धरोहरों की तरह रखे बही खातों के जरिए ही गयावाल पंडों की रोजी रोटी चल रही है। पंडा समाज गयाधाम आने वाले यात्रियों के पूर्वजों का रिकॉर्ड दिखाकर उनको विश्वास में लेते हैं अैर यजमान बना लेते हैं। इन्हीं बही खातों की बदौलत गयावाल पंडों की कई पीढिय़ों ने यजमानों के श्राद्ध तर्पण कराते हैं।
बंगाल और झारखंड के पंडा कन्हैया लाल धोकड़ी ने बताया कि उनके पास दो सौ साल से ज्यादा पुराने बही खाता हैं। पहले कैथी में लिखे थे। अब उसे हिंदी में करवाया है।बही खातों में गयाश्रे कर चुके पिंडदानियों की वंशावली दजऱ् है। विष्णुपद मंदिर प्रबंधकारिणी समिति के सचिव व गयापाल गजाधर लाल पाठक ने कहा कि देश के विभिन्न प्रदेशों के अलग अलग पंडे हैं।इस तरह के बही खाते सभी गयावाल पंडों के पास मौजूद हैं।
कोई भी पिंडदानी आता है तो सभी पंडे बही खाते खोलकर उन्हें उनके पूर्वजों के गयाश्राद्ध के लिए आने का विवरण और हस्ताक्षर दिखाते हैं। इससे खुश होकर ये पितरों को मोक्ष दिलाने के कर्मकांड में जुट जाते हैं।पिडक ने बताया कि ऑनलाइन के ज़माने में भी गयाधाम में बही खातों का महत्व पहले ही जैसा बरकरार है।