दो बच्चों को ले उड़ा गिद्ध
गांव के बाहर बधार में एक व्यक्ति ने ताड़ के पेड़ पर सफेल गिद्ध के छह बच्चों को देखा। इस दौरान दो बच्चों को गिद्ध लेकर उड़ चला। इसी बीच चार बच्चे ज़मीन पर आ गिरे। कैलाश चौधरी नामक उस व्यक्ति ने गिद्ध के बच्चों क़ो सुरक्षित घर लाने के बाद एक अखबार के स्थानीय रिपोर्टर को इसकी सूचना देते हुए वन विभाग के रेंजर को जानकारी दिलवाई।
अमरीकी महाद्वीप पर के अलावा पूरे विश्व में हैं
पशु पक्षियों पर शोध कर रहे वन एवं पर्यावरण कार्यकर्ता राजेश कुमार सुमन और अनीस कुमार बताते हैं कि सफेद गिद्ध पौराणिक काल के गिद्ध हैं। सफ़ेद गिद्ध पुरानी दुनिया (जिसमें दोनों अमरीकी महाद्वीप शामिल नहीं होते) का गिद्ध है जो पहले पश्चिमी अफ्ऱीका से लेकर उत्तर भारत, पाकिस्तान और नेपाल में काफ़ी तादाद में पाया जाता था किन्तु अब इसकी आबादी में बहुत गिरावट आयी है और इसे अंतर्राष्ट्रीय प्रकृति संरक्षण संघ ने संकटग्रस्त घोषित कर दिया है। भारत में जो उपप्रजाति पाई जाती है उसका वैज्ञानिक नाम (Neophron percnopterus ginginianus) है। उत्तर भारत के अलावा भारत में अन्य जगह यह प्रवासी पक्षी है।
रंगों में मामूली अंतर
इसकी विभिन्न उपजातियों के रंगों में मामूली फेरबदल दिखने को मिलती है तथा जिन क्षेत्रों में यह रहता है उसके आधार पर भी रंगों में अन्तर पाया जाता है जैसे चेहरे का रंग ज़र्दं पीले से लेकर नारंगी तक हो सकता है और पंखों का रंग सलेटी से लेकर कत्थई रंग का हो सकता है। इसके डैनों का अन्दरुनी अगला भाग और गले से लेकर पूँछ तक का अन्दरुनी भाग सफ़ेद होता है और उड़ते समय नीचे से देखने वाले को यह सफ़ेद नजऱ आता है। इसी कारण से इसका हिन्दी नाम सफ़ेद गिद्ध पड़ा।
आहार
सफ़ेद गिद्ध अपने अन्य प्रजाति के पक्षियों की तरह मुख्यत: लाशों का ही सेवन करता है लेकिन यह अवसरवादी भी होता है और छोटे पक्षी, स्तनपायी और सरीसृप का शिकार कर लेता है। अन्य पक्षियों के अण्डे भी यह खा लेता है और यदि अण्डे बड़े होते हैं तो यह चोंच में छोटा पत्थर फँसा कर अण्डे पर मारकर तोड़ लेता है।
आवास
दुनिया के अन्य इलाकों में यह चट्टानी पहाडिय़ों के छिद्रों में अपना घोंसला बनाता है लेकिन भारत में इसको ऊँचे पेड़ों पर, ऊँची इमारतों की खिड़कियों के छज्जों पर और बिजली के खम्बों पर घोंसला बनाते देखा गया है। पत्थर से अण्डे तोडऩे के अलावा इसको एक अन्य औज़ार का इस्तेमाल करते हुये भी देखा गया है। घोंसला बनाते समय यह छोटी टहनी चोंच में पकड़कर जानवरों की खाल के बालों को टहनी में लपेटकर अपने घोंसले में रखता है जिससे घोंसले का तापमान बाहर के तापमान से अधिक रहता है।
पतन
यह जाति आज से कुछ साल पहले अपने पूरे क्षेत्र में पयाज़्प्त आबादी में पायी जाती थी। 1990 के दशक में इस जाति का 40 प्रतिशत प्रति वर्ष की दर से 99 प्रतिशत पतन हो गया। इसका मूलत: कारण पशु दवाई डाइक्लोफिनॅक (Diclofenac) है जो कि पशुओं के जोड़ों के दर्द को मिटाने में मदद करती है। जब यह दवाई खाया हुआ पशु मर जाता है और उसको मरने से थोड़ा पहले यह दवाई दी गई होती है और उसको सफ़ेद गिद्ध खाता है तो उसके गुर्दे बंद हो जाते हैं और वह मर जाता है। अब नई दवाई मॅलॉक्सिकॅम (meloxicam) गई है और यह हमारे गिद्धों के लिये हानिकारक भी नहीं हैं। जब इस दवाई का उत्पादन बढ़ जायेगा तो सारे पशु-पालक इसका इस्तेमाल करेंगे और शायद हमारे गिद्ध बच जायें।