बता दें कि इसी साल होने वाले विधानसभा चुनावों की गहमागहमी के बीच एनडीए में बेहतर सीट शेयरिंग की संभावनाओं के साथ नीतीश कुमार को फिर नेता मानने की कवायद तेज हो चुकी है।पिछले दिनों भाजपाध्यक्ष अमित शाह ने एक समाचार चैनल को दिए गये साक्षात्कार में यह खुलासा किया कर एनडीए में लग रहे कयासों पर विराम लगा डाला था कि नीतीश कुमार ही होंगे मुख्यमंत्री पद के उम्मीदवार।सुशील मोदी ने भी क ई बार कहा कि नीतीश कुमार ही बिहार में एनडीए का चेहरा होंगे और हैं।
इस संदर्भ में जदयू उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर भी बयान दे चुके हैं कि एनडीए में जदयू बड़े भाई की भूमिका में है और इसे अधिक सीटें मिलेंगी।इसे लेकर जदयू भाजपा में किचकिच भी हुई पर नीतीश कुमार ने किशोर की बातों को अधिक महत्व न देकर इस मामले को आगे बढ़ने से रोक दिया।
अब जबकि चुनाव के समय नजदीक आते जा रहे हैं तब ऐसी बयानबाज़ी मायने रखने लगी है।दो दिनों पूर्व आरजेडी नेता रघुवंश प्रसाद सिंह ने बयान दिया कि नीतीश कुमार भाजपा सिथ छोड़कल आएं तो महागठबंधन में उनका स्वागत है।नीतु कुमार को लेकर यह सियासी मान्यताएं रही हैं कि वह अपने राजनीतिक चाल की आहट नहीं लगने देते।लोकसभा चुनावों के समय से ही यह बात उठाई जाती रही कि बिहार में भाजपा की स्वीकार्यता बढ़ी है.लिहाज़ा भाजपा को अपने दम पर विधानसभा चुनाव में जाना चाहिए।
डॉ संजय पासवान दलित चेहरा होने के साथ संघ और बौद्धिक जगत में खास पहचान रखते हैं।भाजपा नेतृत्व में भी इनकी गहरी पैठ है।लिहाज़ा इनके बयान को कोई भी हल्के में नहीं ले सकता।सत्ता के गलियारों में इनके बयान के साथ यह बात भी तैरने लग गई है कि बिना पार्टी नेतृत्व की सहमति और इशारों के वह इतनी बड़ी बात यूं ही नहीं कह दे सकते हैं। अब देखना यह बाकी है कि पासवान के बयान में कितना दम है।