घाटे में ही रही है कांग्रेस
कांग्रेस को लगता रहा है कि सीट बंटवारे में हमेशा उसे दबना पड़ जाता है। आपसी खींचतान की वजह से 2009 के लोकसभा चुनाव में दोनों ही दलों को अलग अलग लड़ना पड़ा था। इससे कांग्रेस की संख्या सिमटकर दो रह गई थी। अबकी बार कांग्रेस थोडी़ अलग ही मुद्रा में दिख रही है। पार्टी ने गठबंधन में शामिल रहते हुए आरजेडी से दूरी कायम रखी है। आरजेडी सुप्रीमो लालू यादव के चारा घोटाले में सजायाफ्ता होना भी एक कारण है। दूसरी तरफ कांग्रेस अपने जनाधार को फिर से जनादेश तक पहुंचाने में सांगठनिक मजबूती को भी अधिक महत्व दे रही है। पार्टी फोरम पर यह चर्चा अधिक है कि राषट्रीय स्तर पर गठबंधन का बड़ा दल होने की वजह से उसके साथ नाइंसाफी नहीं होने दी जाएगी। इसलिए उसका फोकस कम से कम 18 सीटों की मांग पर केंद्रित है। इस गरज से पार्टी के नेता अभी से मुखर हैं।
और भी कई दलों मे शेयरिंग
आरजेडी नेताओं का कहना है कि इस बार एक बड़ा फर्क है। हर बार की तरह चुनावी बिसातें हल्के नहीं बिछा देनी है। फिर यह भी एक बड़ी बात है कि महागठबंधन के घटक दलों की संख्या बढ़ी है। इस बार कांग्रेस के अलावा राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी,जीतनराम मांझी की पार्टी- हम सेकुलर, आरजेडी और शरद यादव की नई पार्टी लोकतांत्रिक जनता दल भी महागठबंधन में शामिल है। लिहाजा घटक दलों में खींचतान तो खूब मचेगी ही। इसका नज़ीर अभी से होने लग गया है।