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आठ साल के आधे से ज्यादा बच्चे नहीं जानते खुशी और दुख

locationपटनाPublished: Jan 15, 2020 06:03:11 pm

Submitted by:

Navneet Sharma

प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र में काम करने वाली संस्था ‘प्रथम’ ने.अपनी वार्षिक रिपोर्ट में चौंकाने वाले आंकड़े पेश किए हैं। इस साल अर्ली ईयर्स यानी चार से आठ वर्ष के बच्चों पर इसका अध्ययन केंद्रित था। संस्था ने देश के 26जिलों के1514गांवों के 30425घरों के 4-8वर्ष के 36930बच्चों को इस सर्वेक्षण में शामिल किया।

आठ साल के आधे से ज्यादा बच्चे नहीं जानते खुशी और दुख

आठ साल के आधे से ज्यादा बच्चे नहीं जानते खुशी और दुख

पटना. प्राथमिक शिक्षा के क्षेत्र में काम करने वाली संस्था ‘प्रथम’ ने.अपनी वार्षिक रिपोर्ट में चौंकाने वाले आंकड़े पेश किए हैं। इस साल अर्ली ईयर्स यानी चार से आठ वर्ष के बच्चों पर इसका अध्ययन केंद्रित था। संस्था ने देश के 26जिलों के1514गांवों के 30425घरों के 4-8वर्ष के 36930बच्चों को इस सर्वेक्षण में शामिल किया। बिहार के इकलौते जिले नालंदा में प्रथम की टीम ने सर्वे किया। नालंदा के साठ गांवों के 1202घरों के 4-8साल के 1665बच्चों पर यह रिपोर्ट केंद्रित है।

रिपोर्ट असर2019के मुताबिक नालंदा जिले आठ साल के 56.6फीसदी बच्चे खुशी, दुख,क्रोध और डर नहीं पहचानते।हालांकि छोटे बच्चों के सामाजिक, शैक्षिक और मानसिक विकास के लिए इन मनोभावों का छोटे बच्चों में होना शिक्षा विज्ञानी जरूरी मानते हैं। सर्वे के क्रम में टास्क के तहत चार भावों से जुड़े प्ले कार्ड बच्चों के सामने रखे गये।

चार साल के महज़ 9.8फीसदी,पांच साल के 25.1,6साल के 36.7जबकि सात साल के 53.3प्रतिशत बच्चों ने ही प्लेकार्ड के भावों की सही पहचान की।हालांकि खुशी के भावों को86.2फीसदी बच्चों ने पहचान लिया।
नालंदा जिले के साठ गांवों के बच्चों ने सर्वेक्षण के दौरान एक अंक के जोड़ घटाव को मौखिक और लिखित में ठीक ठाक तो कर दिया पर दो अंकों में उलझ गये।कक्षा एक के 24.9,कक्षा दो के 32.9,जबकि कक्षा तीन के 43फीसदी बच्चों ने ही दो के जोड़ सही बनाए।

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