चार दिवसीय छठ पूजा
चार दिवसीय छठ पूजा में नहाय खाय के दूसरे दिन यानी कार्तिक शुक्ल पक्ष पंचमी को छठ व्रती पवित्र नदियों या सरोवरों के जल से मिट्टी के नये बने चूल्हे पर आम की सूखी लकड़ियों के जलावन से गाय के दध,चावल और गुड़ की खीर और नये गेहूं के शुद्धता पूर्वक पीसे हुए आंटे की रोटियां बनाकर सूर्यास्त वेला में भगवान भास्कर को अर्पित करते हुए प्रसाद स्वरुप ग्रहण करते हैं।व्रती इस दिन निर्जला रहकर शाम को सूर्य देवता को अर्पित किया प्रसाद भोजन रुप में ग्रहण करने के उपरांत कष्टकारी 36 घंटों का निर्जला व्रत शुरु कर देते हैं। इस विधान को खरना कहा जाता है।
तीसरे दिन यानी सूर्यषष्ठी की प्रधानता होती है। व्रती महिलाएं और पुरुष निर्जला व्रत में रहकर आंटे और गुड़ का ठेकुआ प्रसाद बनाते हैं। सूप और दौरे में रखकर फलों और नारियल के साथ व्रती नदियों,सरोवरों अथवा अन्य जलीय स्थानों फर जल में खड़े होकर अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य दान करते हैं। इस दर्मियान नदी और सरोवर किनारे घाटों को खूब साफ सुथरा कर प्रकाश पर्व की भांति सजाया जाता है। छठ व्रती षष्ठी के अर्घ्यदान के बाद अगली सुबह यानी सप्तमी के सूर्योदय की प्रतीक्षा करते हैं। पुनः उदीयमान सूर्य को उसी स्थान पर अर्घ्यदान कर व्रत का समापन होता है और व्रती 36घंटों के निर्जला व्रत से बाहर आते हैं।
छठ के माहात्म्य बड़े
छठ के माहात्म्य बेहद बड़े—बड़े हैं। मान्यता है कि गयासुर के आतंक से मुक्ति के लिए उसके विशालकाय शरीर के हृदयभाग में हुए विष्णुयज्ञ में शाक्यद्वीप(ईरान),से गरुड़ पर आरूढ़ कर सात मगी ब्राम्हणों को यज्ञकार्य के लिए लाया गया। मग शब्द का ईरानी भाषा में अर्थ होता है आग का गोला। आग का गोला यानी सूर्य। ये सूर्योपासक ब्राम्हण शाक्यद्वीप से यहां आने के बाद यहीं सात स्थानों में बस गये। सूर्योपासक ब्राम्हण अपनी विशेष सूर्यपूजा पद्धतियों को यहां भी क्रमशः करते रहे। इन मगी ब्राम्हणों के कारण ही इस क्षेत्र का नाम मगध पड़ गया।
सूर्य विष्णु स्वरूप देवता हैं। इसलिए इस निष्ठा और कर्मकांड रहित समर्पण भावप्रधान सूर्य पूजा की लोकप्रियता आसपास विस्तृत होती गयी और लोगों ने भी इसका अनुपालन करना शुरु किया।मालूम रहे कि मगध के जिन सात स्थानों में शाक्यद्वीपीय बसे वहां सूर्य के प्रसिद्ध मंदिर भी स्थापित हैं। वैदिक काल से जारी इस क्रम को माता सीता ने भी छठव्रत कर सूर्यदेवता के आशीर्वाद से समृद्ध हुईं। साम्ब ने भी छठ कर कोढ़ से मुक्ति पाई थी। इस व्रत में पवित्रता और नमक से दूरी बनाकर रखने की प्रधानता होती है। छठ व्रतियों की मनोकामनाएं पूर्ण होने से इसकी लोकप्रियता निरंतर बढ़ती जा रही है।