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अपनी पार्टी में अकेले छूट गए उपेन्द्र कुशवाहा, छोड़ गए सांसद, विधायक

locationपटनाPublished: Dec 15, 2018 05:00:04 pm

Submitted by:

Gyanesh Upadhyay

रालोसपा के संस्थापक पूर्व केन्द्रीय मंत्री उपेन्द्र कुशवाहा के साथ उनका कोई सांसद या विधायक नहीं बचा है, अब उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती पार्टी को बचाने की है।

सबसे बड़ी चुनौती पार्टी को बचाने की

सबसे बड़ी चुनौती पार्टी को बचाने की

पटना। कहा जाता है कि पहले खुद का घर ठीक करना चाहिए, उसके बाद ही दूसरे से लडऩा चाहिए। पूर्व केन्द्रीय मंत्री उपेन्द्र कुशवाहा अपनी पार्टी को दुरुस्त रखने की बजाय बाहर दबाव की राजनीति बनाने में जुटे थे, तो नतीजा सामने है – अब उनके साथ पार्टी का कोई सांसद या कोई विधायक शेष नहीं बचा है। पार्टी के सभी चुने गए प्रतिनिधि उनका साथ छोड़ गए हैं।
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वैसे तो पार्टी के एक विधायक ललन पासवान पहले ही अलग होने के संकेत दे चुके थे। वर्ष 2016 में ही पार्टी के जहानाबाद सांसद डॉ. अरुण कुमार जब उपेन्द्र कुशवाहा के विरोधी हुए, तब भी विधायक ललन पासवान डॉ. अरुण कुमार के साथ थे। अब ललन पासवान और दूसरे विधायक सुधांशु शेखर ने स्पष्ट कर दिया है कि वे उपेन्द्र कुशवाहा के साथ नहीं हैं। इतना ही नहीं, दोनों विधायकों ने पार्टी पर भी दावा कर दिया है। पार्टी के दोनों विधायकों के साथ पार्टी के ही एकमात्र विधान परिषद सदस्य संजीव श्याम भी खड़े हैं।

उपेन्द्र कुशवाहा के सामने मुसीबत
पार्टी के जहानाबाद सांसद डॉ. अरुण कुमार अपनी अलग पार्टी बना चुके हैं, एनडीए के साथ हैं। सीतामढ़ी से पार्टी के सांसद रामकुमार शर्मा भी एनडीए छोडऩे के पक्ष में नहीं हैं। विधायक ललन पासवान पहले ही कह चुके हैं कि उपेन्द्र कुशवाहा एनडीए से अलग हुए, तो अकेले ही जाएंगे। 23 उम्मीदवार विधानसभा चुनाव लड़े थे, जिसमें से दो जीते, ललन पासवान के अनुसार ये सभी 23 नेता एनडीए के पक्ष में हैं, कोई भी उपेन्द्र कुशवाहा के साथ नहीं जाएगा। ये सभी मिलकर अगर पार्टी पर दावा करेंगे, तो उपेन्द्र कुशवाहा को पार्टी बचाने में भी जोर आएगा। एनडीए छोडऩे और केन्द्रीय मंत्रिमंडल से इस्तीफा देने से पहले उपेन्द्र कुशवाहा ने अपने विधायकों के साथ कोई चर्चा नहीं की है। उनकी कार्यशैली मनमानी की रही है, जिसके कारण पार्टी में वे अलग-थलग पड़ गए हैं।

मुख्यमंत्री बनना चाहते हैं उपेन्द्र कुशवाहा?
यह बात रालोसपा के सभी नेता जानते हैं कि उपेन्द्र कुशवाहा की महत्वाकांक्षा मुख्यमंत्री बनने की है। पार्टी के नेता यह भी जानते हैं कि महागठबंधन में उपेन्द्र कुशवाहा शामिल हो भी गए, तो उन्हें मुख्यमंत्री तो कोई नहीं बनाएगा। महागठबंधन में मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदार तो तेजस्वी यादव ही होंगे। बिहार की राजनीति के जानकार बताते हैं कि उपेन्द्र कुशवाहा की महत्वाकांक्षा ही उन्हें परेशानी में डाल रही है। वे केन्द्रीय मंत्री थे, लेकिन केन्द्र सरकार की आलोचना करते हुए जो बयानबाजी किया करते थे, इससे खुद उनकी पार्टी में माहौल खराब होता गया।

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कौन हैं उपेन्द्र कुशवाहा?
वैशाली में 6 फरवरी 1960 को जन्मे कुशवाहा वर्ष 1982 से राजनीति में सक्रिय हैं। युवा छात्र राजनीति से उन्होंने शुरुआत की थी, लोक दल और फिर जनता दल में लंबे समय तक रहे। वर्ष 2000 में समता पार्टी के टिकट पर विधायक बने। वर्ष 2010 में जनता दल (यूनाइटेड) में रहते हुए ही राज्यसभा सांसद बने। वर्ष 2013 में पार्टी से अलग हुए। रालोसपा का गठन किया और बिहार में एनडीए का हिस्सा बन गए। वर्ष 2014 से लोकसभा सांसद और केन्द्रीय मंत्री बने, लेकिन अब उन्होंने एनडीए छोड़ दिया है और मंत्रिमंडल से इस्तीफा दे दिया है। नया गठबंधन बनाने या महागठबंधन में जाने की कोशिश में हैं।

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