लालू यादव नब्बे के दशक में राजनीति में आए और पिछड़ों व दलितों की आवाज़ बनकर उभरते चले गए। अपनी खास गंवई शैली में बोल बोलकर लालू ने लोगों को आकर्षित करना शुरु कर दिया। लालकृष्ण आडवाणी की राम रथयात्रा को रोककर लालू मुस्लिम जनमानस के और करीब हो गए। मुस्लिम—यादव और अन्य दलित—पिछड़ों के चहेते बनते गए। लालू यादव ने पंद्रह वर्षों तक सत्ता में धाक बनाए रखी।
हर चुनाव में लालू अपनी खास गंवई शैली में लोगों से चुटीले संवाद करने के लिए चर्चित होते गए। भोजपुरी में इनके संवाद सुनकर लोग मजे ले लेकर लालू के मुरीद हो गए। मंचों से इनके खास बोल-ऐ बुड़बक..ऐ ..हाला मत करो..’जैसे संबोधन सुनने के लिए बेशुमार भीड़ इकट्ठ होती रही। अपने खास अंदाज़ के लिए मशहूर लालू यादव ने चुनावों को दो दशक से अधिक समय से प्रभावित किए रखा है। एनडीए के आगे पराजय के बाद भी लालू शैली का पराभव नहीं हो पाया। नीतीश कुमार की महत्वाकांक्षाओं ने फिर लालू के साथ महागठबंधन बनाकर बाजी पलट दी। 2014के लोकसभा और 2015 के विधानसभा चुनावों में लालू यादव जमानत पर बाहर आए फिर अपनी शैली में चुनाव को प्रभावित कर वोटों की बरसात करा डाली। महागठबंधन की सरकार बनी और उनके दोनों पुत्र भी राजनीति में प्रवेश कर गए। यह और बात है कि छोटे पुत्र तेजस्वी ने अपनी योग्यता के अनुरूप लालू यादव के उत्तराधिकारी बनकर उभरे और बड़े तेजप्रताप दूसरे कारणों से चर्चा में बने रह रहे।
लालू यादव ने जेल में रहकर इस चुनाव में महागठबंधन की सीट शेयरिंग को अंजाम दिया और उन्हीं की गाइडलाइंस से तेजस्वी बखूबी अपना मिशन साध रहे हैं लेकिन उनकी गैरमौजूदगी का अहसास सभी को है। लालू के अनुपस्थित रहने से महागठबंधन का चुनाव प्रचार भी सशक्त नहीं हो पा रहा और दूसरे दलों के नेता भी सिरे से सूत्र में सजे नहीं जान पड़ रहे। उनकी पत्नी राबड़ी देवी कहती हैं, लालू जी चुनाव में रहते तो और बात होती। उनकी कमी खल रही है।हालांकि जैसा वह कह रहे हैं, वही सब हो रहा है पर उनकी कमी खटक रही है। लालू यादव ने रिम्स में रहते हुए पत्नी को भावुक पत्र भी लिखा। जवाब में राबड़ी भी भावुक हुईं लेकिन भावुकता के बहाव से बच निकलते हुए आखिर उन्होंने मिशन साधने का मोर्चा संभाल लिया।