थिएटर के जरिए मिली तालियों ने मंच से कभी दूर होने नहीं दिया - अभिषेक गोस्वामी
मंडे मोटिवेशन
पत्रिका प्लस की स्पेशल इंटरव्यू सीरीज में रूबरू हुए थिएटर डायरेक्टर अभिषेक, थिएटर इन एजुकेशन पर कई साल से कर रहे हैं काम

जयपुर. बच्चों को जिस तरह गर्मियों की छुट्टियों में कुछ अलग करने के लिए विभिन्न वर्कशॉप में भेजा जाता है, उसी तरह मुझे भी रवीन्द्र मंच पर वरिष्ठ रंगकर्मी डीएन शैली के साथ एक महीने की चिल्ड्रन थिएटर वर्कशॉप में भेजा गया। वर्कशॉप के अंत में नाटक 'दो आलसीÓ की प्रस्तुति हुई, इसमें मुझे गधे का रोल मिला। जब मेरा कैरेक्टर मंच पर एंट्री लेता है तो लोग जमकर हंसते है और जब डायलॉग बोलने लगा तो लोगों से तालियां मिलने लगी। यहां से लगा कि आगे जाकर थिएटर में जरूर कुछ करूंगा। फिर बोर्ड एग्जाम के बाद कॉलेज में जाने से पहले वरिष्ठ नाट्य निर्देशक साबिर खान की 40 दिन की थिएटर वर्कशॉप कर ली और पहली बार प्रोफेशनल तरीके से नाटक 'चन्द्रमा सिंह उर्फ चमकू' से एक एक्टर के रूप में शुरुआत हुई और अब तक सिर्फ मेरा घर रंगमंच की वजह से ही चल रहा है। यह कहना है, थिएटर डायरेक्टर अभिषेक गोस्वामी का। पत्रिका प्लस की मंडे मोटिवेशन सीरीज के तहत रूबरू होते हुए अभिषेक ने अपनी जर्नी को शेयर किया।
एनएसडी की टीआइई कंपनी में मिला सलेक्शन
मैंने जयपुर में थिएटर करने के दौरान नेशनल स्कूल ऑफ ड्रामा जाने के लिए लगभग चार बार एग्जाम दिए, लेकिन सफल नहीं हुआ। इस दौरान मैंने नाटक 'अब गरीबी हटाओ' का निर्देशन किया, इसकी जमकर तारीफ मिली और मैंने इसके 20 से ज्यादा शो किए। ड्रामा डिपार्टमेंट में पीजी करने के बाद मैंने एनएसडी की थिएटर इन एजुकेशन कंपनी के लिए एप्लाई किया, यहां सलेक्शन मिल गया। यहां 10 साल काम किया, इस दौरान नामचीन डायरेक्टर्स के साथ काम करने का मौका मिला। जिनमें बीवी कारंत, मोहन आगाशे, बैरी जॉन, त्रिपुरा शर्मा, अब्दुल लतीफ खटाना, फैजल अल्काजी जैसे नाम शामिल थे। यहां रंगमंच का शिक्षा में योगदान के बारे में पता चला और फिर यहां के अनुभवों को अपने शहर में यूज करने की प्लानिंग की । इसके बाद थिएटर इन एजुकेशन के कॉन्सेप्ट के साथ पिंकसिटी आ गया।
टीचर्स के साथ काम
जयपुर में रहकर मैंने नए युवाओं को साथ लेकर शिक्षा में रंगमंच और नाट्यकला के लिए काम करने लगा। इस दौरान २०११ में अजीम प्रेमजी फाउंडेशन के साथ मिलकर इस योजना को आगे बढ़ाया। आज मैं टीचर्स के साथ थिएटर इन एजुकेशन पर काम कर रहा हूं। इसके अलावा युवाओं को थिएटर के जरिए प्रशिक्षित कर रहा हूं। युवाओं के साथ मैंने ' तीरिचÓ, 'रामसजीवन की प्रेम कथाÓ, 'हटमाला के उसपारÓ, 'गगन दमामा बाज्योÓ, 'कबीरा खडा बाजार मेंÓ, 'हत्या एक आकार कीÓ , 'बडे भाईसाहबÓ जैसे नाटकों का निर्देशन किया। मैं सिर्फ थिएटर की वजह से ही अपने पैरों पर खड़ा हूं, यह सिर्फ तैयारी मांगता है। मैंने अपने अनुभवों के आधार पर परिर्वतन लाया हूं। इससे यह साबित होता है कि रंगमंच के जरिए भी आप अपना घर चला सकते हो।
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