शेरशाह का जीवनकाल
शेरशाह का मकबरा उनके पुत्र इस्लाम शाह ने पिता के जीवन काल में ही बनवाया। 1540-45 के बीच हुए निर्माण का काम शेरशाह की मृत्यु के बाद 16 अगस्त 1645 को पूरा हुआ। यह मकबरा भारतीय इस्लामी वास्तुकला का अनूठा उदाहरण है। वास्तुकार मीर मोहम्मद अलीवाल खान की डिजाइन पर बने इस आकर्षक महल को लाल बलुआ पत्थरों से बनाया गया था।122 फीट ऊंचे मकबरे को वर्गाकार और अष्टकोणीय डिजाइन में बनाया गया है।
शेरशाह का जन्म
शेरशाह का जन्म सासाराम शहर में हुआ था, जो अब बिहार के रोहतास जिले में है। उनका असली नाम फऱीद खाँ था पर वो शेरशाह के रूप में जाने जाते थे क्योंकि उन्होंने कथित तौर पर कम उम्र में अकेले ही एक शेर को मारा था। उनका कुलनाम ‘सूरीÓ उनके गृहनगर “सुर” से लिया गया था। उनके दादा इब्राहिम खान सूरी नारनौल क्षेत्र में एक जागीरदार थे जो उस समय के दिल्ली के शासकों का प्रतिनिधित्व करते थे।
उक्का नामक आग्ेनयास्त्र से हुई मौत
22 मई 1545 में चंदेल राजपूतों के खिलाफ लड़ते हुए शेरशाह सूरी की कालिंजर किले की घेराबंदी की, जहां उक्का नामक आग्नेयास्त्र से निकले गोले के फटने से उसकी मौत हो गयी।
मकबरा
शेरशाह ने अपने जीवनकाल में ही अपने मक़बरे का काम शुरु करवा दिया था। उनका गृहनगर सासाराम स्थित उसका मक़बरा एक कृत्रिम झील से घिरा हुआ है। यह मकबरा हिंदू मुस्लिम स्थापत्य शैली के काम का बेजोड़ नमूना है। इतिहासकार कानूनगो के अनुसार” शेरशाह के मकबरे को देखकर ऐसा लगता है कि वह अन्दर से हिंदू और बाहर से मुस्लिम था”।
विशाल ‘ग्रैंड ट्रंक रोडÓ का निर्माण
शेरशाह सूरी एक दूरदर्शी एवं कुशल प्रशासक था, जो कि विकास कामों का करना अपना कर्तव्य समझता था। यही वजह है कि सूरी ने अपने शासनकाल में एक बेहद विशाल ग्रैंड ट्रंक रोड का निर्माण करवाकर यातायात की सुगम व्यवस्था की थी। सूरी दक्षिण भारत को उत्तर के राज्यों से जोडऩा चाहते थे, इसलिए उन्हें इस विशाल रोड का निमाण करवाया था।
ग्रांड ट्रंक रोड बहुत पुरानी है. प्राचीन काल में इसे उत्तरापथ कहा जाता था। ये गंगा के किनारे बसे नगरों को, पंजाब से जोड़ते हुए, ख़ैबर दर्रा पार करती हुई अफग़ानिस्तान के केंद्र तक जाती थी। मौर्यकाल में बौद्ध धर्म का प्रसार इसी उत्तरापथ के माध्यम से गंधार तक हुआ। यूँ तो इस मार्ग का सदियों से इस्तेमाल होता रहा लेकिन सोलहवीं शताब्दी में दिल्ली के सुल्तान शेरशाह सूरी ने इसे पक्का करवाया, दूरी मापने के लिए जगह-जगह पत्थर लगवाए, छायादार पेड़ लगवाए, राहगीरों के लिए सरायें बनवाईं और चुंगी की व्यवस्था की। ग्रांड ट्रंक रोड कोलकाता से पेशावर (पाकिस्तान) तक लंबी है।
बांग्लादेश से काबुल तक रोड
सूरी द्वारा बनाई गई यह विशाल रोड बांग्लादेश से होती हुई दिल्ली और वहां से काबुल तक होकर जाती थी। वहीं इस रोड का सफर आरामदायक बनाने के लिए शेरशाह सूरी ने कई जगहों पर कुंए, मस्जिद और विश्रामगृहों का निमाज़्ण भी करवाया था। इसके अलावा शेर शाह सूरी ने यातायात को सुगम बनाने के लिए कई और नए रोड जैसे कि आगरा से जोधपुर, लाहौर से मुल्तान और आगरा से बुरहानपुर तक समेत नई सड़कों का निर्माण करवाया था।
भ्रष्टाचारियों के खिलाफ कसी नकेल
शेर शाह सूरी एक न्यायप्रिय और ईमानदार शासक था, जिसने अपने शासनकाल में भ्रष्टाचार के खिलाफ अपनी आवाज बुलंद की और भ्रष्ट्चारियों के खिलाफ कड़ी नीतियां बनाईं। शेरशाह ने अपने शासनकाल के दौरान मस्जिद के मौलवियों एवं इमामों के द्धारा इस्लाम धर्म के नाम पर किए जा रहे भ्रष्टाचार पर न सिर्फ लगाम लगाई बल्कि उसने मस्जिद के रखरखाव के लिए मौलवियों को पैसा देना बंद कर दिया एवं मस्जिदों की देखरेख के लिए मुंशियों की नियुक्ति कर दी।
रुपए की शुरुआत
भारत में सूरी वंश की नींव रखने वाला शेरशाह ही एक ऐसा शासक था, जिसने अपने शासनकाल में सबसे पहले रुपए की शुरुआत की थी। वहीं आज रुपया भारत समेत कई देशों की करंसी के रुप में भी इस्तेमाल किया जाता है। तीन धातुओं की सिक्का प्रणाली जो मुगलों की पहचान बनी वो शेरशाह द्वारा शुरू की गई थी।
पहला रुपया शेरशाह के शासन में जारी हुआ था जो आज के रुपया का अग्रदूत है। रुपया आज भारत, पाकिस्तान, नेपाल, श्रीलंका, इंडोनेशिया, मॉरीशस, मालदीव, सेशेल्स में राष्ट्रीय मुद्रा के रूप में प्रयोग किया जाता है।
भारतीय पोस्टल विभाग
मध्यकालीन भारत के सबसे सफल शासकों में से एक शेरशाह सूरी ने अपने शासनकाल में भारत में पोस्टल विभाग को विकसित किया था। उसने उत्तर भारत में चल रही डाक व्यवस्था को दोबारा संगठित किया था, ताकि लोग अपने संदेशों को अपने करीबियों और परिचितों को भेज सकें।