विद्यासागर उपाध्याय ने बताया कि बीझणी को माध्यम बनाने की प्लानिंग इसलिए की है, क्योंकि हम आज एेसी वस्तुओं को भूलते जा रहे हैं। जबकि ये हमारे ट्रेडिशन का हिस्सा है। यह कुटीर उद्योग का हिस्सा था, जो आज बंद हो गया है। ग्रामीण महिलाएं इसे बनाने की कला में माहिर थीं, एेसे में हम एेसी महिलाओं से संपर्क कर ट्रेडिशनल बीझणी बनवाने की प्लानिंग कर रहे हैं। पहले दहेज में दुल्हन के हाथ की बनाई बीझणी को भी साथ में भेजा जाता था। यह हमारे एन्वार्नमेंट का हिस्सा है और इसकी जगह लेने वाली टेक्नॉलोजी ने एन्वार्नमंेट को बिगाडऩे का काम किया है।
छोटे शहरों में भी होगा आयोजन दसवां रंग मल्हार इस बार जयपुर के अलावा उदयपुर, अजमेर, भीलवाडा, नाथद्वारा, बांसवाडा, डुंगरपुर, टोंक, बूंदी, कोटा, लालसोट, सीकर, जालोर, जोधपुर, बीकानेर, गंगानगर में भी आयोजित हो रहा है। पिछले साल रंग मल्हार का माध्यम लालटेन थी। वहीं इससे पहले साइकिल, कार, हैट, अम्ब्रैला सहित कई माध्यम यूज हो चुके हैं।