच्चों में भी गुड और बैड टच के बारे में जानकारियां बांटी जा रही हैं पर वयस्क होने के समय में लडक़ा और लडक़ी, दोनों को ही थोड़ा विस्तार से इसकी जानकारी देनी चाहिए। लडक़े भी यौन बदतमीजियों का कम शिकार नहीं होते। सामान्यतया वे समझ नहीं पाते और किसी को बता भी नहीं पाते। उनको लैंगिक संवेदनशीलता व समानता के बारे में इस उम्र में ही सबसे अच्छी तरह से समझाया जा सकता है। बढ़ती बच्चियों के साथ छोटी या बड़ी यौन अपव्यवहार की घटनाएं बहुत होती हैं, उनको व लडक़ों दोनों को ही सावधानियां सिखानी चाहिए।
-राशि

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