पटना विवि छात्र संघ चुनाव का महत्व क्यों?
अपनी स्थापना के 101 वर्ष पूरे कर चुके पटना विश्वविद्यालय छात्र संघ ने बिहार को अनेक राजनेता दिए हैं – जिनमें कुछ प्रमुख नाम हैं – लालू प्रसाद यादव, अश्विनी चौबे, रामजतन सिन्हा, अनिल कुमार शर्मा, ये सभी छात्र संघ के अध्यक्ष रह चुके हैं। सुशील कुमार मोदी, रविशंकर प्रसाद महासचिव व सह-महासचिव रह चुके हैं। मुख्यमंत्री नीतीश कुमार भी अपने पटना इंजीनियरिंग कॉलेज की छात्र राजनीति में सक्रिय रहे थे।
पटना विवि छात्र संघ चुनाव का इतिहास
बड़े नामों में लोकसभा अध्यक्ष रहे बलीराम भगत और पूर्व केन्द्रीय मंत्री तारकेश्वरी सिन्हा भी पटना विवि में पढ़ते हुए छात्र राजनीति करते थे। हालांकि पटना विश्वविद्यालय में पहली बार छात्र संघ चुनाव वर्ष 1959 में हुए थे, जिसमें शैलेष चंद्र मिश्रा चुनाव जीते थे। वर्ष 1970 के चुनाव में समाजवादी युवजन सभा के बैनर तले लालू प्रसाद यादव यहां महासचिव चुने गए थे और वर्ष 1973 में अध्यक्ष बने। इसी चुनाव में अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के सुशील कुमार मोदी महासचिव और रविशंकर प्रसाद सह महासचिव चुने गए थे। लालू के अध्यक्ष बनने के बाद चार साल चुनाव नहीं हुए। देश भर में लोकनायक जयप्रकाश नारायण के नेतृत्व में संपूर्ण क्रांति का समय था। लालू मात्र 29 साल की उम्र में छपरा से लोकसभा सांसद चुने गए थे। वर्ष 1978 में चुनाव हुए, तो विद्यार्थी परिषद के ही अश्विनी चौबे अध्यक्ष बने। वर्ष 1980 में अनिल कुमार शर्मा और वर्ष 1984 में शंभु शर्मा अध्यक्ष बने। इसके बाद पटना विवि में चुनाव पर एक तरह से प्रतिबंध लग गया। यह माना गया कि छात्र राजनीति से जातिवाद और हिंसा को बढ़ावा मिल रहा है।
28 साल तक नहीं हुए चुनाव
वर्ष 1984 के बाद सीधे वर्ष 2012 में छात्र संघ चुनाव हुए, जिसमें विद्यार्थी परिषद समर्थित आशीष सिन्हा चुनाव जीते। इसके बाद वर्ष 2017 फरवरी में चुनाव हुए, जिसमें विद्यार्थी परिषद से नाराज होकर निकले दिव्यांशु भारद्वाज चुनाव जीते। दिव्यांशु के जनता दल यू में चले जाने से बिहार की छात्र राजनीति में बवाल मचा हुआ है। परंपरागत रूप से पटना विवि में मजबूत रहे विद्यार्थी परिषद ने इसे सम्मान का प्रश्न बना लिया है।