महिंद्रा से ट्रैक्टर मांग की
शनिवार को ट्विटर पर एक यूजर ने लिखा-गया के लौंगी भुईंया ने अपनी जिंदगी के कई वर्ष लगाकर नहर खोद दी। उन्हें कुछ नहीं चाहिए, सिवाए एक ट्रैक्टर के। यूजर ने आगे लिखा कि मेरी आनंद महिंद्रा से मांग है कि वो लौंगी को सम्मानित करें, इससे उन्हें गर्व महसूस होगा। इस ट्विट के एवज में महिंद्रा ने लौंगी भुइयां को ट्रैक्टर देने की घोषणा की।
यह नहर ताजमहल-पिरामिड से कम नहीं
इससे पहले लौंगी भुइयां की अपने बलबूते तीन किलोमीटर लंबी नहर खोदने की दास्तां की जानकारी मिलने पर दिलेर उद्योगपति महिंद्रा ने 14 सिंतबर को किए ट्विट में भुइयां की जमकर तारीफ की थी। आनंद महिंद्रा ने भुइयां की तुलना 22 साल तक अकेले पहाड़ काटकर रास्ता बनाने वाले दशरथ मांझी से की।
सात अजूबों से कम नहीं
महिंद्रा ने कहा कि भुइयां की इस नहर किसी भी मायने में ताजमहल और मिश्र के पिरामिड समेत दुनिया के सात अजूबों से कम नहीं है। उन्होंने ट्वीट किया, ‘दुनियाभर में सैकड़ों स्मारकों को हजारों लोगों की कड़ी मेहनत और तपस्या के साथ बनाया गया है, लेकिन उनमें से ज्यादातर राजाओं की सोच का नतीजा थे, जिन्हें बनाने के लिए उन्होंने श्रमिकों का इस्तेमाल किया। मेरे लिए ये नहर किसी भी पिरामिड या ताजमहल से कम शानदार नहीं है।’
नहर से सिंचाई
गौरतलब है कि नहर बनाने के लिए भुइयां ने &0 साल तक हर दिन नहर की खुदाई की। नहर को अकेले दम बनाने वाले कोठिलवा गांव के लौंगी भुइयां इसे बनाने में &0 साल का लंबा वक्त लगा। अब इस नहर की मदद से नजदीकी पहाड़ी से आने वाला बरसाती पानी गांव में बने एक तालाब में इक_ा होता है। फिर इसका इस्तेमाल गांव के खेतों की सिंचाई में किया जाता है।
30 साल तक हर दिन खोदी नहर
भुइयां पिछले &0 साल से अपने मवेशियों को चराने के लिए जंगल में ले जाता था। इसके बाद उन्हें चरने के लिए छोड़कर हर दिन नहर खोदता रहता था। खोदाई शुरू की तो लोग हंसने लगे कि लौंगिया पगला गया है। लेकिन उन्होंने अपना काम जारी रखा। आज करीब पांच किलोमीटर लंबी नहर बन चुकी है। उनके कार्य को देख जलछाजन विभाग के अधिकारियों ने एक बड़ी मेड़ बनवा दी है, जिसका नाम लौंगी आहर रखा है।
नहर पूरा करके ही रहूंगा
नहर की खुदाई के काम में गांव के किसी व्यक्ति ने भइुयां का साथ नहीं दिया। भुइयां का कहना था कि हमारे गांव के लोग मेहनत मजूदरी करके अपने परिवार को पालने के लिए बड़े शहरों को चले जाते हैं, लेकिन मैंने तय किया कि मैं यहीं रुकूंगा और इस नहर को पूरा करके ही रहूंगा। कोठिलवा गांव चारों तरफ से घने जंगलों और पहाड़ों से घिरा है। ये गया से 80 किमी दूर है। इस गांव को माओवादियों के लिए पनाहगाह के तौर पर चिह्नित किया गया है।