युवा रंगकर्मी अभिषेक मुद्गल ने बताया कि साल २००० में हमने गिरीश कर्नाड का नाटक ‘हयवदन’ किया, हमने यह बिना परमिशन किया था। तब किसी व्यक्ति ने कहा कि नाटक करने से पहले लेखक की परमिशन लेना जरूरी होता है, हमनें इसके लिए एक मेल ड्राफ्ट किया और उसमें लिखा कि हम जयपुर के कुछ युवा रंगकर्मी ‘हयवदन’ नाटक की प्रस्तुति कर चुके हैं और आगे भी इस नाटक को करने की इच्छा रखते हैं। इसके जवाब में उनका मेल आया कि आप लोग मेरे सभी नाटकों को मंचित कर सकते हैं, इसके लिए आपको छूट है। पिछले महीने हम एक नाटक के लिए मुम्बई गए थे और जहां हमारी टीम ठहरी थी, वह गिरीश कर्नाड का ही घर था। घर के एंट्रेंस में ‘तुगलक’ का फोटो लगा हुआ था। घर में इतनी बुक्स थी कि इन्हें पढऩे में एक साल से ज्यादा का समय लग जाए।
बिना रॉयल्टी के दी परमिशन
वरिष्ठ रंगकर्मी जफर खान ने बताया कि गिरीश कर्नाड की लेखनी हमारी फोक स्टोरीज से जुड़ी होती थी, इनमें हमारी परम्पराओं का समावेश होता था। फोक स्टोरीज में कंटेम्परेरी इश्यूज को शामिल करते थे। पिछले साल हमने ‘अग्नि और बर्खा’ के चार शो किए। सबसे बड़ी बात यह रही कि हमंे एक रिक्वेस्ट पर ही उन्होंने नाटक करने की परमिशन दे दी थी और वो भी बिना रॉयल्टी के। बड़ी सहजता से हमारी बात स्वीकार की, वे अपनी सहजता और व्यक्तित्व की वजह से ही लोगों के दिलों में बसे हुए थे।
सरताज नारायण माथुर ने कहा कि उनसे दो-तीन बार ही मुलाकात हुई, लेकिन जब भी मिले बड़े अपनेपन से मिले। वे रंगकर्मियों को अपने परिवार का ही हिस्सा समझते थे। उनके सभी नाटक न केवल प्रभावशाली रहे, बल्कि इश्यू बेस्ड रहे।
ओम शिवपुरी ने ‘तुगलक’ को बनाया सुपरस्टार
थिएटर डायरेक्टर विशाल विजय ने बताया कि गिरीश कर्नाड ने मूलत: कन्नड़ में नाटक लिखे, लेकिन इनके हिन्दी अनुवादों ने इन्हें ज्यादा लोकप्रिय बनाया। इनके लिखे नाटकों को इब्राहिम अलकाजी, वीवी कारंत, रामगोपाल बजाज, ओम शिवपुरी जैसे दिग्गज निर्देशकों ने मंच पर साकार किए। ओम शिवपुरी ने दिल्ली में भव्य सेट के साथ ‘तुगलक’ नाटक किया और इसके बाद यह नाटक सुपरहिट हो चुका था। वहीं इब्राहिम अलकाजी ने एनएसडी स्टूडेंट्स के साथ इसे दिल्ली के पुराने किले में प्रस्तुत किया, यह उस समय का माइल स्टोन बन गया। कर्नाड ने न सिर्फ लेखक, बल्कि एक्टर, फिल्म डायरेक्टर व स्क्रिप्ट राइटर के रूप में भी अपनी पहचान बनाई।
थिएटर डायरेक्टर दीपक गुप्ता ने कहा कि हमने इनका ‘नागमंडल’ नाटक किया। सबसे पहले हमने जेकेके में इसे प्रस्तुत किया, इसके बाद रवीन्द्र मंच और उदयपुर में इसे पेश किया। इनके लिखे नाटकों में लाइट, म्यूजिक, कॉस्ट्यूम पर काफी काम होता था और लोग इससे कनेक्ट हो पाते थे।