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Child Behavior : बच्चे का व्यवहार बदलने लगे तो क्या करें अभिभावक ?

Published: Sep 15, 2021 11:49:54 pm

Submitted by:

pushpesh

-परिवार में जब बच्चों की भावनात्मक जरूरतें पूरी नहीं होती, तो वे नए दोस्त ढूंढते हैं

Child Behavior :  बच्चे का व्यवहार बदलने लगे तो क्या करें अभिभावक ?

किशोरावस्था में बच्चों से पैरेंट्स नहीं, मित्र की तरह व्यवहार करें।

किशोर से युवावस्था के बीच बच्चों में शारीरिक और मानसिक विकास अपेक्षाकृत तेज होता है। इस दौरान बच्चों की मानसिक स्थिति में कई तरह के बदलाव आते हैं। इस उम्र में किशोर अपनी पहचान के लिए संघर्ष करता है। ऐसे में कई बार वह गलत रास्ते भी अख्तियार कर लेता है। इस उम्र में ही स्वभाव और व्यवहार आकार लेता है। इसलिए अभिभावकों के लिए बच्चों को समझना और उन्हें सही रास्ते पर लाना काफी चुनौतीपूर्ण है। इस उम्र को ‘एडोलेसेंट’ कहते हैं। इसे दो भागों में बांटा गया है, अर्ली एडोलेसेंट (10-15 वर्ष) यानी शुरुआती किशोरावस्था और लेट एडोलेसेंट (16-20 वर्ष) यानी उसके बाद की स्थिति-
क्यों होता है बदलाव
ये हार्मोनल बदलाव होता है। ब्रेन का विकास होने के साथ आनंद चरम पर होता है। हर स्थिति में बच्चा आनंद खोजता है, जबकि खतरों या जोखिम को समझने वाला ब्रेन का हिस्सा विकसित नहीं हो पाता। इसलिए बच्चे खतरे वाली चीजों से बेखबर होते हैं और नुकसान कर बैठते हैं।
16-20 की उम्र के नाजुक बदलाव
इस उम्र के बच्चे अपनी आइडेंटिटी और सामाजिक मूल्यों के प्रति काफी कॉन्शियस हो जाते हैं। जैसे हर मुद्दे पर समाज और दोस्त उन्हें कैसे देखते हैं? लुक्स को लेकर काफी अवेयर हो जाते हैं, जैसे बाल कैसे हैं, स्किन कैसी दिखती है, लंबाई और शारीरिक बनावट आदि। मस्तिष्क का विकास इस तरह होता है कि थ्रिल या रिस्क लेने में मजा आता है। जैसे तेज गाड़ी चलाना, नए प्रयोग करना, लेकिन जोखिम को नहीं समझते। अर्थात खतरा मोल लेने की क्षमता होती है, लेकिन जोखिम को समझने की नहीं।
ऐसी होती है ये उम्र
-ऊर्जा काफी होती है, ब्रेन का विकास तेज होता है।
-परिवार में इंडिपेंडेंट दिखाने का प्रयास करते हैं।
-आसपास के माहौल के प्रति उत्सुकता काफी होती है।
-आकर्षित करने वाली चीजों में दिलचस्पी लेना।
-समाज में आइडेंटिटी और वैल्यू को समझने का प्रयास।
ऐसे पहचानें बदलाव
इस उम्र में थोड़ी नकारात्मकता या बात को अनसुना करना सामान्य है, लेकिन यह चिंता की बात है।
जिद करना, झगडऩा और परिवार के नियमों के विरुद्ध जाना।
स्क्रीन टाइम बढऩा, नशा या अपोजिट जेंडर के प्रति आकर्षण।
इस उम्र में मित्रवत व्यवहार करें
किशोरावस्था में बच्चों से पैरेंट्स नहीं, मित्र की तरह व्यवहार करें। कोई बात अच्छी न लगे तो झिडक़ें नहीं, सहजता से समझाएं। इससे संवाद का रास्ता खुला रहेगा, अन्यथा अगली बार बात करने से कतराएंगे।
ऐसे हो पैरेंटल सुपरविजन
बच्चे पर 24 घंटे निगरानी रखने की बजाय यह देखें कि वह किन-किन से मिलता है, उसके इंटरेस्ट क्या हैं, किस तरह की किताबें पढ़ता है, इंटरनेट पर क्या देखता है।
लॉकडाउन में सामाजिक दूरी का असर
स्वस्थ विकास के लिए सामाजिक पहलू मायने रखना है और महामारी के दौरान सामाजिक दूरियां और प्रतिबंध से बच्चों की मनोस्थिति पर बुरा असर पड़ा है।

खाने पर साथ बैठें, टीवी-मोबाइल बंद रखें
डिनर सब साथ करें, लेकिन टीवी और मोबाइल को बंद रखें, ताकि सब एक-दूसरे की बात को ध्यान से सुनें। अपने अनुभव साझा करें, जैसे कभी मुश्किल आई तो आपने कैसे सामना किया। इससे उन्हें लगेगा कि जब अभिभावक अपनी बातें शेयर करते हैं, तो हमें भी करनी चाहिए। अध्ययन में सामने आया है कि जो बच्चे अपनी समस्याएं परिवार से साझा करते हैं, उनके जीवन में समस्याएं आने की संभावना कम रहती है।
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