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चुनाव के ऐन वक्त किताब के इर्द-गिर्द घूमने लगी बिहार की राजनीति: किताब लालू की, जिक्र नीतीश का, जवाब पीके का

लालू ने अपनी किताब में दावा किया कि नीतीश वापस महागठबंधन में आना चाहते थे,पर मैंन मना कर दिया…
 

पटनाApr 05, 2019 / 03:39 pm

Prateek

lalu yadav file photo

(पटना,प्रियरंजन भारती): आरजेडी सुप्रीमो लालू यादव के इस दावे पर चुनाव के ऐन वक्त में सियासी बवाल मच उठा है कि नीतीश कुमार भाजपा का साथ छोड़ महागठबंधन में लौटना चाहते पर मैंने साफ मना कर दिया। लालू यादव के इस दावे को खारिज करते हुए प्रशांत किशोर ने ट्वीट कर जवाब दिया है।


लालू यादव ने कहा है कि नीतीश कुमार भाजपा के साथ एनडीए में जाने के छह महीनों बाद ही महागठबंधन में लौट आना चाहते थे। पर मैंने साफ मना कर दिया क्योंकि नीतीश कुमार से मेरा विश्वास उठ चुका है। पत्रकार नलिन वर्मा के साथ लिखी अपनी बायोग्राफी ‘गोपालगंज टू रायसीना, माई पॉलिटिकल जर्नी’ में लालू यादव ने आगे लिखा कि अपने विश्वासपात्र प्रशांत किशोर को दूत बनाकर नीतीश ने मेरे पास पांच बार भेजा। हर बार प्रशांत किशोर नीतीश कुमार को महागठबंधन में वापस करने पर लालू को राजी करने की कोशिश करते रहे। यह किताब अभी प्रकाशन में है।


लालू यादव ने लिखा,’पीके यह जताने की कोशिश कर रहे थे कि यदि मैं जदयू को लिखित समर्थन दे दूं तो वह भापजा से गठबंधन तोड़कर दोबारा महागठबंधन में शामिल हो जाएंगे।हालांकि नीतीश को लेकर मेरे मन में कोई कड़वाहट नहीं है पर मेरा विश्वास उनसे पूरी तरह उठ चुका है। लालू यादव ने आगे लिखा है,’हालांकि मुझे नहीं पता है कि यदि मैं पीके का प्रस्ताव स्वीकार कर लेता तो महागठबंधन को 2015 में वोट करने वालों और देश भर में भाजपा के खिलाफ एकजुट हुए दलों की क्या प्रतिक्रिया होती।’


लालू यादव के इस दावे पर पीके ने पहले तो चुप्पी साधे रखी पर बाद में ट्वीट कर उसका जवाब दिया। ट्विटर हैंडलर पर उन्होंने लिखा कि लालू यादव का यह दावा बेबुनियाद है। ये फिजूल की बातें हैं। हां,जदयू ज्वाइन करने के पूर्व मैंने लालू यादव से मुलाकात की लेकिन ऐसी कोई बात नहीं की। अगर पूछा जाए कि क्या बात हुई तो इससे शर्मिंदगी होगी।’

 

https://twitter.com/PrashantKishor/status/1114022017898958849?ref_src=twsrc%5Etfw

लालू यादव के दावे को सरासर झूठ बताते हुए जदयू नेता केसी त्यागी ने भी बयान दिए। उन्होंने कहा कि 2017 में आरजेडी से अलग होने के बाद नीतीश कुमार ने कभी लालू यादव के साथ जाने की इच्छा नहीं जताई। लालू यादव के बयान को भाजपा नेता सुशील कुमार मोदी ने भी सरासर झूठ क़रार दिया है।


लालू यादव के इस दावे को पीके बेशक खारिज कर दें लेकिन सियासी हलके में उनकी गतिविधियां कई बातों को पुष्ट कर देने वाली साबित हो चुकी हैं। हाल के घटनाक्रम ही इस बात के प्रत्यक्ष गवाह हैं। कुछ ही दिनों पूर्व उन्होंने उद्धव ठाकरे और वाईआरएस से मिलकर नीतीश को एनडीए में नेता बनाने और गैरभाजपा तथा गैरकांग्रेसी दलों का समर्थन जुटाने के प्रस्ताव पर बातचीत की थी। जदयू में शामिल होने के बाद बिहार में कई मौकों पर उन्होंने बड़बोले बयान दिए जिनमें यह भी था कि आरजेडी से अलग होने के बाद जदयू को फिर से जनादेश लेना चाहिए था। उनके इस वक्तव्य से दूसरे जदयू नेताओं ने उनके खिलाफ मुहिम छेड़ दी जिसमें उन्होंने कहा कि मैं प्रधानमंत्री और मुख्यमंत्री बना सकता हूं तो युवाओं को भी विधायक और एमपी बनवा सकता हूं। पीके के खिलाफ पार्टी में मुहिम छिड़ी तो अंततः नीतीश कुमार ने उनसे दो घंटे मुलाकात कर उन्हें फिलहाल मुहिम से अलग कर दिया और वह पिताजी के इलाज के बहाने बिहार से बाहर निकल गए।


पीके को लेकर चाहे जो भी सियासत हो और नीतीश कुमार की भाजपा के साथ रहने की चाहे जो भी मजबूरियां रही हों पर यह तो अनेक उदाहरणों से पुष्ट होता दिखता है कि भाजपा के साथ बेमन से हुए जदयू के गठबंधन में पीके एक खास मिशन के तहत जदयू में वरिष्ठ पद पर लाए गये लगते हैं।

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