जिस कॉलेज में शूट था, पापा वहां लड्डू बांट रहे थे
उन्होंने बताया कि बिजनेस की पढ़ाई के बीच थोड़ा बोर होने लग गया था और घर आकर मैंने पापा से कहा कि यह मेरा फील्ड नहीं है। मैं फिल्म इंडस्ट्री में ही कुछ कर सकता हूं और क्योंकि अब तक यही देखता आया हूं। पापा ने तब कहा कि ‘एक्टिंग मत करना, बाकि डायरेक्शन, सिनेमेटोग्राफी या एडिटिंग सीख लो।’ मैंने फिल्म स्कूल जॉइन कर लिया और एक साल के भीतर ही संजय लीला भंसाली से ‘बाजीराव मस्तानी’ के सेट पर मुलाकात हुई। संजय सर ने मुलाकात पर कहा कि ‘तुम एक स्टार हो और तुम्हें एक्टिंग करनी चाहिए। फिर उन्होंने मुझे फिल्म में लॉन्च करने की बात कही।’ यह सुनकर मेरी खुशी का ठिकाना नहीं था। कार में बैठने के बाद मैंने मां को फोन किया और संजय सर की बात बताई। पापा शूट पर थे और जब वे रात को आए तो खाने की टेबल पर मैंने यह बात बताई। पापा को विश्वास नहीं हुआ, लेकिन थोड़ी देर बार वे उठकर आए और मुझे गले लगा लिया। यह मेरे लिए बहुत प्राउड वाला समय था। जब शूट शुरू हुआ और जिस कॉलेज में शूटिंग चल रही थी, उस वक्त पापा पूरे कॉलेज में स्टूडेंट्स और टीचर्स को मिठाईयां खिला रहे थे।
उन्होंने बताया कि बिजनेस की पढ़ाई के बीच थोड़ा बोर होने लग गया था और घर आकर मैंने पापा से कहा कि यह मेरा फील्ड नहीं है। मैं फिल्म इंडस्ट्री में ही कुछ कर सकता हूं और क्योंकि अब तक यही देखता आया हूं। पापा ने तब कहा कि ‘एक्टिंग मत करना, बाकि डायरेक्शन, सिनेमेटोग्राफी या एडिटिंग सीख लो।’ मैंने फिल्म स्कूल जॉइन कर लिया और एक साल के भीतर ही संजय लीला भंसाली से ‘बाजीराव मस्तानी’ के सेट पर मुलाकात हुई। संजय सर ने मुलाकात पर कहा कि ‘तुम एक स्टार हो और तुम्हें एक्टिंग करनी चाहिए। फिर उन्होंने मुझे फिल्म में लॉन्च करने की बात कही।’ यह सुनकर मेरी खुशी का ठिकाना नहीं था। कार में बैठने के बाद मैंने मां को फोन किया और संजय सर की बात बताई। पापा शूट पर थे और जब वे रात को आए तो खाने की टेबल पर मैंने यह बात बताई। पापा को विश्वास नहीं हुआ, लेकिन थोड़ी देर बार वे उठकर आए और मुझे गले लगा लिया। यह मेरे लिए बहुत प्राउड वाला समय था। जब शूट शुरू हुआ और जिस कॉलेज में शूटिंग चल रही थी, उस वक्त पापा पूरे कॉलेज में स्टूडेंट्स और टीचर्स को मिठाईयां खिला रहे थे।
94 किलो वजन था, एक्टिंग से सारा डिप्रेशन खत्म किया
शार्मिन सेगल ने बताया कि सबसे पहले मैंने कॅरियर रूप में मेडिकल फील्ड चुना था। उस वक्त मेरा वजन 94 किलो था और साथी स्टूडेंट्स इसके लिए जमकर मजाक बनाते थे। कॉलेज में एक रिक्वायरमेंट पर मैंने थिएटर जॉइन किया, स्टेज पर गई तो ऑडियंस हंस रहे थे, इस बार वे मेरे मोटापे पर नहीं मेरे किरदार पर हंस रहे हैं। फिर लगा कि एक्टिंग में तो यह फिलिंग भी आ सकती है और एक शरीर में कई किरदार जीए जा सकते हैं, तो इससे बेहतर क्या हो सकता है। मेरा सारा डिप्रेशन खत्म हो गया। मां के पास गई और पता लगा कि एक्ट्रेस बनने के लिए मोटापा कम करना होगा। वेट कम होने के बाद मेरा कॉन्फिडेंस लेवल भी बढ़ गया। एक्टर बनने से पहले ‘मेरीकॉम’ और ‘बाजीराव मस्तानी’ फिल्म में बतौर असिस्टेंट डायरेक्टर काम किया।
शार्मिन सेगल ने बताया कि सबसे पहले मैंने कॅरियर रूप में मेडिकल फील्ड चुना था। उस वक्त मेरा वजन 94 किलो था और साथी स्टूडेंट्स इसके लिए जमकर मजाक बनाते थे। कॉलेज में एक रिक्वायरमेंट पर मैंने थिएटर जॉइन किया, स्टेज पर गई तो ऑडियंस हंस रहे थे, इस बार वे मेरे मोटापे पर नहीं मेरे किरदार पर हंस रहे हैं। फिर लगा कि एक्टिंग में तो यह फिलिंग भी आ सकती है और एक शरीर में कई किरदार जीए जा सकते हैं, तो इससे बेहतर क्या हो सकता है। मेरा सारा डिप्रेशन खत्म हो गया। मां के पास गई और पता लगा कि एक्ट्रेस बनने के लिए मोटापा कम करना होगा। वेट कम होने के बाद मेरा कॉन्फिडेंस लेवल भी बढ़ गया। एक्टर बनने से पहले ‘मेरीकॉम’ और ‘बाजीराव मस्तानी’ फिल्म में बतौर असिस्टेंट डायरेक्टर काम किया।
संजय सर सीख देते रहे
उन्होंने कहा कि कैमरे के पीछे और आगे बहुत अंतर है। ‘बाजीराव…’ की शूटिंग के वक्त जयपुर के रायसर में १२०० लोग साथ काम कर रहे थे, जो मेहनत मैंने की वो रणवीर सिंह के चेहरे पर खत्म होती थी। इन सभी की मेहनत मेरे कंधों पर थीं, मैं उसका हिस्सा थी और उससे काफी कुछ सीखने को मिला। ‘बाजीराव मस्तानी’ के सेट पर संजय लीला भंसाली को काम करते हुए देखा, तब मुझे उनकी असली वैल्यू समझ में आई। वे एक सीन को लेकर जितनी मेहनत करते थे, इससे मुझे प्रेरणा मिलती थी। इससे पहले मैं उन्हें मामा या मामू कहकर बुलाती थी, लेकिन शूटिंग एक्सपीरियंस के बाद वो मेरे संजय सर हो गए।
उन्होंने कहा कि कैमरे के पीछे और आगे बहुत अंतर है। ‘बाजीराव…’ की शूटिंग के वक्त जयपुर के रायसर में १२०० लोग साथ काम कर रहे थे, जो मेहनत मैंने की वो रणवीर सिंह के चेहरे पर खत्म होती थी। इन सभी की मेहनत मेरे कंधों पर थीं, मैं उसका हिस्सा थी और उससे काफी कुछ सीखने को मिला। ‘बाजीराव मस्तानी’ के सेट पर संजय लीला भंसाली को काम करते हुए देखा, तब मुझे उनकी असली वैल्यू समझ में आई। वे एक सीन को लेकर जितनी मेहनत करते थे, इससे मुझे प्रेरणा मिलती थी। इससे पहले मैं उन्हें मामा या मामू कहकर बुलाती थी, लेकिन शूटिंग एक्सपीरियंस के बाद वो मेरे संजय सर हो गए।